*शुभ मुहूर्त*
इस बार सन् 2023 में परमा एकादशी व्रत दिनांक 12 अगस्त 2023 दिन शनिवार को मनाया जाएगा। यदि एकादशी तिथि की बात करें तो एकादशी तिथि प्रारंभ दिनांक 11 अगस्त 2023 दिन शुक्रवार को प्रारंभ होगा दिनांक 12 अगस्त 2023 दिन शनिवार को एकादशी तिथि दो घड़ी पांच पल अर्थात प्रातः 6:31 बजे तक है । इस दिन यदि नक्षत्र की बात करें तो मृगशिरा नामक नक्षत्र 0 घड़ी 48 पल अर्थात प्रातः ठीक 6:00 बजे तक है। इस दिन हर्षण नामक योग 24 घड़ी 3 पल अर्थात दोपहर बाद 3: 18 बजे तक है। बालव नामक करण दो घड़ी 5 पल अर्थात प्रातः 6:31 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे।

इस व्रत की कथा के अनुसार पांडु पुत्र अर्जुन ने नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण से कहा- हे कमलनयन! आपने अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विस्तार पूर्वक वर्णन कर मुझे सुनाया है। अतः अब आप कृपा करके मुझे अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है तथा इसके व्रत को किस फल की प्राप्ति होती है? तथा उसकी विधि क्या है? इन सब के बारे में बताएं। तब नंदनंदन भगवान श्रीकृष्ण बोले- हे अर्जुन !अधिक मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह परमा एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशीयां होती है। अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो शुक्ल पक्ष में पद्मिनी एकादशी और कृष्ण पक्ष में परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है।
इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इस लोक में सुख तथा सद्गति प्राप्त होती है। यह व्रत विधि विधान के अनुसार करना चाहिए। इस एकादशी की पावन कथा जो कि महर्षिओं के साथ काम्पिल्य नगरी में हुई थी वह मैं तुमसे कहता हूं। ध्यानपूर्वक श्रवण करो।
*परमा एकादशी व्रत कथा—-*
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री अत्यंत पवित्र तथा पतिवर्ता थी। किसी पूर्व पाप के कारण वह दंपत्ति अत्यंत दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहे थे। ब्राह्मण को भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिल रही थी ।उस ब्राह्मण की स्त्री वस्त्र रहित होकर भी अपने पति की सेवा किया करती थी। तथा अतिथियों को अन्न देकर अपना भूखी रह जाती थी। तथा अपने पति से कभी किसी वस्तु की मांग नहीं करती थी। दोनों पति-पत्नी निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
एक दिन ब्राह्मण अपनी स्त्री से बोला- हे प्रिया !जब मैं धनवानों से धन की याचना करता हूं तो वह मुझे मना कर देते हैं। गृहस्ती धन के बिना नहीं चलती इसलिए यदि तुम्हारी सहमति हो तो मैं परदेस जाकर कुछ काम करू क्योंकि विद्वानों ने कर्म की प्रशंसा की है। ब्राह्मण की पत्नी ने विनीत भाव से कहा- हे स्वामी! मैं आपकी दासी हूं। पति भला या बुरा जो कुछ भी कहे पत्नी को वही करना चाहिए। मनुष्य को पूर्व जन्म में किए कर्मों का फल मिलता है। सुमेरु पर्वत पर रहते हुए भी मनुष्य को बिना भाग्य के स्वर्ण नहीं मिलता पूर्व जन्म में जो मनुष्य विद्या और भूमि दान करते हैं उन्हें अगले जन्म में विद्या और भूमि की प्राप्ति होती है। ईश्वर ने भाग्य में जो लिखा है उसे टाला नहीं जा सकता।
यदि कोई मनुष्य दान नहीं करता तो प्रभु उसे केवल अन्न ही देते हैं इसलिए आपको इसी स्थान पर रहना चाहिए क्योंकि मैं आपका विछोह नहीं सह सकती। पति बिना स्त्री की भाई-बहन माता-पिता सभी संबंधी निंदा करते हैं। हे स्वामी कृपा करके आप कहीं ना जाए। जो भाग्य में होगा वह यहीं प्राप्त हो जाएगा।
स्त्री की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेस नहीं गया। इसी प्रकार समय बिता रहा एक बार कौंण्डिन्य ऋषि वहां आए ऋषि को देखकर ब्राह्मण सुमेधा और उसकी स्त्री ने उन्हें प्रणाम किया और बोले आज हम धन्य हुए। आपके दर्शन से आज हमारा जीवन सफल हुआ।
ऋषि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया। भोजन देने के पश्चात पतिवर्ता ब्राह्मणी ने कहा हे ऋषिवर आप हमें दरिद्रता का नाश करने का कोई उपाय बताएं। मैंने अपने पति को धन कमाने परदेस जाने से रोका है। मेरे भाग्य से आप आ गए हैं आप कुछ उपाय बताएं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी। अतः आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिए कोई उपाय बताएं ।
ब्राह्मणी की बात सुन कौंडिण्य ऋषि बोले हे ब्राह्मणी मल मास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से सभी पाप दुख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाती है। जो मनुष्य इस व्रत को करता है वह धनधान्य परिपूर्ण हो जाता है इस व्रत में नृत्य गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए।
यह एकादशी धन वैभव आदि देती है। तथा उत्तम गति प्रदान करती है। धनाधिपति कुबेर ने भी इस व्रत का पालन किया था। इसी से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धन अध्यक्ष का पद प्रदान किया। इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरीश चंद्र को पुत्र स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी।
तदुपरांत कौंण्डिन्य ऋषि ने उन्हें एकादशी के व्रत का समस्त विधान कह सुनाया। ऋषि ने कहा हे ब्राह्मणी !पंच रात्रि व्रत इससे भी अधिक उत्तम है। परमा एकादशी के दिन प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर विधि विधान से पंचरात्रि व्रत आरंभ करना चाहिए।जो व्यक्ति पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं वह परम धाम को प्राप्त होते हैं।जो व्यक्ति पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं वे अपने माता-पिता और स्त्री सहित स्वर्ग को जाते हैं।जो मनुष्य पांच दिन तक संध्या को भोजन करते हैं वे स्वर्ग को जाते हैं।जो व्यक्ति स्नान करके 5 दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं वह समस्त संसार को भोजन कराने का फल पाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत में अश्व दान करते हैं उन्हें तीनों लोगों को दान करने का फल मिलता है। जो मनुष्य उत्तम ब्राह्मण को तिल दान करते हैं वह तिल की संख्या के बराबर वर्षों तक विष्णु लोक में वास करते हैं। जो मनुष्य स्वर्ण दान करते हैं वह सूर्यलोक को जाते हैं। जो मनुष्य 5 दिन तक ब्रह्मचर्य रूप से रहते हैं वे देवांगनाओं के साथ स्वर्ग को जाते हैं। हे ब्राह्मणी !तुम अपने पति के साथ इस व्रत को अवश्य करो। इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होगी।
कौण्डिल्य ऋषि के वचन अनुसार ब्राह्मण और उसकी स्त्री ने परमा एकादशी का 5 दिन तक व्रत किया। व्रत पूर्ण होने पर ब्राह्मण की स्त्री ने एक राजकुमार को अपने यहां आते देखा।
राजकुमार ने ब्राह्मणी की प्रेरणा से एक उत्तम घर जो कि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था उन्हें रहने के लिए दिया तदुपरांत राजकुमार ने आजीविका के लिए एक गांव दिया इस प्रकार ब्राह्मणी और उसके पति की गरीबी और दरिद्रता दूर हो गई। और पृथ्वी पर कई वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात अंत में विष्णु के उत्तम लोक को प्राप्त हुए।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को यह उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए।
*परमा एकादशी व्रत की पूजा विधि–*
परमा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान करें यदि ऐसा संभव न हो तो घर में ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें ।
इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें तदुपरांत तुलसी वृंदावन के सम्मुख स्वच्छ आसन बिछाकर व्रत का संकल्प लें।
हाथ में जौं पुष्प और गंगाजल लेकर हरि: ओम विष्णु विष्णु विष्णु आदि आदि। अमुक गोत्रोत्पन्न (अपने गोत्र का उच्चारण करें) अमुक नाम्ने (अपने नाम का उच्चारण करें) परमा एकादशी उत्तम व्रतं करिक्षे। सहित संकल्प पूर्ण करें।
तदुपरांत तुलसी वृंदावन के सम्मुख भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्नान कराएं। पंचामृत स्नान के उपरांत पुनः शुद्धोदक स्नान कराएं। इसके बाद भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर गंध रोली कुमकुम चढ़ाएं अक्षत के स्थान पर जो का प्रयोग करें।ताम्बुलं पुंगी फलम समर्प्यामि। सुपारी और पान का पत्ता चढ़ाएं।फलम समर्प्यामि।फल चढ़ाएं। द्रव्यं समर्प्यामि द्रव्य चढ़ाएं।
तदोपरांत दिनभर उपवास रखें शाम को तुलसी वृंदावन में पुनः धूप दीप जलाकर परमा एकादशी की कथा पढ़ें या श्रवण करें।पूजा आरती के बाद तीन बार प्रदक्षिणा करें।
इस दिन यदि संभव हो तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। यदि ऐसा संभव ना हो सके तो। द्वादश अक्षर मंत्र-
*”ओम नमो भगवते वासुदेवाय”* का 108 बार जाप करें।
इस दिन रात्रि में भजन कीर्तन सहित रात्रि जागरण करें।

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लेखक-: पण्डित प्रकाश जोशी,गेठिया नैनीताल ।

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