*शुभ मुहूर्त*–

इस बार शारदीय नवरात्र का प्रारंभ दिनांक 15 अक्टूबर 2023 दिन रविवार से होगा यदि तिथि की बात करें तो इस दिन प्रतिपदा तिथि 45 घड़ी 40 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:32 बजे तक रहेगी यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन चित्रा नामक नक्षत्र 29घडी43 पल तक रहेगा। बात यदि योग की करें तो इस दिन 10 घड़ी 5 पल अर्थात प्रातः10:18 बजे तक वैघृति योग तदोपरांत विषकुम्भ नामक योग रहेगा। बात यदि चंद्रमा की स्थिति की करें तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण तुला राशि में विराजमान रहेंगे।

*कलश स्थापना मुहूर्त*
सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन कलश स्थापना मुहूर्त की करें तो इस दिन प्रातः 11:48 बजे से दोपहर 12:36 बजे तक मात्र 48 मिनट तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त रहेगा।

*नवरात्र में कलश पूजन की विधि एवं महत्वपूर्ण मंत्र*
नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना से पूर्व पूर्व इस दिन सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान करें अथवा घर में ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें घर के मंदिर में स्वच्छ आसान बिछाकर बैठें। तदुपरांत कलश स्थापना करें। ध्यान रहे कलश स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करें।

*कलश क नीचे सप्तधान बिछाने का मंत्र*
ओम धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा
व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता
हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्रुषे त्वा
महीनां पयोऽसि।।

*कलश स्थापित करने का मंत्र*
अब जहां कलश रखना हो वहां यह मंत्र बोलते हुए
कलश को स्थापित करें – ओम आ जिघ्र कलशं मह्या
त्वा विशन्त्िविन्दव: । पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं
धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः ।

*स्थापित कलश में जल भरने का मंत्र*
ओम वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो
वरुणस्य ऋहतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि
वरुणस्य ततसदनमा सीद।। इस मंत्र को बोलते हुए
कलश में पूरा जल भर दें।
कलश में चंदन डालें
ओम त्वां गन्धर्वा अखनस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः ।
त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।।
इस मंत्रसे कलश में चंदन लगाएं।

*कलश में सर्वौषधि डालने का मंत्र*
ओम या ओषधी पूर्वाजातादेवेभ्यस्त्रियुगंपुरा। मनै
बभूरूणामह ग्वंग शतं धामानि सप्त च।।

*कलश पर पल्लव रखने का मंत्र*
ओम अश्वस्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।।
गोभाज इ्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् । ।
*कलश में सप्तमृत्तिका रखने का मंत्र*
ओम स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः
शर्म सप्रथाः।
कलश में इस मंत्र से सुपारी रखें
ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः।
बूहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुज्चन्त्व ग्वंग हसः ।।
*कलश में द्रव्य यानी सिक्का रखने का मंत्र*
ओम हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक
आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय
हविषा विधेम।।
*कलश पर चावल से भरा बर्तन रखने का मंत्र*
ओम पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वसनेव
विक्रीणावहा इषमूर्ज ग्वंग शतक्रतो। । इस मंत्र को
बोलते हुए कलश के ऊपर के एक मिट्टी के बर्तन में
चावल भरकर रखें।
*कलश पर नारियल रखने का मंत्र*
ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी:।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुज्चन्त्व हसः ।। इस मंत्र को
बोलते हुए लाल वस्त्र में नारियल लपेटकर कलश के
ऊपर स्थापित करें।
*अब इन मंत्रों से कलश की पूजा करें।*
कलश में वरुण देवता का आह्ान और ध्यान करें।
औम तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते
यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश
स मा न आयुः प्र मोषीः: । अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्ं
सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि । ओम भूर्भुवः
स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि,
पूजयामि, मम पूजजां गृहाण। ‘ओम अपां पतये वरुणाय
नमः’।

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता है। उससे ठीक 1 दिन पहले यानी आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को पितृगण विदा हो जाते हैं। जिसके तुरंत बाद दुर्गा माता का आगमन होता है। पहले नवरात्र को कलश स्थापना के साथ पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है जैसा कि दुर्गा सप्तशती में उल्लेख किया गया है-
*प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चंद्रघंटेत कुष्मांडलेति चतुर्थकम।। पंचमं स्कंदमातेति षष्टं कात्यायनीती च। सप्तम कालरात्रि च महागौरीतिचाष्ठमं।। नवम सिद्धिदात्री च। नवदुर्गा प्रतेतिता।।*

अर्थात पहली नवरात्र को मां शैलपुत्री की पूजा द्वितीय नवरात्र को ब्रह्मचारिणी की पूजा तीसरे नवरात्रि को माता चंद्रघंटा की पूजा चौथे नवरात्र को माता कुष्मांडा की पूजा पांचवा नवरात्र को स्कंदमाता की पूजा छठे नवरात्र को कात्यायनी माता की पूजा सातवें नवरात्रि को माता कालरात्रि की पूजा आठवीं नवरात्रि को महागौरी की पूजा एवं नवी नवरात्र को माता सिद्धिदात्री की पूजा मां दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है। कलश स्थापना के साथ पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है इस वर्ष 2023 में शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ दिनांक 15 अक्टूबर दिन रविवार से हो रहा है। एक महत्वपूर्ण बात पाठकों को बताना चाहूंगा कि इस वर्ष मां दुर्गा हाथी की सवारी पर धरती लोक में पधारेंगे।। जिस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार माता अपनी सवारी अपने वाहन पर सवार होकर आती है। माता अपने भक्तों को एक विशेष प्रकार की सांकेतिक सूचना भी देती है। देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा की सवारी के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है। जिससे आप यह पता लगा सकते हैं कि किस दिन किस सवारी से माता धरती पर पधारती है। जिस संबंध में एक महत्वपूर्ण श्लोक लिखा है-

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*शशि सूर्य गजरूढा शनिभौमे तुरंग मे ।*
*गुरौशुक्रेच दौलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता।।*

अर्थात इस श्लोक के अनुसार यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से प्रारंभ होती है तो माता हाथी पर विराजमान होकर आती है। यदि नवरात्रि शनिवार या मंगलवार से प्रारंभ हो तो माता की सवारी घोड़ा होती है। वहीं यदि शुक्रवार और गुरुवार को नवरात्रि प्रारंभ हो तो माता रानी डोली में आती है। और अंत में यदि नवरात्रि प्रारंभ बुधवार से हो तो माता का आगमन नौका पर होता है। वैसे माता का मुख्य वाहन सिंह है।
इसी प्रकार अनेक वाहनों पर सवारी का अर्थ भी भिन्न-भिन्न होता है अर्थात हाथी की सवारी का अर्थ सांकेतिक अधिक वर्षा माना जाता है। इसका अर्थ है कि इस बार वर्षा अधिक होगी। जिसके प्रभाव से चारों ओर हरियाली होगी। इससे फसलों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है इससे देश में अन्न के भंडार भी भरे रहेंगे। साथ ही धन-धान्य में वृद्धि होगी एवं संपन्नता आएगी ठीक इसी प्रकार इस साल शारदीय नवरात्रि का समापन
दिनांक 23 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार को तथा विजयादशमी पर्व दिनांक 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
अब प्रिय पाठकों को बताना चाहूंगा कि इस बार नवरात्रि को किस तिथि को कौन देवी की पूजा होगी।
दिनांक 15 अक्टूबर माता शैलपुत्री
16 अक्टूबर माता ब्रह्मचारिणी
17 अक्टूबर माता चंद्रघंटा
18 अक्टूबर माता कुष्मांडा
19 अक्टूबर माता स्कंदमाता
20 अक्टूबर माता कात्यायनी
21 अक्टूबर माता कालरात्रि
22 अक्टूबर माता महागौरी
तथा दिनांक 23 अक्टूबर दिन सोमवार को माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाएगी। एवं दिनांक 24 अक्टूबर दिन मंगलवार को विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी
के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि
विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे
तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक,
सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए
आवश्यक है।
आप सभी को सपरिवार शारदीय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं।
नवदुर्गा की कृपा आप और हम सभी पर बनी रहे।
।।जै माता दी।।
लेखक-:  आचार्य पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया, नैनीताल।

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