हरियाली तीज पर प्रातः से लेकर रात 9:19 तक सिद्धि योग रहेगा इसके बाद साध्य योग बनेगा जोकि अगले दिन प्रातः काल तक रहेगा। वही रवि योग देर रात 1:47 बजे से प्रारंभ होगा और अगले दिन 20 अगस्त को सुबह 5:53 बजे पर समाप्त होगा इसके अलावा इस दिन यदि नक्षत्रों की बात करें तो उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र है जो प्रातः से लेकर देर रात 1:47 बजे तक रहेगा। इस दिन कन्या राशि में चंद्रमा मंगल और शुक्र की युति से त्रिग्रही योग का निर्माण होगा जो व्रत करने वाले को धन और करियर में लाभ प्राप्त करायेगा।
वही एक और सिंह राशि के सूर्य और बुध की युति से बुधादित्य योग बन रहा है।
*पूजा का शुभ मुहूर्त*
इस बार हरियाली तीज की पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त के योग बन रहे हैं। इस दिन आप प्रातः 7:30बजे से लेकर 9:08 बजे तक पूजा कर सकते हैं इसके बाद आप दोपहर में 12:25 से शाम 5:19 बजे तक पूजा कर सकते हैं।
हरियाली तीज को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए 108 जन्मों तक कठोर तप किया था। इस कठोर तप के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती के पूजन से सुहागिन स्त्रियों को सौभाग्य पूर्ण जीवन और उनके पतियों को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। हरियाली तीज के दिन कुंवारी कन्या मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। वही सुहागिन महिलाओं द्वारा निर्जला व्रत किया जाता है।
*हरे रंग का महत्व*
हरियाली तीज पर हरे रंग का प्रयोग करें इस दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता है। इसलिए इस दिन हरी साड़ी के साथ हरी चूड़ियां भी पहनने का प्रचलन है। क्योंकि हरा रंग भगवान शिव को प्रिय है इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है इससे परिवार में खुशहाली आती है। हरियाली तीज का व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह पर्व नाग पंचमी से दो दिन पूर्व मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता पार्वती के साथ भगवान शिव और भगवान गणेश जी की पूजा करती हैं। इस तीज के अवसर पर मेहंदी लगाना अत्यधिक शुभ माना जाता है महिलाएं और युवतियां अपने हाथों पर मेहंदी लगाती है।
*व्रत कथा*– –
एक बार भगवान शिव ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के महात्म्य की कथा कही थी। श्री भोले शंकर गौरी से कहते हैं- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में 12 वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इस अवधि में तुमने अन्न न खा कर पेड़ों के सूखे पत्ते चबाकर व्यतीत किए। पौष माघ की विकराल शी त में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। जेठ वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। सावन मास की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।
नारद जी ने कहा गिरिराज में भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वह आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं। नारद जी की बात सुनकर गिरिराज गदगद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्न चित होकर वे बोले श्रीमान यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वह तो साक्षात ब्रह्म है। हे महर्षि !यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे। तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारद जी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। परंतु इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।
तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्ता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया कि मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव शंकर का वरण किया है किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित कर दिया है। मैं विचित्र धर्म संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त और कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सुझबुझ वाली थी। उसने कहा सखी प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति रूप में ह्रदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया जीवन पर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एक निष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें एक घनघोर जंगल में ले चलती हूं जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाए। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने ऐसा ही किया ।तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वह सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णु से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर- सोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उसदिन तुमने रेत से शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। मेरी स्तुति की गीत गाकर जागी। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा। तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब मैं तथास्तु कहकर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण किया। उसी समय अपने मित्र बंधुओं दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हेंखोजते खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनके आंखों में आंसू उमड़ आए थे। तुमने उनके आंसू पोछते हुए विनम्र स्वर में कहां पिताजी मैंने अपने जीवन काअधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णु जी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी की आप मेरा विवाह विष्णु जी से न करके महादेव जी से करेंगे। गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि विधान पूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया। हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंवारियों को मनवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एक निष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

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लेखक–:  पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ।

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