*अब होगी कुमाऊं में झोड़ा चांचरी की धूम नजदीक हैं सातों -आठों व्रत-:*
देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में एक महत्वपूर्ण त्यौहार है बिरुड पंचमी और सातूं-आठूं व्रत। बिरोड़ा पांच प्रकार के अनाजों जैसे भट्ट, उड़द, चना, गेहूं आदि 5 अनाजों को भिगोकर बनाते जाते हैं। देवभूमि उत्तराखंड देवी देवताओं की भूमि रही है। यहां शक्ति स्वरूप मां नंदा (गमरा) को भक्त समाज एक ही भाव से देखता है। इस दौरान गांव-गांव में गमरा- महेश की स्थापना कर पूजा होगी साथ ही महिलाएं सामूहिक रूप से लोकनृत्य, झोड़ा, चांचरी का गायन भी करेंगी । जिससे इस दौरान गांवों में उत्सव का माहौल रहेगा ।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार दिनांक 28 अगस्त 2025 दिन गुरुवार को बिरुड़ पंचमी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन 30 घड़ी 17 पल अर्थात शाम 5:57 बजे तक पंचमी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो चित्रा नामक नक्षत्र सात घड़ी 12 पल अर्थात प्रातः 8:45 बजे तक है। यदि चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण तुला राशि में विराजमान रहेंगे। यदि सातों व्रत (संतान सप्तमी व्रत) की बात करें तो दिनांक 30 अगस्त दिन शनिवार को सातों व्रत मनाया जाएगा। आठों व्रत अर्थात दुर्वा अष्टमी, नंदा अष्टमी ,राधा अष्टमी रविवार दिनांक 31 अगस्त को मनाई जाएगी।
सातूं – आठूं व्रत की कथा को महिला वर्ग लोकगीत के रूप में गाती हैं। जब यहां की बहु गमरा से संतान की कामना करते हैं तो देवी कहती हैं –
* *गौरादेवी को सप्तमी को व्रत करूं सासु सप्तमी को व्रत ।*
* इसके बाद सास कहती हैं-
* *सात समुन्दर पार बटिकलाओ कुकुडी – माकुल को फूल ।*
अर्थात सात समंदर पार से कुकुडी माकुल के फूल लाओ।
बहु कहती है –
* *गहरी छू गंगा, चिफलो छू बाटो कसिक ल्यूलो इजू कुकुडी माकुल को फूल।*
* अर्थात नदी गहरी है एवं रास्ता फिसलने वाला है ऐसे में हे माताजी! कुकुडी माकुल के फूल किस प्रकार से लाऊं। सप्तमी के दिन महिलाएं झुंड के रूप में एकत्रित होकर बिरुड़ के वर्तनों को सिर में रखकर नदी जलश्रोत या नौले में जाती है। पानी के समीप घास से गमरा की मूर्ति बनाती हैं। जिसे कुमाऊनी वेश भूषा के वस्त्रआभूषण पहनाकर एक डलिया में रखकर सिर में धारण कर शंख घंटी ध्वनि के साथ घर के आंगन में गमरा के जन्म से ससुराल जाने तक के गीत गाये जाते हैं। महिलाएं इसे बिरुड़ चढ़ाते हैं। दूसरे दिन महेश्वर जिसे स्थानीय भाषा में मैसर या कहीं मैसु कहते हैं। की आकृति की मूर्ति बनाई जाती है। ब्राह्मण स्त्रोत पाठ से प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं। तथा मैसर के साथ गौरा को डलिया में स्थापित किया जाता है।
*श्री साम्बसदाशिव प्रितिपूर्वकं ऐहिकामुष्मिक सकल सुख सौभाग्य संतति वृद्धये मुक्ता भरण सप्तमी व्रतं करिक्षे ।* संकल्प सहित इस प्रकार चित्रांकन करती हैं। ध्यान रहे एक बार व्रत लेने के बाद
फिर प्रत्येक वर्ष यह व्रत छूटना नहीं चाहिए।
हमारी देवभूमि की एक मुख्य विशेषता है जहां देवी देवताओं को एक अलग अंदाज में रिश्ते नाते की भावना से या दृष्टि से देखा जाता है।जो अन्यत्र बहुत कम देखने को मिलता है।
सातू आठू पर्व में महादेव शिव को भिनज्यू (जीजाजी) और माँ गौरी को दीदी के रूप में पूजने की परम्परा है। सातों आठों का अर्थ है सप्तमी और अष्टमी का त्यौहार। भगवान शिव को और माँ पार्वती को अपने साथ दीदी और जीजा के रिश्ते में बांध कर यह त्यौहार मनाया जाता है। यही इस त्यौहार की सबसे बड़ी विशेषता है।
कहते है जब दीदी गवरा (पार्वती) जीजा मैशर (महेश्वर यानि महादेव) से नाराज होकर अपने मायके आ जाती है , तब महादेव उनको वापस ले जाने ससुराल आते है। दीदी गवरा की विदाई और भिनज्यू (जीजाजी) मैशर की सेवा के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कुमाऊँ सीमांत में सांतू आंठों के नाम से तथा पड़ोसी देश नेपाल में गौरा महेश्वर के नाम से मनाया जाता है। इस लोक पर्व को गमरा पर्व भी कहा जाता है।
समस्त देवभूमि वासियों को बिरुड़ पंचमी पर्व एवं सातों – आठों पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
*आलेख-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*