सनातन धर्म पर आधारित सभी संस्कार हिंदू नव वर्ष के विक्रम संवत से ही किए जाते हैं। विक्रम संवत का आरंभ आज से 2080 वर्ष पूर्व यानी ईस्वी सन् से 57 वर्ष पूर्व हुआ था। वर्तमान में इस वर्ष विक्रम संवत 2080 है। अर्थात विक्रम संवत 57 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। आंग्ल वर्ष के जिस वर्ष का विक्रम संवत ज्ञात करना हो उस वर्ष के ईसवी सन में 57 जोड़ने से विक्रम संवत प्राप्त होगा। उदाहरणार्थ इस वर्ष सन् 2023 में 57 जोड़ने से 2080 हुआ । इसवी सन का आरंभ सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय से हुआ।


विक्रम संवत का पौराणिक महत्व, ,,,,,,,, पुराणों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण किया था इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर अथवा नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है शास्त्री मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रातः काल स्नानादि से शुद्ध होकर हाथ में गंध अक्षत पुष्प और जल लेकर ओम भूर्भुवः स्व: संवत्सर अधिपति आवाहयामि पूजयामि च इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए।
जिस प्रकार ईसाई नववर्ष हमारे देश में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है हिंदू नव वर्ष इससे और अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। विक्रम संवत अत्यंत प्राचीन संवत है। साथ ही साथ यह गणित की दृष्टि से अत्यंत सुगम और सर्वथा ठीक हिसाब रखकर निश्चित किए गए हैं। यहां के महीनों के नाम देवता मनुष्य संख्यावाचक कृत्रिम नाम नहीं है। यही बात तिथि तथा अंश दिनांक के संबंध में भी है। सूर्य चंद्र की गति पर आश्रित है। महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं जैसे चैत्र चित्रा नक्षत्र पर, वैशाख- विशाखा, जेष्ठ- जेष्ठा, आषाढ पूर्वाषाढा, श्रावण श्रवण नक्षत्र पर आधारित हैं। इसी प्रकार भादो या भाद्रपद पूर्वाभाद्रपद अश्विनी आश्विन कार्तिक कृतिका मार्गशीर्ष माह मृगशिरा पौष मास पुष्य नक्षत्र पर आधारित है। माघ मघा नक्षत्र पर आधारित है तथा फाल्गुन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र पर आधारित है ।

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कैसे हुआ विक्रम संवत का प्रारंभ?, ,,,,,,,,,, ऐसा माना जाता है कि जब विक्रम संवत प्रारंभ नहीं हुआ था तब युधिष्ठिर संवत, कलयुग संवत और सप्त ऋषि संवत प्रचलित थे। हमारे सनातन धर्म में सप्त ऋषि संवत का प्रारंभ 3076 ईसवी पूर्व हुआ था। जबकि कलयुग संवत की शुरुआत 3102 ईसवी पूर्व हुई थी। इसी दौरान युधिष्ठिर संवत भी प्रारंभ हुआ था। इन सभी संवत्सर का प्रारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन से ही हुआ था । विक्रम संवत में वार नक्षत्र और तिथियों का स्पष्टीकरण किया गया। इसमें पंचांग की बातों के साथ ही बृहस्पति वर्ष की गणना को भी शामिल किया गया था।

विक्रम संवत का प्रारंभ कैसे हुआ आज पाठकों को इस संबंध में विशेष जानकारी देना चाहूंगा। न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य न्याय प्रिय और अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रखने वाले शासक के रूप में जाना जाता था। विक्रमादित्य के समय में उज्जैन सहित भारत के एक बहुत बड़े भूभाग पर विदेशी शकों का शासन हुआ करता था। यह लोग अत्यंत क्रूर प्रवृत्ति के थे। यह अपनी प्रजा को सदैव कष्ट दिया करते थे। राजा विक्रमादित्य ने संपूर्ण भारतवर्ष को शकों के अत्याचारों वाले शासन से मुक्त करके अपना शासन स्थापित किया और जनता को भय मुक्त जीवन दिया इसी विजय की स्मृति के रूप में विक्रमादित्य ने विक्रम संवत पंचांग का निर्माण करवाया था इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का प्रारंभ हुआ। जिसे दुर्भाग्यवश आज भारत का राष्ट्रीय संवत माना जाता है।

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इसके अतिरिक्त पाठकों को एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि संवत्सर के बारे में जानकारी एवं अपनी राशियों के बारे में जानकारियां किसी मंदिर में अथवा घर में पंडित जी के श्री मुख से श्रवण करने से लाभ प्राप्त होता है।

कैसा रहेगा नया संवत्सर?कौन होगा राजा, कौन मंत्री?किन ग्रहों को शामिल किया गया है इस बार मंत्री मंडल में? किस राशि वालों की चमकेगी किस्मत?किस राशि पर है शनि देव की टेढ़ी नजर। अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा।

लेखक-: पंडित प्रकाश जोशी गेठिया, नैनीताल।

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