अश्विनी मास की पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा कहते हैं। यह पूर्णिमा व्रत धन व समृद्धि का आशीष देती है। हिंदू धर्म में इस दिन को जागरण व्रत रखा जाता है। इसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का रिवाज है।
कोजागिरी पूर्णिमा को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है यह व्रत लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने वाला माना जाता है।

 

कोजागरी शब्द 3 शब्दों से मिलकर बना है। कोजागिरी का अर्थ है कौन जाग रहा है?
को जागि री(को+ जागि+री) यह कुमाऊनी भाषा के 3 शब्दों के संयुक्त होने से बना शब्द है जिसका अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है? इस दिन मध्य रात्रि को माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करती है और कोजागिरी कोजागिरी पुकारती है माता लक्ष्मी के जो भक्त जागरण कर रहे होते हैं उन्हें माता लक्ष्मी अनेक प्रकार के धन-संपत्ति आदि प्रदान करती है।
शुभ मुहूर्त,,,,
इस बार सन् 2022 में दिनांक 9 अक्टूबर 2022 दिन रविवार को कोजागिरी पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दिन 50 घड़ी 30 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 2:24 बजे तक पूर्णिमा तिथि है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन उत्तराभाद्रपदा नामक नक्षत्र 25 घड़ी 15 पल अर्थात शाम 4:18 तक है तदुपरांत रेवती नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें इस दिन ध्रुव नामक योग 30 घड़ी 47 पल अर्थात सायं 6:31 बजे तक है। यदि चंद्रमा की स्थिति के बारे में जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मीन राशि में विराजमान रहेंगे।

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कोजागिरी व्रत विधि,,,
नारद पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को प्रातः स्नान कर उपवास करना चाहिए। इस दिन पीतल चांदी तांबे या सोने से बनी लक्ष्मी की प्रतिमा को कपड़े से ढक कर विभिन्न विधियों द्वारा देवी पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात रात्रि को चंद्र उदय होने पर घी के 11 दीपक जलाने चाहिए। दूध से बनी हुई खीर को बर्तन में रखकर चांदनी रात में रख देना चाहिए। यदि संभव हो तो चांदी का बर्तन होना चाहिए अन्यथा किसी भी बर्तन पर खीर रखनी चाहिए। और प्रातः चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाकर उसमें से ही ब्राह्मणों को प्रसाद स्वरूप दान देना चाहिए और तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप सभी सदस्यों में बांट देना चाहिए इस दिन रात के समय जागरण या पूजा करनी चाहिए इसके अतिरिक्त इस व्रत की महिमा से मृत्यु के पश्चात वर्ती सिद्धत्व को प्राप्त होता है।
एक प्रचलित कथा के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी रात के समय भ्रमण कर यह देखती है कि कौन जाग रहा है। जो जागता है उसके घर मैं मां अवश्य आती है। ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा को किए जाने वाला कोजागिरी व्रत लक्ष्मी जी को अति प्रिय है। इसलिए इस व्रत का श्रद्धा पूर्ण पालन करने से लक्ष्मी जी अति प्रसन्न हो जाती है और धन वृद्धि का आशीष देती है।

कोजागिरी व्रत कथा,,,,,,
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक साहूकार को दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी । व्रत अधूरा रहने के कारण छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। एक दिन अपना दुख जब उसने एक पंडित को बताया तो उन्होंने बताया कि व्रत अधूरा रखने के कारण ऐसा होता है यदि तुम पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। इसके बाद उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया और इस के पुण्य से उसे संतान की प्राप्ति हुई परंतु वह भी कुछ दिनों बाद मर गया। उसने लड़के को एक पीड़ा पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया और फिर बड़ी बहन को बुलाकर घर ले आई और बैठने के लिए वही पीड़ा दे दिया बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका लहंगा बच्चे को छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता तो तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तब से यह दिन एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।

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लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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