नैनीताल । उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम और बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए नाबालिग युवक की सज़ा को निलंबित कर दिया है और उसे तत्काल जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने निचली अदालत देहरादून द्वारा 30 सितंबर 2023 को सुनाए गए फैसले पर रोक लगाते हुए, ट्रायल की पूरी प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण करार दिया। इस किशोर पर नारी निकेतन देहरादून से भागी युवती के साथ दुराचार सहित अन्य गम्भीर आरोप थे ।
कोर्ट ने अपने आदेश में पाया कि दोषी (बाल अपराधी) प्रीतम सिंह के खिलाफ ट्रायल में किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट) की अनिवार्य धाराओं 15 और 19 का घोर उल्लंघन किया गया था, जिससे पूरी न्यायिक कार्यवाही ही दूषित हो गई है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले त्रिमूर्ति बनाम राज्य (2024) का हवाला देते हुए कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजे बोर्ड) द्वारा बाल अपचारी को वयस्क के रूप में ट्रायल के लिए भेजने से पहले प्राथमिक मूल्यांकन नहीं किया गया, जो कि कानूनन अनिवार्य है।
सुनवाई के दौरान राज्य के उप महाधिवक्ता ने जुवेनाइल (बाल अपराधी) द्वारा जघन्य अपराध किए जाने की दलील देते हुए जमानत का विरोध किया, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ‘ओम प्रकाश उर्फ इसराइल उर्फ राजू उर्फ राजू दास बनाम भारत संघ’ (2025) का उल्लेख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में साफ किया था कि यदि जुवेनाइल होने की दलील पर उचित प्रक्रिया के साथ निर्णय नहीं लिया गया है, तो यह दलील मामले के अंतिम निस्तारण के बाद भी किसी भी अदालत में उठाई जा सकती है।
कानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन के अलावा, हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष की कहानी पर भी गंभीर संदेह व्यक्त किया। कोर्ट ने न्यायिक संज्ञान लिया कि कथित घटना की तारीख 24 जुलाई 2020 को कोविड की दूसरी लहर के कारण सख्त पाबंदियां (लॉकडाउन) लागू थीं और लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित थी। ऐसे में, एक नाबालिग लड़की का सुबह 8:30 बजे बालिका निकेतन से भागकर, सार्वजनिक रूप से 10 किलोमीटर पैदल चलकर देहरादून से हर्रावाला स्टेशन तक जाना और किसी का ध्यान न जाना अविश्वसनीय है।
संदेह का एक अन्य महत्वपूर्ण आधार चिकित्सकीय और रेलवे के नियम थे। कोर्ट ने नोट किया कि जबरन खींचकर जंगल में ले जाकर यौन उत्पीड़न के आरोपों के बावजूद, मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर पर कोई बाहरी या आंतरिक चोट दर्ज नहीं की गई, जो अभियोजन की कहानी को संदिग्ध बनाता है। इसके अलावा, रेलवे के नोटिफिकेशन के अनुसार, स्टेशन में प्रवेश के लिए कन्फर्म टिकट अनिवार्य था और देहरादून से बाहर जाने वाली एकमात्र ट्रेन काठगोदाम के लिए थी, न कि पीड़िता के बताए अनुसार दिल्ली के लिए, जिससे उसके बयान की सत्यता पर संदेह होता है।
इन सभी गंभीर कानूनी और तथ्यात्मक विसंगतियों को देखते हुए, हाईकोर्ट ने प्रीतम सिंह की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने स्पेशल सेशन ट्रायल नंबर 87 ऑफ 2020 में स्पेशल जज (पॉक्सो एक्ट)/एडिशनल सेशन जज, देहरादून द्वारा दी गई सज़ा को निलंबित करते हुए, उसे ₹10,000/- के निजी मुचलके पर तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया।