प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार देश विदेश से आए करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित हुए हैं। यहां अनेकों श्रद्धालु स्नान दान के अतिरिक्त चूड़ाकरण संस्कार एवं यज्ञोपवीत संस्कार करवाने भी दूर दूर से पहुंचे हैं।इसी क्रम में उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग से आये श्रद्धालुओं द्वारा यहां कुमाउनी रीति रिवाज से यज्ञोपवीत संस्कार करवाये गये।

इस बार प्रयागराज में 12वां महाकुंभ बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा योग मुहूर्त प्रत्येक 144 वर्ष बाद आता है। प्रयागराज का वर्णन हमारे वेदों पुराणों उपनिषदों एवं सनातन धर्म ग्रंथो में मिलता है।

 

यदि वेदों की बात करें तो वेदों में इस पावन स्थल को प्रयागराज ना कह कर सितासित संगम कहा गया है। ऋग्वेद के अनुसार –
*सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतंतई।*
सित अर्थात श्वेत धवल गंगा,असित अर्थात गहरे रंग की यमुना नदी,संगते अर्थात संगम को कहा गया है। इस पवित्र संगम को पहली बार प्रयाग नाम उपनिषद में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयाग ही वह जगह है जहां शंखासुर से वेदों को मुक्त करने के लिए भगवान का मत्स्य अवतार हुआ। जहां ब्रह्मा जी ने बहुत बड़े पैमाने पर यज्ञ का आयोजन किया और जहां पर वेदों को रखा गया। इसी कारण इसका नाम प्रयाग पड़ा। “प्र”अर्थात बहुत बड़ा। “याग”अर्थात यज्ञ। बात यदि महाभारत की करें तो महाभारत के आदि पर्व के अनुसार वरुण सोम और प्रजापति की जन्मस्थली प्रयागराज मानी गई है। और बात यदि रामायण की करें तो।
*को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ।*
*कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।*
*अस तीरथपति देखि सुहावा।*
*सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।*
अर्थात पापों के समूह रूपी हाथी को मारने के लिए सिंह रूप प्रयागराज का वर्णन कौन कर सकता है ।ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र रघुकुल श्रेष्ठ राम ने भी सुख पाया।

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*लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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