*सभी जप,यज्ञ,दान आदि का फल प्राप्त होता है जया एकादशी व्रत से जानिए कथा, महत्व, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि*

 


पद्म पुराण में वर्णित इस एकादशी की कथा
के अनुसार देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे
और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते
थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन
वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे
और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधवों में
प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती
और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी
उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र
पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी
उपस्थित थे।पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर
उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर
काम-बाण चलाने लर्गी। उसने अपने रूप
लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में
कर लिया। हे राजन्! वह पुष्पवती अत्यंत
सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए
गान करने लगे, परंतु परस्पर मोहित हो जाने
के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था।
इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर -ताल ठीक
नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और
उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर
उनको शाप दे दिया।इंद्र ने कहा- है मूखों! तुमने मेरी आज्ञा का
उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिव्कार
है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु
लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और
अपने कर्म का फल भोगो। इंद्र का ऐसा शाप
सुनकर वे अत्यंत दुःखी हुए और हिमालय
पर्वत पर दुःखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत
करने लगे।
उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी
ज्ञान नहीं था। वहां उनको महान दुःख मिल
रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं
आती थी। उस जगह अत्यंत शीत था, इससे
उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दांत
बजते रहते।एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि
पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए
थे, जिससे हमको यह दुःखदायी पिशाच योनि
प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से तो नर्क के
दुःख सहना ही उत्तम है। अतः हमें अब किसी
प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार
विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे
थे।
दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की
जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने
कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप
कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही
दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय
महान दुःख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए।
उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। उस
रात को आत्यंत ठंड थी, इस कारण वे दोन
शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के
समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि
को उनको निद्रा भी नहीं आई।जया एकादशी के उपवास और रात्रि के
जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी
पिशाच योनि छूट गई। अत्यंत सुंदर गंधर्व और
अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्भूषणों
से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को
प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता
उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे।
स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र
को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रू्प में
देखकर अत्यंत आश्वर्यचकित हुए और पूछने
लगे कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस
तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ।माल्यवान बोले कि हे देवन्द्र ! भगवान विष्णु
की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव
से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले
कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और
एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी
पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी
वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के
भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अतः आप धन्य
है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार
करो।
अतः इस जया एकादर्शी के व्रत से बुरी योनि
छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का
व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान
आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का
व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वग्ग
में वास करते हैं। ऐसी इस एकादशी की
महिमा है।
*शुभ मुहूर्त*
इस बार दिनांक 20 फरवरी 2024 दिन मंगलवार को जया एकादशी व्रत मनाया जाएगा। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो साथ घड़ी 45 पाल अर्थात प्रातः 9:56 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन आर्द्रा नामक नक्षत्र 13 घड़ी 25 पाल अर्थात दोपहर 12:12 तक रहेगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन प्रीति नामक योग 12 घड़ी 10 पाल अर्थात 11:42 बजे तक है। इस दिन विष्टि नामक करण सात घड़ी 45 पर अर्थात प्रातः 9:56 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे।
*पूजा विधि*
एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समीप के किसी नदी या जल स्रोत में स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो स्नान के जाल में गंगाजल मिलकर स्नान करें। तदुपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर में पूजा घर में या तुलसी वृंदावन के सम्मुख स्वच्छ आसान बिछाकर एक चौकी के ऊपर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें स्नान कराएं पंचामृत स्नान कराकर तदुपरांत पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। रोली कुमकुम और जौं चढ़ाएं। षोडशोपचार पूजन करें।
लेखक-: ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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