.ओखलकांडा के मटेलाकांडा गाँव में 30 सितम्बर से 8 अक्टूबर तक आयोजित श्रीमद् देवी भागवत कथा के तीसरे दिन कथा सुनाते हुए कथा वाचक आचार्य पंडित नीरज चन्द्र त्रिपाठी जी ने कहा कि प्रलय काल के समय जब पूरा संसार एकार्णव में निमग्न हो रहा था, उस समय भगवान विष्णु शेषनाग शैय्या पर लेटे निंद्रा कर रहे थे। तभी उनके कानों के मैल से दो भयंकर राक्षस प्रकट हुए। जिनके नाम मधु और कैटभ थे । उन दोनों राक्षसों ने भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल में बैठे ब्रह्मा को खाने का प्रयास कर रहे थे। तभी ब्रम्हा जी डर गए और उन्होंने निंद्रा देवी की स्तुति की और कहा कि हे देवी भगवान विष्णु की आंखों से बाहर हो जाइए और प्रभु के मन में इन दोनो राक्षसों के वध करने का उत्साह भर दो।
आचार्य त्रिपाठी ने कहा कि ईश्वर की शक्ति से कोई भी शक्ति पार नहीं पा सकती है। उन्होने कहा कि बलशाली दोनों ही राक्षस मधु और कैटभ ने भगवान विष्णु के साथ लगातार पांच हजार वर्षो तक युद्ध किया। तत्पश्चात भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और उन्होंने राक्षस का सर अपनी जंघा पर रखकर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन केटभ वहां से भाग निकला। धीरे धीरे केटभ का अत्याचार बढ़ता चला गया और तीनों लोकों मे त्राहि त्राहि मच गई। केटभ के अत्याचारों से परेशान देवताओं ने अपनी शक्तियों से एक आकृति उत्पन्न की जो कि मां दुर्गा के रूप में प्रकट हुई और उनके द्वारा राक्षस केटभ का वध किया गया। मधु केंटभ का वध तथा मां दुर्गा की महिमा सुनकर सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए और मां दुर्गा के जयजयकारों से मंदिर परिसर गूंज उठा। कथा के प्रारंभ में विधि विधान व मंत्रो उच्चारण के साथ आचार्य पण्डित पवन उपाध्याय व पण्डित सुरेश त्रिपाठी द्वारा व्यास पूजन, आरती आदि की गई। कथा के मुख्य यजमान सुरेश चंद्र रूवाली, मनोज रूवाली, हरीश चंद्र, देवी दत्त, गिरीश, कमल, दीपक समस्त रुवाली परिवार व ग्रामवासी हैं। कथा के बीच बीच में व्यास जी द्वारा भागवत के संगीतमय भजनो से माहौल भागवतमय एवं भक्तिमय बना दिया जिससे श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। कथा सुनने के लिए आस पास के दर्जनों गांवों के लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है।