*बहुत महत्वपूर्ण है बैशाख अमावस्या। आईए जानते हैं शुभ मुहूर्त ,महत्व एवं पौराणिककथा।*
अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित है।
अमावस्या तिथि पर पूर्वजों की आत्मा की
शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म
के कार्य किए जाते हैं। इसी तरह वैशाख माह
में आने वाली अमावस्या का विशेष महत्व है।
आइए जानते हैं 7 या 8 मई कब है वैशाख
अमावस्या और स्नान दान का शुभ मुहूर्त कब
से कब तक रहेगा।
*शुभ मुहुर्त*
वैशाख अमावस्या तिथि 7 मई को प्रातः 11:41 मिनट पर आरंभ हो
जाएगी और अगले दिन यानी 8 मई को प्रातः 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसी में
अमावस्या तिथि दो दिन मनाई जाएगी।
जिसमें पित्र संबंधित कार्यों के लिए 7 मई का
दिन शास्त्र सम्मत रहेगा। क्योंकि, पितृ क्रम
उस अमावस्या तिथि को किया जाता है।
जिसमें दोपहर के समय अमावस्या तिथि
प्रभावी होती है। लेकिन, अमावस्या का स्नान,
दान और पूजन संबंधित कर्म 8 तारीखको किया जाएगा। क्योंकिे, 8 तारीख को उदया तिथि में अमावस्या तिथि वर्तमान
रहेगी। शास्त्रों का मत है कि जब उदया तिथि
होती है उसी में तिथि का मान होता है।
इसलिए 8 तारीख को देव कर्म किए जाएंगे।
वैशाख अमावस्या स्नान, दान का शुभ मुहूर्त
वैशाख अमावस्या का स्नान दान 8 मई को
किया जाएगा। इस दिन ब्रह्म मुहुर्त में सुबह 4
बजकर 10 मिनट से 4 बजकर 52 मिनट
तक आप अमावस्या तिथि के स्नान कर सकते हैं। वहीं दान पुण्य का कार्य चौघड़िया मुहूर्त में प्रातः 5:34 बजे से प्रातः 7:15 बजे तक करना शुभ फलदाई रहेगा।
*वैशाख अमावस्या पर व्रत पूजा का महत्व:-*
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या के
दिन पितरों के नाम से तर्पण, दान पुण्य और
व्रत किया जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष
की पूजा करने से भी पितरों को शांति मिलती
है। पीपल के वृक्ष में पितरों का वास माना
जाता है। इस दिन पीपल का वृक्ष लगाना भी
मंगलकारी माना जाता है।
*वैशाख माह की पौराणिक कथा:*
बहुत समय पहले धर्मवर्ण नाम के एक विप्र थे। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि घोर कलियुग में भगवान विष्णु के नाम
स्मरण से ज्यादा पूण्य किसी भी कार्य में नहीं है। जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता है उससे कहीं अधिक पुण्य फल नाम
सुमिरन करने से मिल जाता है।धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर सन्यास
लेकर भ्रमण करने निकल गए। एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचे।वहां धर्मवर्ण के पितर बहत कष्ट में थे।
पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है।क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने
वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो,
संतान उत्पन्न करों तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के
दिन विधि-विधान से पिंडदान करें।धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी इच्छाओं को अवश्य पूर्ण करेगा।
तत्पश्चात धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन
में वापस लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।
*लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*