नैनीताल। गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि के अंतिम वर्ष के छात्र चित्रांश देवलियाल ने नई दिल्ली में आयोजित बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (बिमस्टेक) शिखर सम्मेलन में भारत का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया।
विदेश मंत्रालय और भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के तत्वावधान में आयोजित यह शिखर सम्मेलन नई दिल्ली के विश्व युवक केंद्र में गत 19 से 24 फरवरी के मध्य संपन्न हुआ। इस शिखर सम्मेलन में बिमस्टेक के सात देशों – बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड ने प्रतिभाग किया।

भारत के नौ-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में तोशी कलबांडे (मध्य प्रदेश) को प्रतिनिधिमंडल प्रमुख के रूप में शामिल किया गया, साथ ही रविना राजपुरोहित (सूरत, गुजरात), राहुल शर्मा (जयपुर, राजस्थान), विवेक (महाराष्ट्र), ईशिका वारवड़े (महाराष्ट्र), जया शर्मा (गुजरात), श्रेया पोपली (महाराष्ट्र), अदिति शर्मा (दिल्ली) और चित्रांश देवलियाल (नैनीताल, उत्तराखंड) बतौर सदस्य शामिल रहे। ये सभी पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।

 

शिखर सम्मेलन का उद्घाटन-सत्र इसके उद्देश्यों को स्पष्ट करने के साथ शुरू हुआ और सम्मेलन में जलवायु विज्ञान की प्रमुख पहलुओं, जलवायु परिवर्तन के प्रमाण और प्रभाव, न्यूनीकरण रणनीतियाँ, अनुकूलन और लचीलापन के साथ सतत जीवन जैसे बहु विषयों पर चर्चाएँ हुईं। यही नहीं जलवायु नेतृत्व में युवा भागीदारी, प्रभावी संचार और वकालत एवं मिशन एवं पर्यावरणीय जीवनशैली, अवधारणा और उसके कार्यान्वयन पर विशेष ध्यान दिया गया।

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इस कार्यक्रम की मुख्य विशेषता अगले एक वर्ष के लिए सदस्य-देशों की विशिष्ट कार्य योजना का निर्माण रही। सिफारिश समिति ने प्रत्येक प्रतिभागी से सुझाव एकत्रित किए और अंततः अंतिम सिफारिशें तैयार कीं। समापन समारोह में केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया, भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के मुख्य राष्ट्रीय आयुक्त डॉ. के.के. खंडेलवाल (सेवानिवृत्त आईएएस), भारत के पेशेवर मुक्केबाज विजेंदर सिंह, विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (बिमस्टेक और सार्क ) सीएसआर राम और भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उपस्थित रहे।

 

कृषि क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए चित्रांश देवलियाल ने स्वावलंबी कृषि के लिए पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित करने पर एक प्रभावशाली सुझाव प्रस्तुत किया। उनके विचारों ने बिमस्टेक देशों की पारंपरिक कृषि पद्धतियों के महत्व को रेखांकित किया, जिसे सतत कृषि प्राप्त करने के साधन के रूप में देखा गया।

 

उन्होंने मिट्टी के स्वास्थ्य को पुनर्जीवित करने, जैव विविधता को बढ़ाने और जलवायु-सहिष्णु कृषि को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के साथ जोड़ने की वकालत की। उनके सुझाव से किसानों के सशक्तिकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है, जिससे क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।

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चित्रांश के प्रस्ताव को व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ और अंततः इसे सभी सात देशों द्वारा अंतिम संयुक्त बयान में अपनाया गया। उनकी यह उपलब्धि पारंपरिक कृषि पद्धतियों को वैश्विक स्थिर प्रयासों में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रहा।

 

अंततः बिमस्टेक शिखर सम्मेलन पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के प्रति एक नई प्रतिबद्धता के साथ संपन्न हुआ, जिसमें चित्रांश देवलियाल जैसे युवा लीडर भविष्य की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पारंपरिक ज्ञान आधारित स्वावलंबी कृषि के प्रति उनकी वकालत उन युवा पेशेवरों के लिए प्रेरणा स्रोत है जो वैश्विक स्थिरता प्रयासों में योगदान देने की आकांक्षा रखते हैं।

यहां बता दें कि चित्रांश देवलियाल नैनीताल के वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र देवलियाल के सुपुत्र हैं ।

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