नैनीताल । उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने अल्मोड़ा जिले के जिला सत्र न्यायाधीश के द्वारा अभियुक्त दीपक सिंह बिष्ट को वर्ष 2018 में आजीवन कारावास की सजा दिए जाने के आदेश विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी व न्यायमूर्ति आलोक महरा की खण्डपीठ ने उन पर लगाए गए आरोपों को अभियोजन पक्ष के द्वारा सिद्ध न करने के आधार पर उन्हें बरी कर दिया है।
जिला सत्र न्यायाधीश अल्मोड़ा ने वर्ष 2018 में उन्हें हत्या करने के आधार पर आजीवन कारावास के की सजा देने का आदेश पारित किया था। साथ मे आईपीसी की धारा 302 व 201 के तहत जुर्माने से भी दंडित किया था। न देने पर धारा 302 के तहत उनपर 40 हजार रुपये व 201 के तहत 5 हजार रुपये के जुर्माने से भी दंडित किया था। न देने की स्थिति में उन्हें आईपीसी की धारा 302 के तहत सात साल का अतरिक्त कारावास व धारा 201 के तहत 6 माह की सजा सुनवाई थी।
इस आदेश को उनके द्वारा वर्ष 2018 में उच्च न्यायलय में चुनौती दी गयी। जिसपर सुनवाई करते हुए खण्डपीठ ने पाया कि निचली अदालत में अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नही कर पाया। इसका लाभ देते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया। साथ मे निचली अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया।
मामले के अनुसार पनी राम अल्मोड़ा के गुणादित्य हॉर्टिकल्चर विभाग में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत था। जिस दिन घटना हुई उस रात को वह साथ वालों के साथ दावत पर था और विभाग के भवन में ही रह रहा था। मौजूद घटना के दौरान उनकी मृत्यु किस कारण से हुई उसका कोई प्रत्यक्ष साक्षी उपलब्ध नहीं था। जब इसकी सूचना उसकी पत्नी को दी गयी तो वे मौके पर भतीजे के साथ वहाँ गयी। जब देखा तो उनका पति ऑफिस के निचले बरामदे में मृत पड़ा हुआ है। उसके सिर पर गम्भीर चोटें आई हुई थी। खून बह रहा था। यही नहीं भवन की ऊपर की सीढियो में खून लगा हुआ था। किसी ने उसे साफ करने की कोशिश भी की। जो पूरी तरफ से साफ नहीं हुई थी।
मुकदमा दर्ज होने के बाद जब पुलिस ने चार्जशीट दायर की तो इस अभियुक्त पर पुलिस को शक हुआ । उसी के आधार पर इसको गिरफ्तार कर लिया गया। जिला सत्र न्यायाधीश अल्मोड़ा ने अभियुक्त की आजीवन कारावास की सजा सुनवाई। उसको चुनौती अभियुक्त ने उच्च न्यायलय में चुनौती दी। जिसपर सुनवाई करते हुए आरोप सिद्ध न होने के कारण उच्च न्यायलय ने उन्हें बरी कर दिया।