*योगिनी एकादशी सर्वार्थ सिद्धि योग में 21 जून को*
इस बार योगिनी एकादशी व्रत दिनांक 21 जून 2025 दिन शनिवार को सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जाएगा।
*शुभ मुहूर्त-:*
दिनांक 21 जून 2025 दिन शनिवार को यदि एकादशी तिथि की बात करें तो इस दिन 5 घड़ी सात पल अर्थात प्रातः 7:19 बजे तक दशमी तिथि रहेगी तदुपरांत एकादशी तिथि प्रारंभ होगी जो अगले दिन प्रातः 4:28 बजे तक रहेगी। यदि इस दिन नक्षत्र की बात करें तो अश्विनी नामक नक्षत्र छत्तीस घड़ी 25 पल अर्थात शाम 7:50 बजे तक है। इस दिन विष्टि नामक करण 5 घड़ी सात पल अर्थात प्रातः 7:19 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रुपेण मेष राशि में विराजमान रहेंगे। सबसे महत्वपूर्ण यदि सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो इस दिन प्रातः 5:16 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।
*महत्व-:*
योगिनी एकादशी व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला होता है।
*पूजा विधि-:*
योगिनी एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर समीप के किसी नदी में, सरोवर में, अथवा जल स्रोत में स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। तदुपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें, हरि: ॐ विष्णु विष्णु विष्णु आदि अमुक-अमुक गोत्रस्य अपने गोत्र का उच्चारण करें, अमुक राशि अपनी राशि का उच्चारण,अमुक नाम्ने अपने नाम का उच्चारण करें आषाढ़ मासे कृष्ण पक्षे योगिनी एकादशी व्रतं करिक्षे सहित संकल्प पूर्ण करें।घर की पूजा गृह में या तुलसी वृंदावन के सम्मुख एक चौका रखकर उस पर पीला वस्त्र बिछाएं। तदुपरांत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा उस पर स्थापित करें। उन्हें स्नान कराएं, फिर पंचामृत स्नान कराएं तदुपरांत पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। रोली कुमकुम चढ़ायें। फलं समर्पयामि फल चढ़ाएं, तांबुलम पुंगी फलम समर्पयामि सुपारी और पान का पत्ता चढ़ायें। द्रव्यं समर्पयामि भेंट स्वरूप द्रव्य चढ़ायें। आरती के उपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।
*योगिनी एकादशी व्रत कथा।*
महाभारत काल की बात है।कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा हे त्रिलोकीनाथ! मैंने जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जलाएकादशी की कथा सुनी। अब आप कृपा करके आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइए।
एकादशी का नाम तथा महात्म्य क्या है? अब मुझे विस्तारपूर्वक बताइए। श्री कृष्ण ने कहा हे पांडू पुत्र!
आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह
व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है।हे अर्जुन! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तुम्हें मैं पुराण की कही हुई कथा सुनाता हूं ध्यानपूर्वक सुनो कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था। वह शिव भक्त था। उनका हेमामाली नामक एक यक्ष सेवक था। जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेमामाली
की विशालाक्षी नाम की अति सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आया किंतु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण
करने लगा। इस भोग विलास में दोपहर हो गई। हेममाली की राह देखते देखते जब राजा कुबेर को दोपहर हो गई तो उसने क्रोध पूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी की
तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेमामाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया? जब सेवकों ने उसका पता
लगा लिया तो राजा के पास जाकर बताया हे राजन !हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है। यह बात को
सुन राजा कुबेर ने हेमामाली को बुलाने की आज्ञा दी । डर से कांपता हुआ हेमामाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देख कर कुबेर को अत्यंत क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे। राजा ने कहा अरे अधम तूने मेरे परम
पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिव जी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्यु लोक में जाकर कोड़ी का जीवन व्यतीत करें। कुबेर के श्राप से वह उसी क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ
गिरा और कोड़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उसी से बिछड़ गई। मृत्युलोक में जाकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे किंतु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन हुई और उसे
पूर्व जन्म की भी याद रही। अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कर्मों को याद करता हुआ वह
हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा। चलते चलते वह मार्कडेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वह ऋषि अत्यंत वृद्ध
तपस्वी थे। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे।और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था। ऋषि को देखकर हेमामाली वहां गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा। हेममाली को देखकर मार्कडेय ऋषि ने कहा तूने कौन से निकृष्ट कर्म
किए हैं? जिससे तू कोढी हुआ और भयानक कष्ट भोग
रहा है? महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला हे मुनिश्रेष्ठ !मैं राजा कुबेर का अनुचर था । मेरा नाम हेमामाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के
समय कुबेर को दिया करता था। 1दिन पत्नी सहवास के सुख में फंस जाने के कारण मुझे समय का ध्यान नहीं
रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुंचा सका। तब उन्होंने मुझे श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोड़ी हो जा। इस कारण में कोड़ी हो
गया हूं। अतः आप कृपा करके कोई ऐसा उपाय
बतलाइए जिससे मेरी मुक्ति हो। मार्कडेय ऋषि ने कहा हे हेममाली !तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूं। यदि तू आषाढ
मास की कृष्णपक्ष की योगिनी नामक एकादशी व्रत का विधान पूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।
महर्षि के वचन सुन हेमामाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधान
पूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुख पूर्वक
रहने लगा। भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके व्रत से सभी पाप
नष्ट हो जाते हैं और अंत में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का अधिकारी बनता है।
आलेख के लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल