दन्या । जागेश्वर विधान सभा सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद सिंह कुंजवाल के सामने वर्षों तक उनके खास सिपहसालार रहे अब भाजपा प्रत्याशी मोहन सिंह मेहरा के होने से यह सीट प्रदेश की हॉट सीट बन गई है । जब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पं.नारायण दत्त तिवारी थे और हरीश रावत गुट अक्सर पं. तिवारी की खिलाफत किया करता था तब मोहन सिंह मेहरा हरीश रावत गुट के खास माने जाते थे । राज्य बनने के बाद लगातार तीन विधान सभा चुनाव गोविंद सिंह कुंजवाल के जीतने के बाद 2017 में मोहन सिंह मेहरा स्वयं कांग्रेस के दावेदार बनने लगे किन्तु उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे नाराज हो गए । हालांकि तब मोहन सिंह मेहरा को हरीश रावत ने मना लिया । लेकिन उनकी नाराजगी बनी रही । अंततः उन्होंने करीब चार दशक तक कांग्रेस की राजनीति को छोड़ भाजपा की सदस्यता ले ली । भाजपा में उन्हें खूब सम्मान मिला और अब उन्हें अन्य नेताओं पर तरजीह देकर विधायक प्रत्याशी बना दिया । लेकिन उनके सामने हैं, कभी उनके नेता रहे और उत्तराखण्ड के गांधी के नाम से चर्चित गोविंद सिंह कुंजवाल । जिनके पास राजनीति व शासन प्रशासन का लंबा अनुभव है । किंतु चार बार से लगातार विधायक होने से जनता की तमाम अपेक्षाओं पर खरा न उतरने से हो रहा नुकसान उन्हें झेलना पड़ रहा है । अब तक के चुनावों में गुणादित्य स्थित मोहन सिंह मेहरा का आवास चुनावों में गोविंद सिंह कुंजवाल व कांग्रेस का मुख्यालय बनता था जहां अब भाजपा की गूंज सुनाई दे रही है । जिससे कांग्रेसी खेमा चिंतित है । 2017 के चुनाव में कुंजवाल के प्रतिद्वंदी भाजपा के युवा तुर्क सुभाष पांडे थे जिन्होंने गोविंद सिंह कुंजवाल को कड़ी टक्कर दी । लेकिन 299 मतों से वे हार गए थे । तब एक बार सुभाष पांडे ने धौलादेवी ब्लॉक से गोविंद सिंह कुंजवाल पर बढ़त बना ली थी । लेकिन जब जैंती क्षेत्र के मतपत्र खुले तो सुभाष पांडे मामूली अंतर से हार गए । भाजपा समर्थकों को इस हार की टीस अब भी सताती है ।
जागेश्वर  विधान सभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है । इसे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस का मायका बताया है । इस सीट से कुंजवाल लगातार जीतते आये हैं । 2002 में उन्होंने रघुनाथ सिंह चौहान को 2322 मतों से,2007 में रघुनाथ चौहान को ही 1127 मतों से,2012 में बची सिंह नेगी को 3865 मतों से और 2017 में सुभाष पांडे को 299 मतों से हराया । कांग्रेस का मुख्य गढ़ सालम क्षेत्र को माना जाता है । यहां यदि भाजपा के मोहन सिंह मेहरा ने मुकाबला बराबरी का बना लिया तो गोविंद सिंह कुंजवाल को राजनीतिक कैरियर के अंतिम दौर में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है ।

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