कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत मनाया जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए  रखती हैं। इस व्रत के दौरान कथा सुनने का बड़ा महत्व है। कथा सुने बिना यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत करने के बाद शाम को चंद्रमा देखकर व्रत का पारायण करती हैं।  दूसरी ओर पूजा के दौरान शुभ मुहूर्त का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

शुभ मुहूर्त,,,

इस बार करवा चौथ व्रत दिनांक 13 अक्टूबर  दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन चतुर्थी तिथि की  तिथि 52 घड़ी 12 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 3:08 बजे तक रहेगी। यदि नक्षत्रों की बात करें इस दिन कृतिका नामक नक्षत्र 30 घड़ी 57 पल अर्थात शाम 6:38 तक है तदुपरांत रोहिणी नामक नक्षत्र उदय होगा ।

करवा चौथ व्रत कथा -:

प्राचीन कथा के अनुसार एक गांव में करवा देवी अपने पति के साथ रहती थी। 1 दिन उसके पति नदी में स्नान करने गए स्नान करने के दौरान एक मगरमच्छ ने करवा के पति का पैर पकड़ लिया और खींचकर नदी में अंदर की ओर ले जाने लगा। इस दौरान पति ने अपनी रक्षा के लिए पत्नी को पुकारा। पति की आवाज सुनकर करवा नदी के किनारे पहुंच गई और मगरमच्छ को एक कच्चे धागे से पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व की वजह से मगर मच्छ हिल तक नहीं पाया। इसके बाद करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति का जीवन दान मांगा और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी पूरी नहीं हुई है परंतु तुम्हारे पति की आयु पूरी हो गई है। यमराज की यह बात सुनकर करवा क्रोधित हो गई और उन्होंने कहा कि यदि उसके पति के प्राणों को कुछ हुआ तो वह श्राप दे देगी सती के श्राप से डरकर यमराज ने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दे दिया। साथ ही करवा को सुख समृद्धि का वर दिया और कहा जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी उनके सौभाग्य की रक्षा में करूंगा। कहा जाता है कि इस घटना के दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।

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2- करवा चौथ की एक दूसरी पौराणिक व्रत कथा-:
एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रप्रस्थ पुर के एक शहर में एक ब्राह्मण रहता था उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी इकलौती बेटी होने के कारण वह सभी की लाडली थी। जब वीरावती शादी के लायक हो गई तो उसके पिता ने उसकी शादी एक ब्राह्मण युवक से कर दी। शादी के बाद वीरावती अपने मायके आई हुई थी तभी करवा चौथ का व्रत पड़ा। वीरावती अपने माता पिता और भाइयों के घर पर ही थी उसने पहली बार पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा लेकिन वह भूख प्यास बर्दाश्त नहीं कर पाई और मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी। बहन को मूर्छित देखकर उसके भाइयों ने छलनी में एक दीपक रखकर उसे पेड़ की आड़ से दिखाया और बेहोश हुई वीरावती जब जागी तो उसे बताया कि चंद्रोदय हो गया है। छत पर जाकर चांद के दर्शन कर ले। वीरावती ने चंद्र दर्शन कर पूजा पाठ किया और भोजन करने के लिए बैठ गई। पहले कौर में बाल आया दूसरे में छींक आई और तीसरे कौर में उसकी ससुराल से बुलावा आ गया। जब वीरावती ससुराल पहुंची तो वहां देखा कि उसके पति की मौत हो गई है। यह देख वह व्याकुल होकर रोने लगी उसकी हालत देखकर इंद्र देवता की पत्नी देवी इंद्राणी उसे सांत्वना देने पहुंची और उसे उसकी भूल का एहसास दिलाया। साथ ही करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे वर्ष आने वाली चौथ के व्रत करने की सलाह दी। वीरावती ने ऐसा ही किया और व्रत के पुण्य से उसके पति को पुनः जीवनदान मिल गया।
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि,,,,,
इस दिन प्रात है ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर ले उपरांत गणेश जी की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। तदुपरांत शाम तक न कुछ खाना और नहीं पीना चाहिए। पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की बेदी पर सभी देवताओं की स्थापना कर उसमें करवा रखें। एक थाली में धूप दीप चंदन रोली सिंदूर रखें और घी का दीपक जलाएं। पूजा चांद निकलने के 1 घंटे पहले प्रारंभ कर दें इसके बाद जांच के दर्शन कर व्रत खोलें। ध्यान रहे इस दिन कथा श्रवण करना नितांत आवश्यक है बिना कथा सुने व्रत अधूरा माना जाता है। किसी सुयोग्य पंडित जी के श्री मुख से से कथा का श्रवण अवश्य करें। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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