(माधव पालीवाल)
विधान सभा चुनाव का तमाम महिलाएं लंबे समय से इंतजार करती हैं । ये महिलाएं किसी राजनीतिक दल की समर्थक नहीं होती बल्कि उन्हें दिहाड़ी की जरूरत होती है । विधान सभा चुनाव की तिथि घोषित होने के बाद जब राजनीतिक दल चुनाव कार्यालय खोल लेते हैं तो ये महिलाएं पार्टी कार्यालयों के चक्कर लगाने लगते हैं और कार्यालयों में रखे रजिस्टर में नाम दर्ज करवा देते हैं । इसके बाद शुरू होता है महिलाओं के लिये नौकरी पाने का जैसा संघर्ष । वास्तव में राजनीतिक दलों को जितनी महिलाएं चुनाव प्रचार के लिये भेजनी होती हैं उससे कई गुना अधिक महिलाएं पार्टी कार्यालय पहुंचती हैं जिनमें से कुछ तो प्रचार के लिये भेज दी जाती हैं और कई महिलाएं प्रचार में जाने से रह जाती हैं । फिर वे कभी कांग्रेस कार्यालय जाती हैं तो कभी भाजपा या अन्य दलों के । पार्टी कार्यालयों में इस दौरान हटो हटो, हम प्रचार में नहीं भेज रहे हैं, कल आना आदि का शोर सुनाई देता है ।दुत्कार, इंतजार व दौड़ भाग में आधा दिन गुजर जाता है और फिर कई महिलाओं को प्रचार में गए बिना घर लौटना होता है । नैनीताल ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के वाक्ये होते हैं । आंखिर इन गरीब महिलाओं की बेबशी,गरीबी व मजबूरी का फायदा राजनीतिक दल यहां भी उठा लेते हैं । जब उन्हें रैली,जुलूस में भीड़ की जरूरत होती है तो उन्हें पांच सौ रुपये की पूरी दिहाड़ी व चाय पानी,नाश्ता दिया जाता है अन्यथा अन्य दिनों आधे या उससे कम देकर एहसान जताया जाता है ।
नैनीताल में अब तक भाजपा द्वारा महिलाएं प्रचार के लिये नहीं भेजी जा रही थी तो पूरा दबाव कांग्रेस कार्यालय में आ रहा था । जहां महिलाओं का हुजूम उमड़ रहा है । इधर महिलाओं के भारी दबाव के बाद बुधवार से भाजपा द्वारा भी महिलाओं को प्रचार के लिये भेजना शुरू कर दिया है । लेकिन बुधवार को यहां हो रही बारिश व हिमपात से प्रचार को निकली इन महिलाओं की व्यथा दयनीय थी । लेकिन गुजर बसर के लिये यह सब जरूरी है ।