*पुत्र प्राप्ति की कामना एवं पुत्र की सुख-समृद्धि की कामना करने वाले अवश्य करें पुत्रदा एकादशी व्रत।*
सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत नाम से जाना जाता है।

*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार पुत्रदा एकादशी व्रत दिनांक 5 अगस्त 2025 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 18 घड़ी 57 पल अर्थात दोपहर 1:13 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो जेष्ठा नामक नक्षत्र 14 घड़ी 22 पल अर्थात प्रातः 11:23 बजे तक है। इस दिन ऐंद्र नामक योग चार घड़ी 25 पल अर्थात प्रातः 7:24 बजे तक है। विष्टि नामक करण 18 घड़ी 57 पल अर्थात दोपहर 1:13 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव प्रातः 11: 23 बजे तक वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे, तदुपरांत चंद्रदेव धनु राशि में प्रवेश करेंगे।

 

*सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा-:*
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण से इस कथा के बारे में पूछते हैं।
श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान ! श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका महात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।

द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दुःखदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।

वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजा जनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैंअपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दुःख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?
राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था ।

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सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? निःसंदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अतः आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दुःखी है।

उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अतः उसके दुःख से हम भी दुःखी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ ।

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दुःख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दुःख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अतः जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए ।

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लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।

इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ

इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अतः संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
*पूजा विधि-:*
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तुलसी वृंदावन के समीप एक चौकी रखकर उसमें पीला वस्त्र बिछाएं उसमें फूलों का आसान रखकर भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को स्नान करायें साथ साथ तुलसी वृंदावन में भी जल चढ़ाएं। पंचामृत स्नान कराएं तदुपरांत पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को रोली कुमकुम चढ़ायें साथ साथ तुलसी के पत्तों में भी रोली कुमकुम चढ़ायें। अक्षत में चावल के स्थान पर जौं का प्रयोग करें। इस दिन चावल का प्रयोग पूर्णतया वर्जित है। कुछ लोग समझते हैं की मात्र उपवास कर्ता ही चावल का प्रयोग नहीं कर सकता है परंतु ऐसा नहीं है इस दिन परिवार का कोई भी सदस्य चावलों का प्रयोग नहीं कर सकता है। तदुपरांत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की शोडषोपचार पूजन करें। पुत्रदा एकादशी व्रत कथा श्रवण करें अथवा स्वयं पढ़ें।आरती के उपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें। यह सभी कार्य तुलसी वृंदावन के सम्मुख ही करें क्योंकि देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास की हरीबोधिनी एकादशी व्रत तक एकादशी व्रत पूजन तुलसी वृंदावन के समीप ही होते हैं।

आलेख के लेखक-:
*आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*

By admin

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