*सभी कामनाएं पूर्ण करने वाला होता है कामिका एकादशी व्रत ।यह दिन पार्थिव पूजन के लिए भी सर्वोत्तम होता है।जानते हैं शुभ मुहूर्त, महत्व पूजा विधि एवं कथा*
सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कमी का एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस बार दिनांक 31 जुलाई 2024 दिन बुधवार को कामिका एकादशी व्रत मनाया जाएगा।


*शुभ मुहूर्त*
इस बार दिनांक 31 जुलाई 2024 दिन बुधवार को कामिका एकादशी व्रत मनाया जाएगा इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 25 घड़ी 54 पल अर्थात शाम 3:56 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन रोहिणी नामक नक्षत्र 11 घड़ी 35 पल अर्थात प्रातः 10:13:00 तक है। इस दिन ध्रुव नामक योग 21 घड़ी 38 पल अर्थात दोपहर 2:14 बजे तक है। बालव नामक करण 25 घड़ी 54 पल अर्थात शाम 3:56 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव रात्रि 10:16 बजे तक वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे। तदुप्रांत चंद्र देव मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।

*एकादशी पर बन रहे ये खास संयोग*
कामिका एकादशी पर ध्रुव योग का निर्माण
हो रहा है. इस योग का संयोग दोपहर 02 बजकर 14 मिनट तक है। ज्योतिष शास्त्र में ध्रव योग को बेहद शुभ मानते हैं। इस योग में भगवान
श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से साधक को
मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। साथ ही
शुभ कार्यों में सिद्धि मिलेगी। इस दिन सर्वार्थ
सिद्धि योग का भी संयोग बन रहा है. सर्वार्थ
सिद्धि योग दिन भर रहेगा।
*शिववास योग*
कामिका एकादशी पर शिव वास के अनुसार देवों के देव महादेव
कैलाश पर्वत पर विराजमान रहेंगे। इस समय में भगवान शिव का अभिषेक करने से
साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति
होगी। भगवान शिव दोपहर 03:56 बजे तक
कैलाश पर रहेंगे. इसके बाद भगवान भोलेनाथ (वृषभारुढ) अर्थात नन्दी महाराज की सवारी करेंगे।दोनों समय अभिषेक के लिए अनुकूल है। इस समय में भगवान नारायण
की भी पूजा करने से लोगों को सुख और
सौभाग्य प्राप्ति होती है। अतः शिव पूजा, पार्थिव पूजन के लिए यह दिन सर्वोत्तम एवं सर्व श्रेष्ठ है।जो भक्त इस दिन पार्थिव पूजन करेंगे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

*पूजा विधि*
कामिका एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर किसी नदी या जल स्रोत में स्नान करें यदि ऐसा संभव न हो तो स्नान के जाल में गंगाजल मिलकर घर पर ही स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें तुलसी वृंदावन के समीप बैठकर एक चौकी में स्वच्छ पीला वस्त्र बिछायें । उसे पर श्री हरि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें स्नान कराएं, पंचामृत स्नान कराकर पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। तदुपरांत रोली कुमकुम चढ़ाएं अक्षत के स्थान पर जौं का प्रयोग करें। इस दिन चावल का प्रयोग बिल्कुल न करें तथा घर पर भी कोई भी सदस्य चावल का प्रयोग ना करें। श्री हरि भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी का शुभ शोडषोपचार पूजन करें। आरती के उपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।
*कामिका एकादशी व्रत कथा।*
एक बार कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से श्रावण कृष्ण पक्ष एकादर्शी अर्थात कामिका एकादशी व्रत के बारे में पूछा कि हे भगवान! आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तथा चातुर्मास महात्म्य मैंने भली प्रकार से सुना। अब कृपा करके सावन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है वह बताइए।
श्री कृष्ण भगवान कहने लगे की हे धर्मराज! इस
एकादशी की कथा इस प्रकार है। एक समय
स्वयं ब्रह्मा जी ने देवर्षि नारद से कही थी वही
कथा मैं तुमसे कहता हूं। नारद जी ने ब्रह्मा जी
से पूछा था की हे पितामह! सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है। उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका महात्म्य क्या है? सो कृपा करके बताइए। नारद जी के यह वचन सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद! लोगों के हित के लिए आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। सावन मास की कृष्ण पक्ष एकादशी का नाम कामिका एकादशी है। उसके सुनने मात्र से ही वाजपेई यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख चक्र गदा धारी विष्णु भगवान का पूजन होता है। जिनके नाम श्रीधर हरि, विष्णु माधव मधुसूदन है।उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो। जो फल गंगा काशी नैमिषारण्य और
पुष्कर मैं स्नान से मिलता है वह विष्णु भगवान
के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र
ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से,
समुद्र वन सहित पृथ्वी दान करने से सिंह राशि
के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में
स्नान से भी नहीं प्राप्त होता वह भगवान विष्णु
के पूजन से सहज में मिलता है। जो मनुष्य
सावन में भगवान का पूजन करते हैं उनसे
देवता गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते
हैं। अतः पापों से डरने वाले मनुष्य को कामिका
एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन
अवश्य करना चाहिए। पाप रूपी कीचड़ में
फंसे हुए और संसार रूपी समुद्र में डूबे मनुष्य के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे
बढ़कर पापों के नाश का कोई उपाय नहीं है। हे नारद !स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका एकादशी व्रत से जीव बुरी योनि को प्राप्त नहीं होता है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्ति
पूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं वह इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न मोती मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने की तुलसीदल से होते हैं। तुलसी दल पूजन का फल चार भार चांदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद !मैं स्वयं भगवान की अति प्रिय तुलसी को नमस्कार करता हूं।
तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएं नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। और स्पर्श से मनुष्य पवित्र
हो जाता है। कामिका एकादशी की रात्रि को
दीपदान तथा जागरण के फल का महात्त्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पित्र स्वर्ग लोक में अमृत पान करते हैं। तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं वह 100 करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य
लोक को जाते हैं। ब्रह्मा जी कहते हैं की हे नारद!
ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए।कामिका एकादशी के व्रत का महात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।

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*कामिका एकादशी व्रत की एक दूसरी पौराणिक कथा*
एक समय की बात है, एक गांव में एक बहुत
शक्तिशाली क्षत्रिय निवास करता था। अपनी
शक्ति और बल पर उसे क्षत्रिय को गर्व था।
लेकिन उसके धार्मिक स्वभाव के बावजूद,
अहंकार उसके मन मे घर कर चुका था। वह
हर दिन भगवान विष्णु की पूजा करता और
उनकी उपासना में लीन रहता था। एक दिन, वह किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा पर निकला। रास्ते में उसकी भेंट एक
ब्राह्मण से हो गई। दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया जिसके बाद क्षत्रिय ने ब्राह्मण के साथ हाथापाई शुरू कर दी। ब्राह्मण अपनी दुर्बलता के कारण क्षत्रिय के आघात को सहन न कर सके और उनकी मृत्यु हो गई।ब्राह्मण की मृत्यु से क्षत्रिय हक्का बक्का रह गया, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बहुत पछताया। उसकी यह स्थिति गांव में चर्चा का विषय बन गई। क्षत्रिय युवक ने गांव वालों से क्षमा याचना की और ब्राह्मण का अंतिम संस्कार खुद करने का वचन दिया। लेकिन पंडितों ने अंतिम क्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया।तब उसने ज्ञानी पंडितों से अपने पाप को
जानना चाहा, तो पंडितों ने उसे बताया कि उसे ‘ब्रह्म हत्या दोष’ लग चुका है, इसलिए हम अंतिम क्रिया के ब्राह्मण भोज में आपके घर भोजन नहीं कर सकते है। यह सुनकर
क्षत्रिय ने ‘ब्रह्म हत्या दोष’ के प्रायश्रित का उपाय पूछा तब पंडितों ने कहा कि, जब तक वह सावन
मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को
विधि पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा नहीं
करता, और ब्राह्मणों को भोजन नहीं कराता
और दान दक्षिणा नही देता तब तक वह ब्रह्म
हत्या दोष से मुक्त नहीं हो सकता है। क्षत्रिय ने ब्रह्मण के अंतिम संस्कार के बाद पंडितों की सलाह मानते हुए, कामिका
एकादशी के दिन पूरी श्रद्धा और विधि के
अनुसार भगवान विष्णु की पूजा की, फिर
उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान दक्षिणा भी दी। इस तरह, भगवान विष्णु की कृपा से वह क्षत्रिय ‘ब्रह्म हत्या दोष’ से मुक्त ) हुआ।
*कामिका एकादशी व्रत का महत्व*
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कामिका
एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार के
पापों से मुक्ति मिलती है और मानसिक शांति
प्राप्त होती है। इस व्रत को करने से व्यत्ति की
मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
व्रत पितृ दोष से मुक्ति दिलाने में भी सहायक
होता है। कहा जाता है कि कामिका एकादशी
का स्मरण मात्र करने से ही वाजपेय यज्ञ के
बराबर फल की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी जी की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
तो बोलिए भगवान विष्णु की जै।
माता लक्ष्मी की जै।
*लेखक- आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*

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