*बहुत महत्वपूर्ण है द्विज प्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत*
प्रत्येक माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन विधि विधान से भगवान
श्री गणेशजी की पूजा करनी चाहिए।फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थीं को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
एक बार की बात है। एक आदर्श राजा का राज्य था। वह राजा अत्यंत धर्मात्मा थे।उनके राज्य में एक अत्यंत सज्जन ब्राह्मण थे उनका नाम था-विष्णु शर्मा। विष्णु शर्मा के 7 पुत्र थे। वे सातों अलग-अलग रहते थे। विष्णु शर्मा की जब
वृद्धावस्था आ गई तो उसने सब बहुओं से
कहा-तुम सब गणेश चतुर्थी का व्रत किया
करो। विष्णु शर्मा स्वयं भी इस व्रत को करते
थे। आयु हो जाने पर यह दायित्व वह बहुओं को सौंपना चाहते थे।
जब उन्होंने बहुओं से इस व्रत के लिए कहा
तो बहुओं ने आज्ञा न मानकर उनका अपमान
कर दिया। अंत में धर्मनिष्ठ छोटी बहू ने ससुर की बात मान ली। उसने पूजा के सामान की
व्यवस्था करके सहस्र के साथ व्रत किया और
भोजन नहीं किया। ससुर को भोजन करा दिया।
जब आधी रात बीती तो विष्णु शर्मा को उल्टी
और दस्त लग गए। छोटी बहू ने मल-मूत्र से
खराब हुए कपड़ों को साफ करके ससुर के
शरीर को धोया और पोंछा। पूरी रात बिना
कुछ खाए-पिए जागती रही।व्रत के दौरान रात्रि में चंद्रोदय पर स्नान कर
फिर से श्री गणेश की पूजा भी की। विधिवत
पारण किया। विपरीत स्थिति में भी अपना धैर्य नहीं खोया। पूजा और ससुर की सेवा दोनों श्रद्धा भाव से करती रही।
गणेश जी ने उन दोनों पर अपनी कृपा की।
अगले दिन से ही ससुर जी का स्वास्थ्य ठीक
होने लगा और छोटी बहु का घर धन-धान्य से
परिपूर्ण हो गया। फिर तो अन्य बहुओं को भी
इस प्रसंग से प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने ससुर
से क्षमा मांगते हुए फाल्गुन कृष्ण संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया। और साल भर आने वाली हर चतुर्थी का व्रत करने का शुभ संकल्प लिया। श्री गणेश की कृपा से सभी का स्वभाव सुधर गया।
*पूजा विधि -:*
* द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को अर्ध्य दें,घर के मंदिर में चौकी पर कपडा बिछाकर श्रीगणेश और शिव परिवार की प्रतिमा रखें।
इसके बाद उन्हें मोदक, लड्डू, अक्षत और दूर्वा
समेत आदि चीजें चढ़ाएं।
फिर भगवान गणेश के माथे पर तिलक लगाना
चाहिए।
देसी घी का दीपक जलाकर भगवान गणेश की आरती करें इसके बाद सच्चे मन से व्रत कथा का पाठ करना चाहिए।अब बप्पा को मिठाई, मोदक और फल का भोग लगाएं।
आखिरी में लोगों में प्रसाद बाटें और खुद भी
खाएं।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार दिनांक 16 फरवरी 2025 दिन रविवार को द्विज प्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत मनाया जाएगा। इस दिन यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो 48 घड़ी 26 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 2:16 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो हस्त नामक नक्षत्र 54 घड़ी चार पल अर्थात अगले दिन प्रात 4:31 बजे तक रहेगा। यदि योग की बात करें तो घृति नामक योग तीन घड़ी एक पल अर्थात प्रातः 8:06 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कन्या राशि में विराजमान रहेंगे।
लेखक-:
आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।