*बड़े से बड़ा संकट टल जाता है इस संकष्टी चतुर्थी व्रत से, अतः प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए यह व्रत।*
संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश की चतुर्थी
व्रत को संकष्टी चतुर्थी व्रत कहते हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश जी का पूजन किया जाता है। निम्न मंत्रों का जाप करने से आपके
जीवन की सभी बाधाएं और दुख दूर होंगे।
1 -ओम गं गंणपतेय नमः यह मंत्र जीवन में खुशहाली लाने का अथवा खुशहाली आगमन का मंत्र है।
2- ॐ वक्रतुण्डाय नमः, यह संकट हारी मंत्र है। यदि आपके जीवन में संकट आया है तो इस मंत्र का जाप करें।
3- ॐ श्रीं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजन मे वषमान्य
स्वाहा, यह मंत्र रोजगार प्राप्ति का मंत्र है। यदि आपकी नौकरी में अड़चन आ रही है। अथवा आपका व्यवसाय
ठीक से नहीं चल रहा है तो आप इस मंत्र का जाप करें।सफलता अवश्य मिलेगी।
4- ॐ हस्ति पिशाचिनी
लिखे स्वाहा, यह मंत्र जीवन में लड़ाई झगड़ा और अशांति को दूर करने का मंत्र है।
अब मैं प्रिय पाठकों को
भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी अर्थात संकष्टी चतुर्थी व्रत के मुहूर्त को बताना चाहूंगा।
शुभ मुहूर्त-:इस बार सन् 2025 में दिनांक 12 अगस्त 2025 दिन मंगलवार को संकष्टहर चतुर्थी व्रत मनाया जाएगा। इस दिन यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो सात घड़ी 27 पल अर्थात प्रातः 8:41 बजे से चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन पूर्व भाद्रपद नामक नक्षत्र 15 घड़ी 25 पल अर्थात 11:52 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव प्रातः 6:10 बजे तक कुंभ राशि में विराजमान रहेंगे चंद्र देव मीन राशि में प्रवेश करेंगे।
*पूजा का शुभ मुहूर्त-:*
यदि इस दिन पूजा के शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस दिन चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्ध्य देने के साथ पूजन किया जाता है। इस दिन चंद्रोदय रात्रि 8:59 बजे होगा। अलग-अलग जगह पर चंद्रोदय का समय कुछ मिनट आगे पीछे हो सकता है।
*भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा*
पूर्व काल में राजाओं में श्रेष्ठ राजा नल था। उसकी रूपवती रानी का नाम दमयंती था। शापवश राजा नल को अपना राज्य खोना पड़ा। और रानी के वियोग से कष्ट सहना पड़ा। तब दमयंती ने इस व्रत के प्रभाव से के प्रभाव से अपने पति को पुनः प्राप्त किया। राजा नल को जुआ खेलने की आदत थी। पाठकों को बताना चाहूंगा की जुआ खेलने की आदत या जुए की लत बहुत खराब होती है। विपत्ति के समय भी विपत्ति चारों ओर से आती है। एक तरफ डाकू ने उनके महल से धन हाथी घोड़े हरण कर लिए तथा महल को अवनीश से जला दिया। बाकी बचा हुआ राजा नल जुआ खेलकर सब हार गए। राजा नल असहाय होकर रानी के साथ वन को चले गए। उनकी स्त्री से भी वियोग हो गया। कहीं राजा और कहीं रानी दुखी होकर देशाटन करने लगे। एक समय वन में दमयंती को महर्षि सारभंग के दर्शन हुए। दमयंती ने महर्षि को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और प्रार्थना की प्रभु मैं अपने पति से किस प्रकार मिलूंगी?
महर्षि बोले दमयंती भादो मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत गजानन की पूजा करनी चाहिए। तुम भक्ति और श्रद्धा पूर्वक गणेश जी का यह व्रत करो तुम्हारे स्वामी तुम्हें मिल जाएंगे। महर्षि के कहने पर दमयंती ने भादो की गणेश चौथ को व्रत प्रारंभ किया और 7 महीने मैं ही अपने पुत्र और पति को प्राप्त किया। इस व्रत के प्रभाव से नल ने भी सभी सुख प्राप्त किए। अतः संकष्टी चतुर्थी का यह व्रत
विघ्न का नाश करने वाला तथा सुख प्रदान करने वाला है।
आलेख -: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल
