*सर्वार्थ सिद्धि योग सहित हस्त नक्षत्र और सिद्धि योग के संयोग में मनाया जाएगा इस बार गंगा दशहरा पर्व-:*
इस बार दिनांक 5 जून 2025 दिन गुरुवार को श्री गंगा दशहरा पर्व मनाया जाएगा।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस दिन यदि दशमी तिथि की बात करें तो 52 घड़ी 32 पल अर्थात अगले दिन प्रात 2:16 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नामक नक्षत्र अहो रात्रि तक रहेगा। यदि योग की बात करें तो सिद्धि नामक योग 9 घड़ी 55 पल अर्थात प्रातः 9:13 बजे तक है। इस दिन तैतिल नामक करण 19 घड़ी 30 पल अर्थात दोपहर 1:03 तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कन्या राशि में विराजमान रहेंगे। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। यदि सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो सर्वार्थ सिद्धि योग 4 जून 2025 को प्रातः 3:35 बजे से प्रारंभ होगा और 5 जून को प्रातः 5:15 बजे तक रहेगा।
जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस पावन पर्व पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति गंगा स्नान न कर सके वह समीप के नदियों अथवा सरोवर में स्नान करें बाल वृद्ध रोगी घर में स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान
कर सकते हैं। वैसे तो यह पर्व संपूर्ण भारतवर्ष
में मनाया जाता है परंतु देव भूमि उत्तराखंड के
कुमाऊ संभाग में इसे गंगा दशहरा न कहकर
दशहरा दशौर या दशार या फिर दश्योर कहते
हैं। कुछ लोग इसके संबंध में गंगा की कथा से परिचित नहीं होते हैं। उनके लिए तो दशहरे का अर्थ पुरोहितों द्वारा वह
द्वार पत्र है जोकि वज्र निवारक मंत्रों के साथ
दरवाजे के ऊपर चिपकाया जाता है। इस दिन पुरोहित लोग एक सफेद कागज में विभिन्न
रंगों का रंगीन चित्र बनाकर उसके चारों ओर
बहुवृत्तीय कमल दलों का अंकन किया जाता है। जिसमें लाल पीले हरे रंग भरे जाते हैं इसके बाहर वज्र निवारक पांच ऋषि यों के नाम के साथ मंत्र लिखा जाता है। ब्राह्मणों द्वारा यजमान के घर जाकर दरवाजे के ऊपर चिपकाया जाता है। इस अवसर पर ब्राह्मणों को चावल और दक्षिणा भी दी जाती है। इस दशहरा द्वार पत्र लगाने के पीछे प्राचीन समय से यह किंबदंती चली आ रही है कि इससे मकान भवन पर वज्रपात अर्थात आकाशीय बिजली आदि प्राकृतिक प्रकोप का
विनाशकारी प्रभाव नहीं पड़ता है। वैसे वर्षा
काल में जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में वज्रपात की
घटनाएं होती हैं। इस प्रकार के वज्र निवारक
टोटके का प्रयोग आयोजन की तरह करा
जाता है। यह वहां की संस्कृति परंपरा का
महत्वपूर्ण अंग माना जा सकता है। इस रूप में
इस पर्व का आयोजन देवभूमि उत्तराखंड के
कुमाऊं के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं किया जाता
है। कुमाऊ की संस्कृति के अनुसार आज से
लगभग 80 -90 वर्ष पहले गंगा दशहरा द्वार
पत्र बनाने की विधि इस प्रकार थी कि एक
साफ-सुथरे पत्थर
पत्थर की सलेट में चित्र की उल्टी आकृति
बनाकर मंत्र लिखकर मशीन में लगाया जाता
था। फिर पत्थर के चित्र में मंत्र लिखकर मशीन
में लगाया जाता था। तदोपरांत पत्थर के खाली जगह पर पानी लगाया जाता था। इसके बाद चित्र पर काली स्याही लगाई जाती थी इसके बाद पत्थर की सलेटी पर कागज रखा जाता था ऊपर से भारी चीज से दबाया जाता था।जिससे पत्थर में बने चित्र कागज में छप जाते
थे। सफेद कागज में चित्र छप कर उसमें रंग भरे जाते थे। इसके अतिरिक्त सफेद कागज में दूसरी विधि से भी दशहरे बनाए जाते हैं।जिसमें प्रकार और पेंसिल की सहायता से वृत्ताकार फूल बनाया जाता है जिसके बाहर से 5 ऋषियों के नाम सहित वज्र निवारक मंत्र लिखा
जाता है और फूल में हरे पीले लाल रंग भरे जाते हैं। हमें कुमाऊं वासियों को यह परंपरा जीवित रखनी चाहिए और प्रत्येक घर में और देव स्थलों में दशहरा द्वार पत्र अवश्य लगाना चाहिए। जो अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्राकृतिक तौर पर भी लाभदायक है। सनातन हिंदू धर्म में गंगाजल को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना गया है। किसी भी शुभ कार्य और पूजा अनुष्ठान में गंगा जल का प्रयोग अवश्य किया जाता है।गंगाजल के बिना कोई भी मांगलिक कार्य पूर्ण
नहीं होता है। मां गंगा के पृथ्वी पर आने के दिन
को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा दशहरा
के दिन गंगा के पवित्र जल में स्नान करना
चाहिए। गंगा भवतारिणी है इसलिए हिंदू धर्म
में गंगा दशहरा का वि्शेष महत्व माना जाता है।
पाप मुक्त दायिनी मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर
आने तक की कथा का वर्णन विभिन्न हिंदू
धर्मग्रंथों में मिलता है। पौराणिक धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा का उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर ले आए थे। इसी कारण से गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि माता गंगा के प्रबल वेग और प्रवाह को सुनकर मार्कडेय ऋषि का तप भंग हो रहा था। इसलिए
मार्कडेय ऋषि ने मां गंगा को आत्मसात कर लिया बाद में लोक कल्याण की भावना से ऋषि ने मां
गंगा को पृथ्वी पर पैर का दाहिना अंगूठा दबाकर
मुक्त किया।
*गंगा स्नान का महत्व,*
गंगा दशहरा में 10 की संख्या का बहुत महत्व
है। मनुष्य के सभी पापों का विनाश करने वाली मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि दशहरा के दिन गंगा में 10 डुबकी
लगानी चाहिए। यहां दशहरे का मतलब 10 प्रकार की मनोवृतिओं का हनन है। इसलिए मान्यता के अनुसार मोक्षदायिनी मां गंगा में स्नान करने से 10 प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इन 10 प्रकार के पापों में तीन प्रकार के दैहिक पाप चार प्रकार के वाणी द्वारा किए हुए पाप और
तीन प्रकार के मानसिक पाप दूर होते हैं।
*10 की संख्या में करे दान।*
गंगा दशहरा पर स्नान दान जप तप व्रत आदि
का बहुत महत्व बताया जाता है। गंगा दशहरा
के दिन 10 प्रकार से स्नान करके शिवलिंग का
10की संख्या में गंध पुष्प धूप दीप नैवेद्य और
फल इत्यादि से पूजन करना चाहिए। इसके अलावा इस दिन दान देते समय इस बात का मुख्य
रूप से ध्यान रखना चाहिए कि आप जो भी दान करें उसकी संख्या 10 होनी चाहिए। गंगा
पूजन के दौरान पूजा में लाई जाने वाली वस्तुओं की संख्या भी 10 होनी चाहिए । ऐसा करने से
शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
*महत्वपूर्ण मंत्र*
गंगा दशहरा के पावन
पर्व पर मां गंगा की कृपा प्राप्त करने के लिए
स्वयं श्री नारायण द्वारा बताए गए विशेष मंत्र
का जप करना चाहिए। कहा जाता है कि इस
मंत्र के जप से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और
उसे परम पुण्य की प्राप्ति होती है। मंत्र इस
प्रकार है –
* *”ओम नमो; गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः “*
* आलेख के लेखक- आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।