नैनीताल । रामपुर तिराहा कांड के दो दोषी पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा दिए जाने पर राज्य आंदोलनकारियों ने खुशी व्यक्त की है ।
मंगलवार को नैनीताल में पत्रकार वार्ता आयोजित कर राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि इस फैसले से अन्य दोषियों को भी सजा दिलाये जाने में मदद मिलेगी । लेकिन राज्य आंदोलन के शहीदों के हत्यारों या हत्या की साज़िश करने वालों पर हत्या करने के आरोप ही न लग पाये, यह अत्यंत खेदजनक है । ऐसे में असल दोषियों को सजा मिलना नामुमकिन ही हो जायेगा ।
रामपुर तिराहा काण्ड से सम्बंधित एक मामले में सी बी आई बनाम मिलाप सिंह व अन्य के मामलों में दो पी .ए .सी .के दो तत्कालीन कांस्टेबलों को सजा सुनाई गई । रामपुर तिराहा के बर्बर काण्ड का दुखद पहलू है जो चार मामले मुज़फ़्फ़रनगर की कोर्ट में चल रहे हैं उनमें कोई ऐसा मुक़दमा नहीं है जिसमें शहीदों के हत्या से संबंधित मामला हो और शहीदों के हत्यारों को हत्या करने की सजा मिल सके । वरिष्ठ आन्दोलनकारी पूरन सिंह मेहरा ने प्रेस वार्ता में कहा कि हत्या से संबंधित मुक़दमों के आरोप पत्र समय पर दाखिल नहीं हो पाये या तय ही नहीं किये जा सके जिससे वे ख़ारिज हो गये । ऐसे मामलों में हत्या करने, हत्या का प्रयास करने, गैर इरादतन हत्या करने के मुक़दमे ही महत्वपूर्ण होते हैं । मुजफ्फरनगर में जो चार मुक़दमे चल रहे हैं वे महिलाओं से अत्याचारों से सम्बंधित सी बी आईं बनाम मिलाप सिंह व अन्य हैं ।ये तत्कालीन पी ए सी के कांस्टेबल मिलाप सिंह व विरेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ हैं । उनके खिलाफ आई पी सी की धारा 120बी 323,354,376,392,509 के तहत मुकदमे दर्ज हैं । जिनमें 30 साल बाद प्राथमिक स्तर पर निर्णय हो पाया ।दूसरा मामला सी .बी .आई बनाम राधामोहन द्विवेदी से जुड़ा है । जिसमें 16 पीड़ित महिलाओं के साथ अत्याचार, शारीरिक शोषण, कपड़े फाड़े जाने, लूटपाट से जुड़े मामले हैं । जिसमें अधिकांश धारायें पूर्व मुक़दमे की तरह की ही हैं । यह मुक़दमा काफ़ी समय तक बन्द है ।तीसरा मुक़दमा सी. बी .आई बनाम एस पी मिस्र इसमें पुलिस कर्मियों पर पर आरोप है उन्होंने षड्यंत्र के तहत आन्दोलनकारी शहीदों के शवों को ग़ायब कर दिया या गंग नहर में फेंक दिया ।आई .पी .सी की धारा 201,120के तहत मामला दर्ज है चौथा मामला सी .बी. आई बनाम बृज किशोर व अन्य आई .पी. सी की धारा 211,182,218,120,आन्दोलनकारियों पर हथियारों पेट्रोल आदि की झूठी बरामदगी दिखाई गयी है । जबकि हत्या, गैरइरादन हत्या से संबंधित कोई भी मुक़दमा नहीं चल रहा है उत्तराखंड आन्दोलनकारियों की हत्या से संबंधित सभी मामलों का ख़ारिज हो जाना व किसी अपराधी को सजा न मिल पाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है । जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1996 में शहीद उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों को दस दस लाख रुपये का मुवावजा देने का निर्देश दिया था ।
प्रेस वार्ता में शाकिर अली नगर अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी क्रांतिकारी मोर्चा, नैनीताल नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष व राज्य आंदोलनकारी मुकेश जोशी मंटु, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी मुन्नी तिवारी आदि शामिल थे ।
इधर राज्य आंदोलनकारी क्रांतिकारी मोर्चा के जिलाध्यक्ष गणेश बिष्ट ने इस आदेश को न्याय की जीत बताया है । उन्होंने इस मामले में लम्बित अन्य मामलों की उचित पैरवी हेतु राज्य आंदोलनकारियों से एकजुट होने की अपील की है ।