*बसंत पंचमी या सिर पंचमी देवभूमि में हिन्दू संस्कारों का पर्व। आइए जानते हैं महत्व एवं शुभ मुहूर्त।*

 


देवभूमि के कुमाऊं संभाग में यह त्यौहार कुछ विशेष रीति से मनाया जाता है, जिसे कुमांऊ में सिर पंचमी का त्यौहार कहते हैं। कुमाऊं में यह त्यौहार बड़े हर्षल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार में विशेष यह है कि इस दिन खेतों से जौं की पत्तियां लाकर सर्वप्रथम स्नान करने के उपरांत जौं की पत्तियां
मंदिरों, देवालयों में चढ़ाई जाती है। फिर परिवार के
सभी सदस्य एक दूसरे को हरेले की तरह जौं पूजते हैं।लड़कियां अपने माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची,
ताऊ-ताई आदि घर के सभी सदस्यों के सिर में जौ पूजती हैं। बालिकाएं इस पावन दिन अपने नाक-कान छिदवाती हैं।
कुमाऊं के अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, नैनीताल,चंपावत जनपदों के कई भागों में इस दिन जौ की पत्तियां गाय के गोबर के साथ टीका चंदन कर घर की देहरी पर भी रखते हैं। देवभूमि के कई भागों में इस दिन यज्ञोपवीत ,चूडाकर्म संस्कार भी करवाए जाते हैं।
बसंत पंचमी के दिन छोटे बच्चों की शिक्षा -दीक्षा
आरंभ करने के लिए भी यह पावन दिन शुभ अत्यत शुभ माना जाता है। इस पावन
दिवस पर बच्चे की जीभ में मधु अर्थात शहद से ॐ बनाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से बच्चे ज्ञानवान बनते हैं। क्योंकि जिह्वा का संबंध मां सरस्वती से है। वाणी जो जिह्वा से प्रकट होती है,
उसका संबंध भी मां सरस्वती से है। इसके अतिरिक्त छ:माह पूरे कर चुके बच्चे को अन्न का पहला निवाला
अर्थात अन्नप्राशन के लिए भी यह पावन दिन शुभ
माना जाता है। इस दिन मुहुर्त निकलवाने की आवश्यकता
नहीं होती है। बसंत पंचमी के दिन सरसों के खेतों में सुनहरी चमक फैल जाती है। पेड़ों पर फूल खिलने लगते हैं। संपूर्ण धरती श्रृंगार करती है।
आदिकाल से ही विद्वानों ने भारतवर्ष में पूरे वर्ष को 6भागों में विभक्त किया था। जो छह ऋतु के नाम से जानी जाती हैं। इसमें वसंत ऋतु लोगों को सबसे मनचाही एवं सर्वश्रेष्ठ ऋतु लगी। इसी कारण इसे ऋतुराज के नाम से भी जाना जाता है। मात्र प्रकृति
प्रेमियों के लिए ही नहीं, वरन सभी जीव- जंतुओं के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। यह वह मौसम है जब
प्रकृति में बहार आ जाती है। सरसों के खेत सुनहरे रंग से चमकने लगते हैं। जौं एवं गेहूं की बालियां आाने लगती हैं। प्रत्येक तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने
लगती हैं। इसी ऋतुराज वसंत के स्वागत के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन उत्सव मनाया जाता है। जिसमें मां सरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु एवं कामदेव की
पूजा होती है। जो बसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता है।इस दिन बसंती अर्थात पीले रंग का का विशेष महत्व
है। लोग पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। यदि संभव न हो तो कम से कम पीले रंग का रुमाल अपने पास रखते हैं। और पीले रंग का रुमाल मंदिरों, देवालयों में
चढ़ाते हैं। इस दिन पकवान भी पीले रंग के बनाकर रिश्तेदारों, मित्रों एवं आस पड़ोस में बांटने की परंपरा भी है। इसके अतिरिक्त छोटे शिशुओं की शिक्षा का प्रारंभ भी इसी दिन से किया जाता है। शिशु की तख्ती
पर शुभ चिन्ह अंकित कर शिशु को अक्षर ज्ञान कराने का प्रारंभ भी इसी दिन किया जाता है। अब वर्तमान आधुनिक समय में तख्ती पर लिखने की परंपरा तो रही नहीं। शिशु को अक्षर ज्ञान घर पर कराने की व्यवस्था भी लगभग समाप्त हो चुकी है। इसके बावजूद भी शिशु के विभिन्न संस्कार इस पावन तिथि
पर संपन्न किए जाने की परंपरा कुछ शेष बची है।देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में इस पावन दिवस का एक और महत्व इस कारण से भी है कि बसंत पंचमी के दिन से ही कुमाऊंनी बैठकी होली का आरंभ भी इस दिन से होता है। कुमाऊंनी बैठकी
होली की परंपरा के अनुसार इस पावन दिवस से लेकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी अर्थात आंवला एकादशी तक बैठकी होली गायन चलता है। इसी प्रकार बैठकी होली के गायन के प्रारंभ के साथ ही होली के उत्सव का प्रारंभ भी हो जाता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ काल में भगवान विष्णु कीआज्ञा से ब्रह्मा ने 8400000 योनियों के साथ मनुष्य योनि की रचना की, इसके बावजूद भी वे अपनी इस रचना से पूर्णतया संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि
सृष्टि में कुछ कमी रह गई है। जिस कारण चारों ओर मौन छाया रहता है।अंत में विष्णु भगवान से आज्ञा लेकर ब्रह्मा ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जिस कारण जल के कण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा तथा वृक्षों
के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। प्रकृति का यह प्राकट्य एक चतुर्भुज देवी के रूप में था, उसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वर देने की मुद्रा में था। अन्य दो हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा
ने देवी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा उनसे
वीणा बजाने का अनुरोध किया । जैसे ही देवी ने
वीणा के तारों को झंकृत किया, मधुर नाद से धरती के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। विश्व के समस्त जल धाराओं में स्वरों का संचार होते ही उसमें कोलाहल व्याप्त हो गया। सीधे शब्दों में कहें तो ध्वनि की उत्पत्ति उसी समय से प्रारंभ हुई।पाठकों की जानकारी हेतु
बताना चाहूंगा कि ऋग्वेद में कहा गया है कि-
*प्रणोदेवी सरस्वती वाजेभिवर्जिनीवती धीनामणित्रयवततु।*

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अर्थात यह परम चेतना है, सरस्वती के रूप में यह हमारी बुद्धि प्रज्ञा तथा मनोवति की संरक्षिका है। हममें
जो आचार और मेधा है, उसका आधार देवी भगवती सरस्वती ही है।
*शुभ मुहूर्त*
इस बार सन 2024 में दिनांक 14 फरवरी 2024 दिन बुधवार को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन यदि पंचमी तिथि की बात करें तो इस दिन 13 घड़ी पांच पल अर्थात दोपहर 12:10 बजे तक पंचमी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन रेवती नामक नक्षत्र नौ घड़ी 28 पल अर्थात प्रातः 10:43 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव 10: 43 बजे तक मीन राशि में रहेंगे तदुप्रांत चंद्र देव मेष राशि में प्रवेश करेंगे।
*लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*

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