नैनीताल। ऊधमसिंह नगर में ब्लैकमेलिंग से जुड़े एक मामले में दायर याचिका की हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार की ओर से हाल में दायित्व से हटाए गये पांचों अधिवक्ताओं ने कोर्ट में कभी भी खराब पैरवी नहीं की थी। कोर्ट ने पूछा उन्हें क्यों हटाया गया ? क्या कोई जांच की गई थी। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने तो उन्हें हटाने को कभी नहीं कहा था। महाधिवक्ता ने इस पर कहा कि जब कोर्ट ने राज्य की ओर से गंभीरता न बरतने पर नाराजगी जताई थी तो संभवतः अधिकारियों ने इसका गलत अर्थ लगा कर इसे अधिवक्ताओं की कमी समझ लिया था।
राज्य के विधि एवं न्याय सचिव वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जबकि ऊधमसिंह नगर के एसएसपी मंजूनाथ टीसी स्वयं कोर्ट में पेश हुए। एसएसपी ने कोर्ट को बताया कि दोषी जांच अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है और भविष्य में इस तरह की चूक नहीं होगी। मामले की अगली सुनवाई 1 अक्टूबर को होगी।
न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामला रूद्रपुर में ब्लैकमेलिंग के 2019 के झूठे प्रकरण से जुड़ा है। आरोप है कि रूद्रपुर के पहाड़ गंज निवासी महबूब अली ने एक महिला के साथ मिलकर पहाड़गंज निवासी 65 वर्षीय बुजुर्ग धर्मपाल को छेड़छाड़ के आरोप में फंसाने की साजिश रची और उनसे लाखों की रूपये की रकम ऐंठ ली। मामले में पुलिस ने आरोपी महबूब अली के खिलाफ धारा 384, 504, 506 व 34 के तहत मामला दर्ज कर मामले की जांच सब इंस्पेक्टर मुकेश मिश्रा को सौंप दी। पीड़ित की ओर से जांच अधिकारी को साक्ष्य के तौर पर इस प्रकरण से जुड़ी एक पेन ड्राइव भी सौंपी गयी। इस दौरान आरोपी की ओर से वर्ष 2021 में उच्च न्यायालय में जमानत याचिका दायर की गयी।
प्रकरण की सुनवाई में कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जांच अधिकारी की ओर से जो जवाब दायर किया गया था उसमें आरोपियों की पेन ड्राइव से जुड़ी ऑडियो रिकार्डिंग के बारे में उल्लेख नहीं है। अदालत के संज्ञान में आया कि आरोपी कोरोना महामारी के चलते पेरोल पर है और अभी भी पेरोल पर ही है। इसके बाद कोर्ट ने सरकार से इस मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा था। सरकार की ओर से इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया गया। पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि 30 जून 2022, 14 जुलाई 2022, 15 जुलाई 2022 व 01 सितम्बर 2022 को कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार की ओर से इस मामले में जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद कोर्ट ने सरकार के कामकाज पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार जमानत संबंधी मामलों के निस्तारण में कोर्ट का सहयोग नहीं कर रही है। कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार ‘सब चलता है’ के रवैये पर काम कर रही है जो कि कानून के राज में बेहद खतरनाक है।
जिसके बाद सचिव लॉ ने आदेश पारित कर उपमहाधिवक्ता अमित भट्ट, शेर सिंह अधिकारी, विनोद कुमार जैमनी, वाद धारक सिद्घार्थ बिष्ट व मीना बिष्ट की आबद्घता को समाप्त कर दिया था। इस पर कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट रूप से कहा कि इन पांचों अधिवक्ताओं ने कोर्ट में कभी भी खराब पैरवी नहीं की। उन्होंने हमेशा कोर्ट में वही तथ्य रखे जो उनको संबंधित अधिकारी की ओर से उपलब्ध कराये गये। इस संबंध में एलआर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए उन्होंने कहा कि पांच अधिवक्ताओं की आबद्धता को शासन की ओर से समाप्त किया गया है।
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