*अक्षय तृतीया भगवान परशुराम जन्मोत्सव। जानिए महत्व एवं भविष्य पुराण में वर्णित कथा* वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अक्षय तृतीया के नाम से जानी जाती है। आज़ के दिन ही प्रति वर्ष भगवान केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलते हैं।इस दिन भगवान परशुराम जन्मोत्सव मनाया जाता है। अक्षय का अर्थ है जो कभी क्षय ना हो अर्थात नष्ट ना हो। इस दिन किया गया दान पुण्य कभी क्षय नहीं होता बल्कि वह हजारों लाखों गुना बढ़ जाता है।
*अक्षय तृतीया की कथा,*
आज प्रिय पाठकों को भविष्य पुराण में दी गई अक्षय तृतीया की कथा के बारे में जानकारी देना
चाहूंगा। भविष्य पुराण के अनुसार एक समय
की बात है सकल नगर में धर्मदास नामक एक
वैश्य रहता था। वह धार्मिक विचारों वाला
व्यक्ति था वह कभी भी पूजा-पाठ और दान
पुण्य के अवसरों को अपने हाथ से जाने नहीं
देता था। भगवान की भक्ति में उसकी आस्था
थी। वह ब्राह्मणों का आदर सत्कार करता था।
एक दिन किसी के द्वारा उसे अक्षय तृतीया के
महत्व के बारे में पता चला उसने धर्मदास को
बताया कि अक्षय तृतीया को पूजा पाठ करने
और ब्राह्मणों को दान करने से अक्षय पुण्य की
प्राप्ति होती है। यह बात उसके मन में बैठ गई।जब वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया
तिथि आईतो उसने प्रातः नदी में स्नान किया
तत्पश्चात अपने पितरों की पूजा की फिर घर
पहुंचकर देवी देवताओं की पूजा अर्चना की।
उसने ब्राह्मणों को बुलाकर उनका सम्मान
किया और दही गुड अनाज गेहूं चना सोना
चांदी आदि दान कर खुशी पूर्वक विदा किया।
इसी प्रकार वह प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया पर
पूजा-पाठ और दान पुण्य करने लगा। हालांकि
उसके घर वालों को यह बात ठीक नहीं लगती
थी। उसकी पत्नी ने उसे ऐसा करने से मना भी
किया। परंतु उसने दान पुण्य करना नहीं छोड़ा।
कुछ समय अंतराल के बाद धर्मदास का निधन
हो गया फिर अगले जन्म में वह द्वारका के कुशावती में पैदा हुआ। वह वहां का राजा बना यह अक्षय तृतीया के दिन किए गए पूजा पाठ
एवं दान पुण्य का ही प्रभाव था। पिछले जन्म में प्राप्त अक्षय पुण्य से उसके लिए राजयोग बना। इस जन्म में भी वह धार्मिक विचारों वाला था।
वह बड़ा ही वैभवशाली एव प्रतापी राजा बना।
धार्मिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया के
दिन इस कथा को पढ़ने या सुनने से भी अक्षय
पुण्य फल प्राप्त होता है। अतः इस दिन आपको भी यह कथा सुननी चाहिए अथवा पढ़नी चाहिए।
अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण आभूषण गहने
आदि बनवाने को भी शुभ माना जाता है। यदि
दान पुण्य की बात करें तो दान पुण्य का महापर्व ही इस दिन को माना जाता है। दान की शुरुआत इसी दिन से हुई थी। भविष्य पुराण मेंऐसा कहा गया है कि-
*यत किंचितु जीते दानम् स्वल्प वा यदि वा बहु, तत् सर्व मक्षयं तस्मात्प्रणम्य तैनेयमक्षया स्मृता।*
अर्थात इस पर्व पर थोड़ा बहुत जितना हो सके
वह दान अक्षय फल देता है। मान्यता है कि इस
दिन बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य
किया जा सकता है। इस दिन यज्ञोपवित
संस्कार भी किए जाते हैं। वहीं जब अक्षय
तृतीया के दिन यदि किसी जातक की शादी में
बाधाएं आ रही हैं तो यह उपाय करें यह उपाय
मुख्य रूप से उन माता-पिता के लिए है जो
अपनी संतान की शादी के लिए परेशान हैं। इस
दिन आपके आसपास जहां कहीं शादी हो रही
है वहां जाकर कन्या को दान स्वरूप कुछ दें।
अक्षय तृतीया के दिन पितरों के निमित्त कलशपंखा छाता चप्पल ककड़ी खरबूजा आदि दान करें। जरूरतमंदों को और साधु को फल
शक्कर और घी दान करने से विशेष फल की
प्राप्ति होती है। भविष्य पुराण में ऐसा भी कहा
गया है कि हाथी का दान घोड़े के दान से बड़ा
होता है तिल दान हाथी दान से बड़ा होता है।
भूमि दान तिल दान से बड़ा होता है स्वर्ण दान
भूमि दान से बड़ा होता है परंतु अन्न दान स्वर्ण
दान से बड़ा है अन्न दान से बड़ा कोई दान नहीं
है। हां कन्यादान एवं अन्नदान लगभग बराबर
होते हैं। अतः इस दिन अन्न दान अवश्य करें।
आज के दिन भगवान परशुराम का जन्म
उत्सव भी मनाया जाता है। भगवान परशुराम
त्रेता युग में अर्थात रामायण काल में एक ब्रह्मा ऋषि के यहां जन्मे थे जो विष्णु भगवान के 19वें अवतार माने जाते हैं। पौराणिक ग्रंथों के
अनुसार उनका जन्म महर्षि भूगु के पुत्र महर्षि
जमदग्नि द्वारा पुत्रेष्टियज्ञ से प्रसन्न देवराज इंद्र
के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से
वैशाख शुक्ल तृतीया को भारत वर्ष के मध्य
प्रदेश राज्य के इंदौर जिले में मानपुर गांव के
जानापाव पर्वत में हुआ था। भगवान विष्णु के
आवेश अवतार हैं। महाभारत और विष्णु
पुराण के आनुसार परशुराम जी का मूल नाम
राम था कितु जब भगवान शिव जी ने उन्हें
अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से
उनका नाम परशुराम हो गया। पितामह भृगु
द्वारा संपन्न नामकरण संस्कार के अनंतर राम
कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण
जामदग्न्याय और शिव जी द्वारा प्रदत परशुधारण किए रहने के कारण परशुराम कहलाए।
आरंभिक शिक्षा महर्षि विश्বাमित्र एवं ऋचीक
के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही ऋचीक से
वैष्णव धनुष और महर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मंत्र प्राप्त हुआ।
तदनंतर कैलाश गिरिश्रंग पर स्थित भगवान
शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट
दिव्य अस्त्र परश् प्राप्त किया। भगवान भोले
शंकर से उन्हें श्री कृष्ण का “त्रैलोक्य विजय
कवच स्तोत्र” एवं “मंत्र कल्पतरु” भी प्राप्त हुए।
चक्रतीर्थ में किए कठिन तप से प्रसन्न हो
भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में राम अवतार होने
पर तेजो हरण के उपरांत कल्पान्त पर्यंत
तपस्यारत भूलोक पर रहने का वरदान दिया।
शस्त्र विद्या के महान गुरु है। उन्होंने भीष्म द्रोणतथा करण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी।
उन्होंने कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने
एकादश छन्द युक्त ” शिव पंचत्वारिंशनाम
स्त्रोत” भी लिखा। इच्छत फल प्रदाता
परशुराम गायत्री हैं। *ओम जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धिमहि, तन्न : परशुरामः प्रचोदयात”*
वे पुरुषों के लिए आजीवन एक पत्नी व्रत के पक्षधर थे। अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व
अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से
विराट नारी जागृति अभियान का संचालन भी
किया था। अवशेष कार्यों में कलिक अवतार
होने पर उनका गुरु पद ग्रहण कर उन्हें शस्त्र
विद्या प्रदान करना भी बताया गया है। भगवान
परशुराम अष्ट चिरंजीवीयों में से एक हैं।
अश्वत्थामा बली व्यास हनुमान जी विभीषणजी कृपाचार्य परशुराम जी एवं मार्कण्डेय जी ये
अष्ट चिरंजीवी कहे गए हैं। कुछ लोग हनुमान
जयंती या परशुराम जयंती कहते हैं ऐसा न
कहकर हनुमान जन्मोत्सव या परशुराम
जन्मोत्सव कहना चाहिए। क्योंकि जयंती
उनकी होती है जो इस संसार में नहीं है। अतः
पाठकों से विनम्र निवेदन है की इसे परशुराम
जन्मोत्सव कहें। क्योंकि इन्हें अमरत्व प्राप्त
हुआ है।
अक्षय तृतीया के दिन विवाह यज्ञोपवित
संस्कार एवं चूड़ाकरण संस्कार बिना पंचांग
देखें इस दिन कराए जाते हैं। देवभूमि
उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के नौकृचिया
ताल सहित कई तीरथों में इस दिन यज्ञोपवीत
एवं चूड़ाकरण संस्कार कराए जाते हैं। इसकेअतिरिक्त कुमाऊं संभाग में लगभग सभी तीरथों
में यज्ञोपवीत और चूड़ाकरण संस्कार कराए
जाते हैं।
*लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*