हिंदुओं की धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी व्रत का अत्यधिक महत्व है। जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी या अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करने से अपार धन संपदा का लाभ प्राप्त होता है।
शुभ मुहूर्त—
इस बार अपरा एकादशी या अचला एकादशी दिनांक 15 मई सोमवार को मनाई जाएगी। इस दिन एकादशी तिथि 49 घड़ी 10 पल अर्थात मध्य रात्रि 1:03 बजे तक है। पूर्वाभाद्रपद नामक नक्षत्र 9 घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 9:07 बजे तक है विष्कुंभ नामक योग 50 घड़ी 8 पल अर्थात मध्य रात्रि 1:26 बजे तक है। बव नामक करण 21 घड़ी 15 पल अर्थात दोपहर 1:53 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मीन राशि में विराजमान रहेंगे।
पूजा विधि–
अपरा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा और माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा को पीले आसन पर विराजमान करें। तदोपरांत रोली कुमकुम का तिलक लगाएं धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें। जलाभिषेक करने के लिए शंख का प्रयोग करें। पाठकों को बताना चाहूंगा कि संघ माता लक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय है। इसलिए शंख से जलाभिषेक किया दुग्ध अभिषेक करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। व्रत पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथासंभव दान दें। इससे आर्थिक उन्नति और मानसिक लाभ प्राप्त होता है। पाठकों को एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि एकादशी व्रत के दिन नाखून वाला दिन ना काटे और स्नान में साबुन का प्रयोग भी ना करें। इस दिन परिवार में कोई भी सदस्य चावल ग्रहण न करें।
अपरा एकादशी व्रत कथा—
अचला एकादशी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में माही ध्वज नमक-एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्र ध्वज बड़ा ही क्रूर अधर्मी तथा अन्यायी था। उस पापी ने 1 दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाढ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेत आत्मा के रूप में उसी पीपल वृक्ष पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पाद का कारण भी समझा। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से नीचे उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे प्रेत योनि से छुड़ाने के लिए व्रत का पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ऋषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया। अतः अपरा एकादशी की कथा पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।
लेखक-: पंडित प्रकाश जोशी गेठिया, नैनीताल।