भूख सहन न करने वाले पांडू पुत्र भीम ने भी किया निर्जला एकादशी व्रत। जानिए रोचक कथा, महत्व, पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त।
एकादशी व्रत प्रत्येक महीने दो बार एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में होता है। इस प्रकार वर्ष में 24 एकादशी और अधिक वर्ष में 26 एकादशी व्रत होते हैं सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं।
जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को शास्त्रों में मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत बताया गया है परंतु इस व्रत को विधि विधान के साथ रखने पर ही वर्ती की इच्छा इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है। लेकिन अगर आप हर माह दो एकादशी के व्रत या वर्ष में 24एकादशी व्रत नहीं रख सकते तो सिर्फ एक निर्जला एकादशी व्रत रख ले। निर्जला का अर्थ है जल रहित।
शुभ मुहूर्त —
इस बार निर्जला एकादशी दिनांक 31 मई 2023 दिन बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो इस दिन 21 घड़ी 15 पल अर्थात दोपहर 1:46 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नामक नक्षत्र एक घड़ी 45 पल अर्थात प्रातः 5:58 बजे तक रहेगा। तदुपरांत चित्रा नामक नक्षत्र उदय होगा। व्यतिपात नामक योग 37 घड़ी 18 पल अर्थात शाम 8:11 बजे तक है विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा 21 घड़ी 15 पल अर्थात दोपहर 1:46 बजे तक है। यदि इस दिन चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव शाम 6:22 बजे तक कन्या राशि में विराजमान रहेंगे तदोपरांत चंद्रदेव तुला राशि में प्रवेश करेंगे।
इस एकादशी व्रत के नियम अन्य एकादशी व्रत के मुकाबले कठिन होते हैं परंतु यह व्रत जितना कठिन है उतना ही प्रभावशाली भी है ।
व्रत कथा–
इस व्रत कथा के अनुसार महाभारत काल में राजा पांडु के घर में सभी सदस्य एकादशी का व्रत करते थे। परंतु भीम को भूखा रहने में बड़ी परेशानी होती थी। वह व्रत नहीं रख पाते थे। और इस बात से भी बहुत दुखी होते थे कि उन्हें लगता था कि ऐसा करने से वह भगवान विष्णु का निरादर कर रहे हैं। इस समस्या को लेकर एक दिन भीम महर्षि व्यास जी के पास गए तब वेदव्यास जी ने कहा अगर आप मोक्ष पाना चाहते हैं तो एकादशी का व्रत करना नितांत आवश्यक है। यदि आप हर माह की एकादशी का व्रत नहीं रख सकते तो वर्ष में मात्र एक व्रत जेष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी निर्जला एकादशी का व्रत रखें। लेकिन इसके नियम बहुत कठिन है। नियमों का पूरा पालन करने से ही आपको 24 एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होगा। भीम इसके लिए तैयार हो गए और निर्जला एकादशी का व्रत रखने लगे। तभी से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है ।महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया था एकादशी का उपवास निर्जल रहकर करना होता है। इसमें ना अन्न ग्रहण करते हैं और नहीं जल। केवल आप आचपन के लिए मुख में जल रख सकते हैं। इसके अतिरिक्त किसी तरह जल व्यक्ति के मुंह में नहीं जाना चाहिए अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। निर्जला एकादशी व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होकर अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है। पारण तक जल की एक बूंद भी गले से नीचे नहीं उतारी जाती। अगले दिन द्वादशी को सुबह में स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन आदि करावे सामर्थ्य के अनुसार दान दें इसके बाद व्रत का पारण करें।
पूजा विधि—
निर्जला एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु को पीला चंदन पुष्प धूप दीप नैवेद्य वस्त्र और दक्षिणा आदि अर्पित करें। “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का जाप 108 बार करें। निर्जला एकादशी व्रत की कथा पढ़ें अथवा किसी सुयोग्य ब्राह्मण से कथा श्रवण करें। ध्यान रहे पारण के दिन तक अन्न एवं जल ग्रहण न करें। रात्रि में जागकर भगवान का भजन और कीर्तन करें पारण के दिन ब्राह्मण को भोजन के बाद उन्हें दान दक्षिणा देकर सम्मान पूर्वक विदा करें इसके बाद व्रत खोलें।
लेखक -: पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।