नैनीताल। बेघर किये जाने घबराए चार्टन लॉज निवासियों ने प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, मुख्यमंत्री व राज्यपाल को पत्र लिखकर गुहार लगाई है। उनका कहना है कि वह कई दशकों से इस क्षेत्र में निवास कर रहे हैं । यह पूर्णतः निजी संपत्ति है। इसके बावजूद उन्हें जबरन हटाया जा रहा है।
पत्र में कहा गया है कि चार्टन लॉज नैनीताल की एक प्राइवेट संपत्ति है इस संपत्ति को चार्टन लॉज स्वामी द्वारा आम नागरिको को बेचा गया था। जमीन की रजिस्ट्री व दाखिल खारिज कानूनी तौर पर पुख्ता है। मगर अतिक्रमण ठहराया जा रहा है। लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई से अपने आशियाने बनाये हैं और चार्टन लॉज नैनीताल का वह हिस्सा है जिसकी सरहद बी० डी० पाण्डे अस्पताल की भूमि की सरहद से मिलती है ।
जिस भूमि को बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल अपना बताता है वह भूमि इम्पीरियल बैंक द्वारा वर्ष 1949 में अपनी 4.1 एकड़ भूमि मे से 2.76 एकड़ भूमि बीडी पाण्डे हॉस्पिटल को दान में दी गयी थी जिसकी रजिस्ट्री बीडी पाण्डे हॉस्पिटल के नाम दर्ज है और जिसका वास्तविकता मानचित्र बी डी पाण्डे हॉस्पिटल के पास मौजूद नहीं है और वर्ष 1949 से आज दिनांक तक उक्त भूमि का दाखिल खारिज भी बी डी० पाण्डे हॉस्पिटल के नाम नहीं चढ़ा है । 1992 में चार्टन लॉज कंपाउंड में महबूब आलम द्वारा एक प्लाट खरीदा गया था, जो बी० डी० पाण्डे अस्पताल की दान में प्राप्त भूमि की सरहद के नज़दीक है जिसकी रजिस्ट्री वर्ष 1993 में हुई और दाखिल खारिज भी हुआ। वर्ष 1992 में बी०डी० पाण्डे अस्पताल द्वारा महबूब आलम से कहा गया की ये ज़मीन बी०डी० पाण्डे अस्पताल की है तब महबूब आलम द्वारा एस.डी.एम को पत्र लिख कर कहा गया की बी० डी० पाण्डे और चार्टन लॉज की सीमा का डीमर्केशन कराया जाए ताकि उनको पता चले की उनके द्वारा खरीदी गयी भूमि किसकी है जिसमे वर्ष 1992 में जिला प्रशासन द्वारा इम्पीरियल बैंक के ओरिजिनल नक्शे से नपाई करायी गयी जिसमे महबूब आलम की भूमि को चार्टन में होना पाया गया। कहा की महबूब आलम के घर के बराबर में नाला है नाले के बगल में बी०डी० पाण्डे अस्पताल के स्टाफ क्वाटर बने है वर्ष 1992 की नपती में स्टाफ क्वाटर का 70 फीसद हिस्सा चार्टन लॉज की ज़मीन में होना पाया गया। जिसका दोनों पार्टी के बीच समझौता हुआ और समझौते की रिपोर्ट और नक्शा तहसीलदार ऑफिस में जमा हुआ और वर्ष 1994 में बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल द्वारा महबूब आलम को एक एनओसी दी गयी जिस एनओसी में कहा गया की महबूब आलम की जमीन बी० डी० पाण्डे अस्पताल की सरहद में नही आती है और उस एनओसी के आधार पर लोगों ने चार्टन लॉज में जमीन खरीदी और मकान बनाए और अपने अपने मकानों की रजिस्ट्री और दाखिला खारिज कराया गया।
वर्ष 2009 में बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल के लिए एक जनहित याचिका दायर की जिस में देखा गया की बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल में सुविधा की कमी है छोटी छोटी बातों के लिए हल्द्वानी के हॉस्पिटल के लिए रेफर करा जाता है जिस पर बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल द्वारा ये कहा गया कि अस्पताल की 1.49 एकड़ भूमि में लोगों ने कब्जा करा है, जबकि 1994 में चार्टन लॉज और बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल की जमीन का डीमार्केशन हो चुका है। जिसका ब्यौरा जिला प्रशासन नैनीताल में मौजूद है।
बी० डी० पाण्डे अस्पताल की इस रिपोर्ट के आधार पर 2014 में उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा तकरीबन 40 लोगों को अतिक्रमणकारी बताते हुए उनको भवनो को तोड़ने का आदेश कर दिया तब से लेकर अब तक चार्टन लॉज निवासी कानूनी लड़ाई लड़ते आ रहें है जिस पर हमे किसी भी न्यायालय से न्याय नही मिल रहा है।
उन्होंने आगे लिखा अस्पताल की उस 2.76 एकड़ भूमी का बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल के पास न तो नक्शा है और ना ही वर्ष 1949 से दाखिल खारिज हुआ है, वर्ष 2014 से बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल द्वारा जो नपाइ जाती है वो असली नक्शे की बजाये अमोनिया प्रिंट द्वारा तयार ब्लू प्रिंट नक्शे से की जाती है जो की अमान्य है और हर नपाइ में तकरीबन 40 मकानों को बी० डी० पाण्डे हॉस्पिटल द्वारा अपना बता दिया जाता है।
लिखा की वर्ष 2014 में भी कुछ लोगों द्वारा हाई कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी गयी वहां से हमें खारिज कर दिया गया तब 2015 में सभी चार्टन लॉज निवासी सुप्रीम कोर्ट गए जहां एससी ने मामले में स्टे लगा दिया और जिलाधिकारी को इस मामले को सुनने को कहा गया। जिलाधिकारी द्वारा कहा गया कि जमीन कहीं और हैं और कब्ज़ा कहीं और किया गया है, और सभी को नोटिस दिए गए जिसके बाद वह फिर से हाई कोर्ट गए जहां वहां से उन्हें वर्ष 2021 में जनहित याचिका से बाहर करते ‘हुए सिविल कोर्ट में भेजा गया और सिविल कोर्ट में मामला अभी तक लंबित है। जबकि इस वर्ष मई 2023 में एक नयी जनहित याचिका में उन 40 मकानों को तोड़ने का आदेश उच्च न्यायलय द्वारा पारित कर दिया गया। जिस के बाद सभी चार्टन लॉज निवासी सुप्रीम कोर्ट गए लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली और उन्हें वापस हाई कोर्ट भेज दिया गया।
जिस पर अब उन्होंने शासन से न्याय की गुहार लगाते हुए उनके आशियानों को बचाने की मांग की है।

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प्रशासन की यह कार्यवाही हाईकोर्ट के आदेश पर हो रही है और प्रशासन को आदेश का पालन होने के बारे में 20 सितंबर को हाईकोर्ट में जबाव दाखिल करना है ।

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