*अमृत सिद्धि योग सहित पांच शुभ योगों में मनाई जाएगी इस बार देवशयनी एकादशी(तुलसी एकादशी)जानिए शुभ मुहूर्त ,व्रत कथा, महत्व एवं पूजा विधि। कैसे बनता है अमृत सिद्धि योग ये भी जानिए?*
देवभूमि उत्तराखंड में देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी व्रत को मुख्य रूप से तुलसी एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। इसी दिन से एकादशी व्रत चातुर्मास व्रत प्रारंभ हो जाते हैं। जो व्यक्ति संपूर्ण वर्ष भर एकादशी व्रत नहीं रख पाते हैं वह लोग इस देवशयनी एकादशी या तुलसी एकादशी से प्रारंभ कर कार्तिक मास के प्रबोधिनी एकादशी व्रत तक एकादशी व्रत ले सकते हैं। तुलसी एकादशी के दिन तुलसी वृंदावन में पांच पौधे तुलसी के रोप कर वहां पर पूजा की जाती है और कथा पढ़ी जाती है। इस व्रत के दिन तुलसी वृंदावन के समीप ही बैठकर कथा पढ़ना या सुनना भी नितांत आवश्यक है। अन्यथा व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
*शुभ मुहूर्त-*
इस बार दिनांक 17 जुलाई 2024 दिन बुधवार को देवशयनी एकादशी हरिशयनी एकादशी या तुलसी एकादशी व्रत मनाया जाएगा। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 39 घड़ी एक पल अर्थात रात्रि 9:03 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन 54 घड़ी 25 पल अर्थात अगले दिन प्रात 3:13 बजे तक अनुराधा नामक नक्षत्र रहेगा। यदि योग की बात करें तो चार घड़ी तीन पल अर्थात प्रातः 7:04 बजे तक शुभ योग रहेगा तदुपरांत शुक्ल योग प्रारंभ होगा। यदि करण के बारे में जानें तो इस दिन वणिज नामक करण 8 घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 8:55 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे। सबसे महत्वपूर्ण इस बार देवशयनी एकादशी पर पांच शुभ संयोग बन रहे हैं। शुभ योग, शुक्ल योग, सर्वार्थ सिद्धि योग ,अमृत सिद्धि योग के साथ अनुराधा नक्षत्र का सुंदर संयोग बना है। यदि सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो प्रातः 4:34 से 18 जुलाई को प्रातः 3:13 बजे तक यह योग रहेगा। और यदि अमृत सिद्धि योग की बात करें तो प्राप्त है 4:34 बजे से 18 जुलाई को प्रातः 3:13 बजे तक अमृत सिद्धि योग भी रहेगा। यदि अनुराधा नक्षत्र की बात करें तो प्रातः काल से लेकर 18 जुलाई को 3:13 बजे तक अनुराधा नक्षत्र भी रहेगा। वही शुक्ल योग प्रातः 7:05 से 18 जुलाई को प्रातः 6:13 तक रहेगा।
*कैसे बनता है अमृत सिद्धि योग? आइए यह भी जान लेते हैं।*
हमारी ज्योतिष शास्त्रों में अमृत सिद्धि योग बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है ऐसे योग में नया घर का निर्माण करना गृह प्रवेश करना।नए वाहन आदि खरीदने के लिए तथा अन्य शुभ कार्यों के लिए बहुत शुभ माना जाता है। अमृत सिद्धि योग नक्षत्र और वार के तालमेल से बनता है। इस संबंध में हमारे ज्योतिष शास्त्रों में कुछ श्लोक हैं।
*हस्त: सूर्ये मृग:सोमे वारे भौमे तथाश्विनी ।*
*बुधे मैत्रं गुरौ पुष्यो रेवती भृगुनंदने।।*
*रोहिणी सूर्यपुत्रे च सर्वसिद्धि प्रदायक: ।*
*असावमृतसिद्धिश्च योग: प्रोक्त: पुरातने:।।*
अर्थात रविवार को हस्त नक्षत्र सोमवार को मृगर्शीर्ष नक्षत्र मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र बुधवार को अनुराधा नक्षत्र गुरुवार को पुष्य नक्षत्र शुक्रवार को रेवती नक्षत्र तथा शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
*देव शयनी एकादशी व्रत कथा-*
एक बार पांडू पुत्र
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा- हे कशव! आषाढ़
मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण कहने
लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही
मैं तुमसे कहता हूँ। एक समय नारद जी ने ब्रह्मा जी से यही प्रश्न किया
था। तब ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया कि हे नारद !तुमने कलयुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न
किया है। क्योंकि देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम
है। इसी व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। और जो मनुष्य इस व्रत
को नहीं करते वह नर्क गामी होते है। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस एकादशी का नाम हरिशयनी एकादशी भी है।अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूं। तुम मन लगाकर सुनों ।सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है। जो सत्यवादी और महान प्रतापी था।
वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी
प्रजा धन-धान्य से परिपूर्ण और सुखी थी। उसके राज्य में कभी
अकाल नही पड़ता था। एक समय उस राजा के राज्य में 3 वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञ आदि भी बंद हो गए एक दिन प्रजा राजा क पास जाकर
कहने लगी कि हे राजन !सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है क्योंकि
समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल
पड गया हैं और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन !कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट
दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे किे आप लोग ठीक कह रहे हैं वर्षा से
ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो
गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हू। ऐसा कहकर राजा
कुछ सेना को साथ लेकर एक वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषि-मुनियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतर कर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि
ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशल सेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवान !सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल
पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। जब मैं धर्म अनुसार राज्य करता हूँ तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक
नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए
आया हू कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के
कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि
कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म के
चारों चरण सम्मिलित हैं। अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक
उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही
वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख
सकते हैं परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष
के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। इसलिए यदि आप प्रजा
का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दों। इस पर राजा कहने
लगा कि महाराज! मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हू। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे
राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के
शुक्ल पक्ष की देव शयनी नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो।
व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त पापों का नाश करने वाला
है। एकादशी का व्रत तुम प्रजा सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा
अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक देवशयनी
एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को
सुख पहुचा। अतः इस मास की एकादशी का व्रत सभी मनुष्य को
करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने
वाला है। इसके अतिरिक्त इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के
समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
*देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा विधि-*
देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की
रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात
काल उठकर दैनिक का्यों से निवृत्त होकर पवित्र नदियों या जल स्रोत के पास या सरोवर मैं स्नान करें।यदि ऐसा संभव ना हो तो घर में ही
स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। तदुपरांत व्रत का
संकल्प लें। इस दिन तुलसी वृंदावन में तुलसी के पांच पौधे रोपे। उन्हें
जल अर्पित करें और रोली कुमकुम चढ़ाएं।भगवान विष्णु की प्रतिमा
को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार पूजन करना चाहिए
सर्वप्रथम उन्हें स्नान करावे फिर पंचामृत स्नान करवाकर पुनः शुद्ध
जल से स्नान करावे तत्पश्चात भगवान को रोली कुमकुम चढ़ाए
अक्षत में चावल की जगह जौ का प्रयोग करें। भगवान को धूप दीप
पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
भगवान को तांबूल पुंगी फल अर्थात सुपारी और पान का पत्ता अर्पित करने के बाद उनकी स्तुति की जानी चाहिए इसके अतिरिक्त
शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताए गए हैं उनका सख्ती से पालन
करना चाहिए । ध्यान रहे उस दिन घर में कोई भी व्यक्ति चावल का
प्रयोग ना करें।उस दिन तुलसी वृंदावन के समीप ही पूजा करने का विधान है। इसके बाद प्रतिदिन सुबह शाम वहां पर दिया प्रज्वलित करना चाहिए और प्रतिदिन स्नान के उपरांत तुलसी के पौधों पर जल अर्पित करें।
*लेखक–: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*