वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी नाम से जाना जाता है। इस बार दिनांक 8 मई 2025 दिन गुरुवार को मोहिनी एकादशी व्रत मनाया जाएगा। आज यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 17 घड़ी 37 पल अर्थात दोपहर 12:30 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि इस दिन नक्षत्र की बात करें तो उतरा फाल्गुनी नामक नक्षत्र 39 घड़ी सात पल अर्थात रात्रि 9:06 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि आज चंद्रमा की स्थिति को जानें तो आज चंद्र देव पूर्ण रुपेण कन्या राशि में विराजमान रहेंगे।
*व्रत कथा -:*
धर्मराज युथिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण!
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी
का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है?
इस व्रत की क्या विधि क्या है, यह सब
विस्तारपूर्वक बताइए।श्रीकृष्ण कहने लगे कि
हे धर्मराज! मैं
आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ
ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय
श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत
बताइए, जिससे समस्त पाप और दुःख
का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग
में बहुत दुःख भोगे हैं।
महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत
सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत
शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम
स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो
जाता है तो भी लोक हित में यह प्रश्न अच्छा
है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है।
उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत
करने से मनुष्य सब पापों तथा दुःखों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से सपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी
रहता था। वह अत्यंत धर्मात्मा और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय,प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि
बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम
आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके
5 पुत्र थे- सुमना, सद्धद्धि मेधावी, सुकृति
और धृष्टबुद्धि।
इनमें से पॉँचवां पुत्र धृष्टबुद्धिेमहापापी था।
वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन
करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह
पिता के धन को नष्ट करता रहता था।
इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे
घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने
के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्टहो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दुःखी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड दिया
गया।मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया।
राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डालदिया
गया। कारागार में उसे अत्यंत दुःख दिए गए।
बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने को कहा।
वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा।
कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया
और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा।
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर
आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस
पर पड़ने से उसे कुछ सद्धूद्धि प्राप्त हुई।
वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए।उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की
मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो।
इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से
मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में
इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके
माहात्त्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक
हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।
आलेख के लेखक-आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।