*बहुत महत्वपूर्ण है विवाह पंचमी पर्व इसी तिथि को हुआ था प्रभु श्री राम व सीता माता का विवाह-:*
जिन जातकों के विवाह में अड़चनें आ रही हों या फिर जिन जातकों के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आ रही है अवश्य पढ़ें या सुनें विवाह पंचमी की कथा।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार विवाह पंचमी पर्व दिनांक 6 दिसंबर 2024 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि पंचमी तिथि की बात करें तो 12 घड़ी 58 पल अर्थात दोपहर 12:08 बजे तक पंचमी तिथि है तदुपरांत षष्ठी तिथि प्रारम्भ होगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो इस दिन श्रवण नामक नक्षत्र 25 घड़ी 54 पल अर्थात शाम 5:18 बजे तक है। यदि इस दिन के योग के बारे में जाने तो इस दिन ध्रुव नामक योग नौ घड़ी 25 पल अर्थात प्रातः 10:43 तक है। यदि करण की बात करें तो बालव नामक करण 12 घड़ी 58 पल अर्थात दोपहर 12:08 बजे तक है। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मकर राशि में विराजमान रहेंगे।
*महत्व -:*
पुराणों में भगवान शिव-पार्वती विवाह, श्री
गणेश रिद्धि-सिद्धि विवाह, श्री विष्णु -लक्ष्मी
विवाह, श्री कृष्ण रुक्मिणी, सत्यभामा
विवाह के साथ ही प्रभु श्रीराम और सीता के
विवाह की बहुत चर्चा होती है। इन सभी के
विवाह का पुराणों में सुंदर चित्रण मिलता है।
कदाचित भगवान शिव और माता पार्वती के
विवाह के बाद श्री राम और देवी सीता का विवाह सबसे प्रसिद्ध विवाह माना जाता है,
क्योंकि इस विवाह की एक और विशेषता
यह थी कि इस विवाह में त्रिदेवों सहित लगभग सभी मुख्य देवता किसी ना किसी रूप में उपस्थित थे। कोई भी इस विवाह को देखने का मौका छोड़ना नहीं चाहता था। श्री राम सहित ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र को भी इसका ज्ञान था।कहा जाता है कि प्रभु श्री राम तथा जनकनंदिनी का विवाह देखने को स्वयं
ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आए
थे। राजा जनक की सभा में शिव जी का धनुष तोड़ने के बाद श्री राम का विवाह होना तय हुआ। इस विवाह का रोचक वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है। अत:विवाह के समय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षिं
विश्वामित्र उपस्थित थे। दूसरी ओर सभी देवी
और देवता भी विभिन्न वेश में उपस्थित थे।
चारों भाइयों में श्री राम का विवाह सबसे पहले हुआ।
*विवाह पंचमी की कथा-:*
विवाह पंचमी की कथा के अनुसार भगवान
शिव जी का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और
चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो।इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी इस
धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था। देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। इस धनुष को उठाने की एक युक्ति थी। जब सीता
स्वयंवर के समय शिव के धनुष को उठाने की
प्रतियोगिता रखी गई, तो रावण सहित बड़े-बड़े महारथी भी इस धनुष को हिला भी नहीं पाए थे। फिर प्रभु श्री राम की बारी आई। प्रिय पाठको की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा कि श्री राम चरित्र मानस में एक चौपाई है- *उठहु राम भंजहु भव चापा, मेट्हु तातजनक परितापा।*
भावार्थ- गुरु विश्वामित्र जनक जी को बेहद
परेशान और निराश देखकर श्री राम जी से
कहते हैं कि- हे पुत्र श्री राम !उठो और ‘भव
सागर रूपी’ इस धनुष को तोड़कर, जनक
की पीड़ा का हरण करो।”
इस चौपाई में एक शब्द है “भव चापा’
अर्थात् इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति
की नहीं बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत
थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे
उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी।
कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।
जब प्रभु श्री राम की बारी आई तो वे जान
गए थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं
बल्कि भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्होंने धनुष को प्रणाम किया।फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया।प्रभु श्री राम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही
तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को
प्रेमपूर्वक उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई
और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट
गया। कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिव जी
का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए
धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने भी
धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल
हुए। यदि मन में श्रेष्ठ के चयन की दृढ़ इच्छा
है तो निश्चित ही ऐसा ही होगा।
सीता स्वयंवर तो सिर्फ एक नाटक था।असल में सीता ने राम और राम ने सीता को पहले ही चुन लिया था। मार्गशीर्ष/ (अगहन )मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्री राम तथा जनकपुत्री जानकी/ सीता का विवाह हुआ था, तभी से इस पंचमी को “विवाह पंचमी पर्व” के रू्प में मनाया जाता है।
*पूजा विधि-:*
इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर स्नान के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा घर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और सीता माता का षोडशोपचार पूजन करें और विवाह पंचमी की कथा-पढ़ें या सुनें। यदि संभव हो तो सुंदरकांड पाठ करें। इस दिन केले के पौधे का पूजन करना भी शुभ माना जाता है ऐसा करने से आपका वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहेगा। जिन जातकों के विवाह में अड़चन आ रही है इस दिन पूजा करने से उनके विवाह में आ रही अड़चनें भी समाप्त हो जाती हैं।
लेखक -:आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।