*शुभ मुहूर्त*—-
इस बार दिनांक 23 सितंबर 2023 दिन शनिवार को नन्दा ष्टमी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन अष्टमी तिथि 15 घड़ी 38 पल अर्थात दोपहर 12:18 बजे तक अष्टमी तिथि है तदुपरांत नवमी तिथि प्रारंभ होगी। इस दिन यदि नक्षत्र की बात करें तो मूल नक्षत्र 22 घड़ी पांच पल अर्थात दोपहर 2: 53 बजे तक है। सौभाग्य नामक योग 38 घड़ी 28 पल अर्थात रात्रि 9:26 बजे तक है। बव नामक करण 15 घड़ी 38 पर अर्थात दोपहर 12:18 बजे तक है सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण धनु राशि में विराजमान रहेंगे।

*मां नंदा सुनंदा की कथा।* —
भविष्य पुराण में जिस दुर्गा के बारे में बताया गया है उनमें महालक्ष्मी नंदा सेमकरी शिव दूती भ्रामरी चंद्र मंडला रेवती और हरसिद्धि है। मां नंदा देवी देव भूमि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित और विख्यात है। इतिहास के अनुसार अगर देखा जाए तो नंदा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश व चंद्र शासकों की भी इष्ट देवी है। इसी कारण नंदा देवी को राजराजेश्वरी कहकर भी संबोधित किया जाता है। नंदा देवी को मां पार्वती की बहन के रूप में भी जाना जाता है। और कहीं कहीं तो नंदा देवी को ही पार्वती का रूप माना गया है। यदि देव भूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में नंदा देवी की पूजा की बात करें तो अल्मोड़ा में नंदा देवी की पूजा तारा शक्ति के रूप में होती है। और चंद्र शासकों के वंशज ही इस पूजा को कराते हैं। कत्यूरी और चंद् शासनकाल में देवी को युद्ध देवी के रूप में पूजने की परंपरा अत्यधिक प्रचलित रही है। आज भी चंद शासकों के वंशज नंदा अष्टमी के मौके पर परंपरा के अनुसार पूजा करवाते हैं। यह पूजा तारा यंत्र के सामने होती है। ऐसा माना जाता है कि यह यंत्र राज परिवार के पास ही है। और राज परिवार से अपने साथ ही लेकर आता है। बुजुर्ग जानकारों के अनुसार यह भी माना गया है कि तारा की उपासना मुख्यतः तांत्रिक प्रद्धति से होती है। यह भी माना जाता है कि नंदा सुनंदा की चोटी का स्वरूप नंदा देवी की चोटी के स्वरूप से आया । नंदा देवी मंदिर की स्थापना का यदि पौराणिक इतिहास जाने तो नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हैं। और इस जगह में नंदा देवी को प्रतिष्ठित करने का श्रेय चंद शासकों का है। देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं में मां नंदा की पूजा का क्रम चंद शासकों के समय से माना जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार चंद राजा की दो बहने नंदा व सुनंदा एक बार देवी के मंदिर जा रही थी। तभी एक राक्षस ने भैंस का रूप धारण कर उनका पीछा करना प्रारंभ कर दिया। इस से डरी हुई दोनों बहने केले के पत्तों के बीच जाकर छुप गई। तभी एक बकरे ने आकर केले के पत्तों को खा लिया और भैसे ने दोनों बहनों को मार डाला। बाद में यह दोनों अतृप्त आत्माओं के रूप में दोनों बहनों ने चंद राजा को मां नंदा देवी मंदिर स्थापित कर पूजा अर्चना करने को कहा था। ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके। तभी से मां नंदा सुनंदा की पूजा अर्चना होने लगी। धीरे-धीरे संपूर्ण देवभूमि में कई स्थानों पर भव्य महोत्सव का आयोजन होने लगा।
मां नंदा सुनंदा की कृपा हम और आप सभी पर बनी रहे। मां नंदा सुनंदा को शत -शत नमन।

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लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी,, गेठिया, नैनीताल उत्तराखंड।

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