पौष मास के संकष्टी चतुर्थी को “अखुरथ संकष्टी ” के नाम से जाना जाता है। वैसे तो संकष्टि चतुर्थी व्रत महत्वपूर्ण है ही परंतु इस बार पौष संकष्टी चतुर्थी सर्वाधिक महत्वपूर्ण बनने जा रही है। जहां एक नहीं दो नहीं तीन-तीन शुभ योगों का संयोग बन रहा है। रविवार को पुष्य नक्षत्र होने से रवि पुष्य नामक शुभ योग, इसके अतिरिक्त सर्वार्थ सिद्धि योग और ब्रह्म योग बन रहे हैं। सोने पर सुहागा तो तब है जब रवि पुष्य योग और सर्वार्थसिद्धि योग एक साथ बन रहे हैं जोकि श्रद्धालु भक्तों एवं अन्य व्यक्तियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है ऐसे शुभ संयोग में सोना वाहन आदि खरीदना और कोई नया कार्य प्रारंभ करना बहुत ही शुभ माना गया है। यह तीनों योग हर कार्य में सफलता प्रदान करते हैं।
शुभ मुहूर्त—-यदि रवि पुष्य योग की बात करें तो दिनांक 11 दिसंबर 2022 दिन रविवार को प्रातः 8:06 बजे शाम से दिनांक 12 दिसंबर 2022 शाम 7:06 बजे तक यह शुभ योग रहेगा। इसके अतिरिक्त यदि सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो ठीक इसी समय तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो दिनांक 11 दिसंबर 2022 दिन रविवार को चतुर्थी तिथि 23 घड़ी सात पल अर्थात शाम 4:15 बजे से प्रारंभ होगी और दिनांक 12 दिसंबर दिन सोमवार को 29 घड़ी 32 पल अर्थात शाम 6:49 बजे तक रहेगी। 11 दिसंबर को यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन नक्षत्रों का राजा कहा जाने वाला पुष्य नक्षत्र 33 घड़ी 52 पल अर्थात शाम 8:33 बजे तक रहेगा सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव दोपहर 1:50 बजे तक मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।
पौष संकष्टि चतुर्थी व्रत कथा,,,,,
इस कथा के अनुसार एक समय रावण ने स्वर्ग के सभी देवी देवताओं को जीत लिया इसके बाद उसने एक स्थान पर वानर राज बाली को संध्या करते हुए देखा और पीछे से जाकर वानर राज को पकड़ लिया। अपनी संध्या पूजा में व्यवधान आने के कारण बाली ने अपनी संध्या उपासना के दौरान उसे अपने कांख अर्थात बगल में दबाकर रखा। वानर राज बाली 6 महीने तक लगातार संध्या पूजा करते थे। अतः उन्होंने 6 महीने तक रावण को अपने बगल में दबाए रखा था। तदुपरांत उसे अपनी किष्किंधा नगरी ले आए और अपने पुत्र अंगद को खेलने के लिए खिलौने के रूप में दे दिया अंगद रावण को खिलौना समझ कर रस्सी से बांध कर इधर-उधर घुमाते थे। इससे रावण को बहुत कष्ट और दुख होता था। एक दिन रावण ने दुखी मन से अपने पिता मह पुलस्त्य जी को याद किया। रावण की यह दशा देखकर पुलस्त्य जीने विचार किया कि रावण की यह दशा क्यों हुई? उन्होंने मन ही मन सोचा अभिमान हो जाने पर देवता मनुष्य एवं असुर सब की यही गति होती है। पुलस्त्य ऋषि ने रावण से पूछा कि तुमने मुझे क्यों याद किया? रावण बोला पितामह मैं बहुत दुखी हूं। यह नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं और अभी आप मेरी रक्षा करें। रावण की बात सुनकर पुलस्त्य जी बोले रावण तुम डरो नहीं तुम इस बंधन से जल्द ही मुक्त हो जाओगे। तुम विघ्न विनाशक श्री गणेश जी का व्रत करो। पूर्व काल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इंद्रदेव ने भी इस व्रत को किया था। इसलिए तुम भी इस व्रत को करो। तब पितामह की आज्ञा अनुसार रावण ने भक्ति पूर्वक इस व्रत को किया और बंधन रहित हो अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया। मान्यता अनुसार जो भी पौष मास की चतुर्थी पर इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है उसे सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। तो बोलिए गणपति महाराज की जय।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल (उत्तराखंड)

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