प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के एक गते को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का सृजन कर्ता और प्रथम शिल्पकार के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी के कहने पर विश्वकर्मा ने संसार का निर्माण किया था। उन्होंने ही भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका से लेकर भगवान शिव जी का त्रिशूल और हस्तिनापुर नगर बनाया था। विश्वकर्मा जयंती के दिन लोग अपने कार्यालय कारखाने दुकान मशीन औजारों की पूजा करते हैं। साथ ही साथ इस दिन वाहनों की भी पूजा की जाती है। इस आदेश में लिए जानते हैं विश्वकर्मा जयंती का महत्व पूजा विधि और शुभ मुहूर्त।
*शुभ मुहूर्त*
इस बार दिनांक 17 सितंबर 2023 दिन रविवार को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाएगी। इस दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 12 घड़ी 53 पर अर्थात प्रातः 11:09 बजे से प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नक्षत्र प्रातः 9:58 बजे तक है। यदि पूजा के शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस दिन प्रात 10:15 बजे से दोपहर 12:26 बजे तक पूजा का उत्तम मुहूर्त है।
*विश्वकर्मा जयंती का महत्व*
भगवान विश्वकर्मा को ही सृष्टि का पहला वास्तुकार शिल्पकार और इंजीनियर माना जाता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और नौकरी व्यवसाय में उन्नति के योग बनते हैं। साथ ही साथ इस दिन मशीन औजार कम्प्यूटर लेपटॉप और वाहन आदि की पूजा करने से यंत्र कभी बीच में काम के वक्त कभी धोखा नहीं देते हैं। जिससे काम आसानी से पूर्ण हो जाते हैं। व्यापार या निर्माण आदि संबंधित कार्यों में भी कोई रुकावट नहीं आती और सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इससे मशीनरी पर खर्च भी कम होता है और पूरा कार्य भी होता है।
*भगवान विश्वकर्मा ने इन वस्तुओं का किया आविष्कार।*
भगवान विश्वकर्मा ने ही भगवान शिव का त्रिशूल विष्णु भगवान का सुदर्शन रावण की लंका और पुष्पक विमान जगन्नाथ पुरी आदि का निर्माण विमान विद्या देवताओं का स्वर्ग लोक हस्तिनापुर भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका पुरी इंद्रपुरी आदि कई आविष्कार किया। भगवान विश्वकर्मा को ही पहले इंजीनियर भी माना जाता है। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तब उसके सजाने और संवारने का काम विश्वकर्मा जी ने ही किया था। इसी श्रद्धा भाव से किसी कार्य के निर्माण और सृजन से जुड़े लोग विश्वकर्मा जयंती पर पूजा अर्चना करते हैं।
*विश्वकर्मा स्तोत्र*
विश्वकर्मा ध्यानं-
न भूमिर्न जलन्चैव न तेजो न च वायव:।
नाकाशं च न चित्तंच न बुद्धीन्द्रियगोचरा: ।।
न च ब्रह्मा न विष्णुश्च न रुद्रश्च तारका:।
सर्वशून्या निरालम्बा स्वयम्भूता विराटसत्
सदापरात्मा विश्वात्मा विश्वकर्मा सदाशिव: ।।
श्रितमध्यतमध्यस्तं ब्रहमादिसुरसेवितम्।
लोकाध्यक्षं भजेअ्हं त्वां विश्वकर्माणमव्यम् ।।
प्राकादिदिडृखोत्पत्रो सनकश्च सनातन:।
अभुवनस्य प्रत्नस्य सुपर्णस्य नमाम्यहम्।।
अखिलभुवनबीजकारणम्।
प्रणवतत्वं प्रणवमयं नमामि।।
पंचवक्त्रं जटाधरं पंचदशविलोचनम्।
सद्योजाताननं श्वेतं च वामदेवन्तु कृष्णकम्।।
अघोरं रक्तवर्णं च तत्पुरुषं हरितप्रभम्।
ईशानं पीतवर्णं च शरीरं हेमवर्णकम्।।
रुद्राक्षमालासंयुक्तं व्याघ्रचर्मोत्तरीयकम्।
वीणां डमरुकं बाणं शड्खचक्रधरं तथा।
कोटिसूर्यप्रतीकाशं सर्वजीवदयापरम्।।
विश्वेशं विश्वकर्माणं विश्वनिर्माणकारिणम्।
ऋषिभि:सनकाद्यैश्च संयुक्तं प्रणामाम्यहम्।।
।।इति विश्वकर्मस्तोत्रं।।
लेखक-: प्रकाश जोशी,गेठिया नैनीताल ।