*बहुत महत्वपूर्ण है वरुथिनी एकादशी व्रत-:*
वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी नाम से जाना जाता है। इस बार वरुथिनी एकादशी व्रत दिनांक 24 अप्रैल 2025 दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 22 घड़ी 12 पल अर्थात दोपहर 2:32 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो इस दिन शतभिषा नामक नक्षत्र 12 घड़ी 55 पल अर्थात प्रातः 10:49 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कुंभ राशि में विराजमान रहेंगे।
*वरुथिनी एकादशी व्रत कथा-:*
पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण से इस कथा के संबंध में पूछते हैं-
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख
मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप
विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको
नमस्कार करता हूँ । श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे
राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनी है।
यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है।इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करे तो उसको सौभाग्य मिलता है। इसी वरुथिनी
एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को
गया था। वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान घोड़े के
दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि
के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण
का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ
है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है।
अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त
हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के
बराबर माना हैं।अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है।
अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त
हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के
बराबर माना है।
वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा
कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश होकर कन्या का धन लेते हैं।वे प्रलय काल तक नरक में वास करते हैं या
उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना
पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या
का दान करते हैं, उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी
लिखने में असमर्थ हैं, उनको कन्यादान का फल मिलता है।
*वरुथिनी एकादशी पूजा विधि-:*
वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान करें यदि ऐसा संभव न हो तो घर में ही स्नान के जाल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें तदुपरांत तुलसी वृंदावन के समीप या घर के मंदिर में भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करें।
हरि:ओम विष्णु विष्णु विष्णु आदि अमुक-अमुक गोत्रस्य अपने गोत्र का उच्चारण करें। आमुख नाम्ने अपने नाम का उच्चारण करें वैशाख मासे कृष्णपक्षे वरुथिनी एकादशी व्रतं करिक्षे सहित संकल्प लें।
भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को स्नान कराएं तदुपरांत पंचामृत से स्नान कराके पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। रोली कुमकुम चढ़ायें अक्षत के स्थान पर जौं का प्रयोग करें। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का शुद्ध सुविचार पूजन करें आरती के उपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।
आलेख के लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी