*विजय प्राप्त करने के लिए करें विजया एकादशी व्रत, श्री राम ने भी किया था यह व्रत -:*
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया था। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करने और विजय प्राप्त करने के लिए यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार दिनांक 24 फरवरी 2025 दिन सोमवार को विजया एकादशी व्रत मनाया जाएगा। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 17 घड़ी 28 पल अर्थात दोपहर 1:45 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो पूर्वाषाढा नामक नक्षत्र 30 घड़ी 32 पल अर्थात शाम 6:59 बजे तक है। और यदि योग की बात करें तो सिद्धि नामक योग आठ घड़ी 17 पल अर्थात प्रातः 10:05 बजे तक है। और बालव नामक करण 17 घड़ी 28 पल अर्थात दोपहर 1:45 बजे तक है। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव मध्य रात्रि 12:56 बजे तक धनु राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्र देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
*पूजा विधि-:*
एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर। समीप के किसी नदी या जल स्रोत के पास स्नान करें यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तदुपरांत घर के मंदिर में अथवा तुलसी वृंदावन के समीप एक चौकी में पीला वस्त्र बिछाएं उस पर श्री हरि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। उनका षोडशोपचार पूजन करें। सर्वप्रथम उन्हें स्नान कराएं, पंचामृतस्नान स्नान के बाद पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। रोली कुमकुम चढ़ायें अक्षत के स्थान पर जौं का प्रयोग करें। ध्यान रहे इस दिन घर पर चावल का प्रयोग वर्जित है। श्री हरि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को फल और नैवेद्य अर्पित करें द्रव्य अर्पित करें। आरती के उपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।
*विजया एकादशी व्रत कथा-:*
धर्मराज युधिष्ठिर बोले – हे जनार्दन! फाल्गुन
मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है।तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन ! फाल्गुन मास के
कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया
एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को
विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत
है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं।एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से श्री
रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और
सीताजी की खोज में चल दिए।घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास
पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया।हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री
रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने
मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को
देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम! आप
आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा
योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं । उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप
उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।
लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री
रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और
उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रू्प धारण किए हुए
पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे तऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूं। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।
वकदालभ्य ऋषि बोले के हे राम! फाल्गुन मास
के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्रय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण,
चाँदी, तॉबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाएँ। उस
घड़े को जल से भरकर तथा पाँच फल वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनाजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण
भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें।
एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा
करें।तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण
करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने
ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और
इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।अतः हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस
व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य
विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था
कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्य को
पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
आलेख -: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी।