*बहुत महत्वपूर्ण है जेठ माह की अपरा एकादशी व्रत -:*
जेठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी व्रत नाम से जाना जाता है इस बार यह व्रत दिनांक 23 मई 2025 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 42 घड़ी 57 पल अर्थात रात्रि 10:30 तक एकादशी तिथि रहेगी। इस दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 26 घड़ी 47 पल अर्थात शाम 4:02 बजे तक है। यदि योग की बात करें तो प्रीति नामक योग 32 घड़ी 12 पल अर्थात शाम 6:36 बजे तक है। बव नामक करण 16 घड़ी 30 पल अर्थात प्रातः 11:55 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मीन राशि में विराजमान रहेंगे।
*पूजा विधि-:*
अपरा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहुर्त में
उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र
धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा और
माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा को पीले आसन
पर विराजमान करें । तदोपरांत रोली कुमकुम
का तिलक लगाएं धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर
भगवान विष्णु की पूजा करें। जलाभिषेक
करने के लिए शंख का प्रयोग करें। पाठकों को
बताना चाहुंगा कि शंख माता लक्ष्मी को
अत्यधिक प्रिय है। इसलिए शंख से
जलाभिषेक किया दुग्ध अभिषेक करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। व्रत पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथासंभव दान दें। इससे आर्थिक उन्नति और मानसिक लाभ प्राप्त होता है। पाठकों को एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि एकादशी व्रत के दिन नाखून बाल आदि ना काटें और स्नान में साबुन का प्रयोग भी ना करें। इस दिन परिवार में कोई भी सदस्य
चावल ग्रहण न करें।
*अपरा एकादशी व्रत कथा-:*
अचला एकादशी की प्रचलित कथा के
अनुसार प्राचीन समय में माही ध्वज नामक-
एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्र
ध्वज बड़ा ही क्रूर अधर्मी तथा अन्यायी था।
उस पापी ने 1 दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की
हत्या करके उसकी देह को एक जंगल में
पीपल के पेड़ के नीचे गाढ दिया। इस अकाल
मृत्यु से राजा प्रेत आत्मा के रूप में उसी पीपल वृक्ष पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके अतीत को जान
लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण
भी समझा। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को
पीपल के पेड़ से नीचे उतारा तथा परलोक
विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा
एकादशी का व्रत किया और उसे प्रेत योनि से
छुड़ाने के लिए व्रत का पुण्य प्रेत को अर्पित
कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत
योनि से मुक्ते हो गई। वह ऋषि को धन्यवाद
देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान
में बैठकर स्वर्ग को चला गया। अतः अपरा
एकादशी की कथा पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
लेखक-आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।