*कुमाऊं में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गोवर्धन पड़ेवा। गोवर्धन पडेवा भी त्रिपुष्कर योग में मनाया जाएगा* ।


देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में गोवर्धन पूजा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। गायों को लगाए जाते हैं कमेट के टप्पे।क्या है गोवर्धन का सही अर्थ
जानिए इस आलेख में ।
देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊँ संभाग में गोवर्धन पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है।कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। गोवर्धन का अर्थ है (गो+ वर्धन) गो अर्थात गाय वर्धन अर्थात बढ़ाना। शाब्दिक अर्थ हुआ गायों
की संख्या को बढ़ाना।
परन्तु अब धरती से लगभग गायों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। यदि गाय नहीं होंगी तो गोवर्धन पूजा कहां से
करेंगे? प्राचीन समय में किसी की संपदा को गायों से नापा जाता था। अर्थात जिस व्यक्ति
के पास जितनी अधिक गाय होंगी वह उतना ही
संपन्न कहा जाएगा।
कहते हैं कि नंद बाबा और यशोदा के यहां 100000(एक लाख)
गायैं थी। खैर जो भी हो हमारी देवभूमि उत्तराखंड में गोवर्धन पूजा अभी भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है परंतु जिस उत्साह से पहले मनाई जाती थी वह उत्साह अब नहीं रहा। पहले लोग
गोवर्धन पूजा के दिन
गायों को टीका लगाते थे उसके बाद गाय के लिए फूलों की माला बनाई जाती थी जिसे गाय के गले में बांधा जाता था।यह त्यौहार (गाय त्यार) के नाम से भी जाना जाता है।इसके उपरांत(
कमेट)अर्थात एक प्रकार से सफेद रंग की मिट्टी का घोल यदि यह संभव ना हो तो भीगे चावलों को सिलबट्टे मेंबारीक
पीसकर पानी डालकर गाढ़ा दूध जैसा बना कर एक गहरे बर्तन जैसे थाली या परात में रखा जाता था जिसे स्थानीय भाषा में कसार का पानी कहते हैं। इसके बाद “मा णा”अर्थात खाना बनाने
के चावल नापने के गिलास जिसमें लगभग पाव भर चावल आते हैं उसमें एक (+) धन के आकार में एक मोटा धागा बांधा जाता है उसके बाद उसे कसार के पानी में इबोकर गाय में ठप्पे लगाते हैं जिस प्रक्रिया को ठाप
लगाना या कही कही ढाप लगाना कहते हैं। यदि गाय काली या भूरे रंग की हो तो यह ठाप
सूखने पर बहुत सुंदर दिखते हैं। गाय के शरीर पर यह ठाप 4 या 5 दिन
तक रहते हैं। इस प्रक्रिया के लिए भी पंडितों द्वारा शुभ मुहूर्त एवं भद्रा आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है।इस दिन गोवर्धन पूजा की कथा श्रवण करना नितांत आवश्यक हैं बिना कथा श्रवण किए
यह पूजा अधूरी मानी जाती हैं।
प्रिय पाठकों की सुविधा हेतु मैं यह कथा आलेख के माध्यम से जानकारी देना चाहूंगा।यदि पंडितों द्वारा संभव न हो तो
स्वयं कथा पढ़ सकते हैं।
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गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा-
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गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग मैं एक बार देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के
लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक अद्भुत लीला रची। श्री कृष्ण ने देखा कि
एक दिन सभी ब्रजवासी उत्तम भोजन पकवान बना रहे थे। और किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे। इसे देखते हुए कृष्ण जी ने माता यशोदा से पूछा कि यह किस बात
की तैयारी हो रही है? कृष्ण की बात सुनकर यशोदा माता ने बताया कि इंद्रदेव की सभी
ग्रामवासी पूजा करते हैं।
जिससे गांव में ठीक से वर्षा हो रही है और कभी भी फसल खराब ना हों। उस समय लोग इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट चढ़ाते थे।
यशोदा मैया ने कृष्ण
जी को यह भी कहा कि इंद्र देव की कृपा से ही अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा भी मिलता है।इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि
फिर इंद्रदेव की जगह
गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा यहीं से मिलता है। इंद्र देव तो
कभी प्रसन्न नहीं होते
और ना ही दर्शन देते हैं। इस बात पर ब्रज के लोग इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर
इंद्रदेव क्रोधित हुए और उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरूकर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की उससे ब्रज वासियों को फसल के साथ काफी नुकसान हो
गया। ब्रज वासियों को
परेशानी में देखकर श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रज वासियों
को अपनी गाऐं और बछडों समेत पर्वत के नीचे शरण लेने को कहा। कृष्ण की यह लीला
देखकर इंन्द्र और क्रोधित
हो गए। और उन्होंने वर्षा की गति और ज्यादा तीव्र कर दी तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर विराजमान होकर वर्षा की गति को नियंत्रित
करें और शेषनाग से कहा आप मेढ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकैं।इंद्र लगातार सात दिनों तक वर्षा करते रहे तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं।और उन्हें कृष्ण जी की पूजा करने की सलाह दी। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट का 56 तरह
का भोग लगाया। तभी
से गोवर्धन पर्वत पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में छप्पन भोग चढ़ाया जाने लगा। तो बोलिए भगवान श्री कृष्ण की जय। गोवर्धन महाराज की जय।
आप सभी को गोवर्धन पूजा पर्व की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएँ।
नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण की कृपा आप और हम सभी पर सदैव बनी रहे इसी मंगल कामना के
साथ आपका दिन मंगलमय हो।
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शुभ मुहूर्त-:
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इस बार गोवर्धन पूजा दिनांक 2 नवंबर 2024 दिन शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन यदि प्रतिपदा तिथि की बात करें तो 34 घड़ी 42 पल अर्थात सायं 8:22 तक प्रतिपदा तिथि रहेगी तदुपरांत द्वितीया तिथि प्रारम्भ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो विशाखा नामक नक्षत्र 58 घड़ी 42 पल अर्थात अगले दिन प्रात 5:59 बजे तक है। आयुष्मान नामक योग 12 घड़ी एक पल अर्थात प्रातः 11:18 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव मध्य रात्रि 11:24:00 तक तुला राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्र देव वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे।
गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त -:
गोधूलि मुहुर्त – शाम O6 बजकर 05 मिनट से लेकर 06 बजकर 30
मिनट तक। त्रिपुष्कर योग- रात्रि ৪ बजकर 22 मिनट से 3 नवंबर को
सुबह 05 बजकर 59 मिनट तक।
विजय मुहुर्त –
दोपहर 02 बजकर০9 मिनट से लेकर O2 बजकर 56 मिनट तक।
*लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*

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