*बहुत महत्वपूर्ण है विकट संकष्टी चतुर्थी*
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के विकट नाम से जाना जाता है।यह चतुर्थी सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है।
इसी संकष्टी चतुर्थी व्रत से चतुर्थी व्रत की शुरुआत
करनी चाहिए। इसकी कथा बहुत रोचक है।
*शुभ मुहूर्त*
इस बार विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत दिनांक 27 अप्रैल 2024 दिन शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो 6 घड़ी 45 पाल अर्थात प्रातः 8:18 बजे से चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो जेष्ठ नमक नक्षत्र 57 घड़ी नौ पल अर्थात अगले दिन प्रात 4:28 बजे तक रहेगा। इस दिन परिधि नामक योग 54 घड़ी 28 पल अर्थात अगले दिन प्रात 3:24 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण इस दिन भद्रा प्रातः 8:18 बजे तक है।
*व्रत कथाः-*
एक समय की बात है, विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मी के साथ निश्वित हो गया। विवाह की सारी तैयारियां होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया। खैर, कारण जो भी
रहा हो, अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी बाराती तैयार हो गए। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन
सब ने देखा कि सभी देवता तो आए हैं परंतु गणेश जी का कहाँ अता पता नहीं है। सभी आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेश जी को न्योता नहीं है? या स्वयं गणेश जी ही नहीं आए? जगह -जगह चर्चाएं होनी शुरू हो गई। सभी को इस बात पर आश्वर्य होने लगा
कि गणेश जी क्यों नहीं आए? तभी सब ने विचार किया कि भगवान विष्णु से ही इसका कारण पूछ लिया जाए। विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिताजी
भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेश जी अपने पिता के साथ आना चाहते हैं तो आ जाते,अलग से न्योता देने की क्या आवश्यकता है? फिर
दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी, सवा मन लडु का भोजन दिन भर में चाहिए होता है। यदि गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। फिर हम लोग बारात में जा रहे हैं दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना अच्छा भी नहीं लगता।
बारातियों की बेईज्जती हो जाएगी, लोग कई तरह की बातें करेंगे। इतने में ही किसी ने सुझाव दिया कि यदि गणेश जी यहां आ जायें तो उन्हें यहां घर पर रखवाली के लिए रख देते हैं घराती भी महत्वपूर्ण व्यक्ति चाहिए। उनसे कह देंगे आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। फिर कहीं रास्ता जो भटके रहोगे घर पर आराम से बैठे रहना।
यह सझाव भी सबको पसंद अआा गया। विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। इतने में गणेश जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली
करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हैं। वह गणेश जी के पास गए और बारात में न जाने का कारण पूछा।
गणेश जी कहने लगे, विष्ण भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें तो वह रास्ता खोद देगी,जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे। तब आपको
सम्मान पूर्वक बुलाना पड़ेगा। गणेश जी की खुशी का ठिकाना ना रहा। उन्होंने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और उसने जमीन अंदर से खोखली कर दी। जब बारात वहां से
निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख
कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए परंत पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए? तब नारद जी ने
कहा, आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके
अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मना कर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट ट्ल सकता है।
शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे
गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर सम्मान के साथ पूजन किया गया। तब कहीं रथ के पहिए निकले। रथ के पहिए निकल तो गए, परंतु वे
टूट फूट गए उन्हें सुधारे कौन? पास के खेत में खाती काम कर रहा था उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने से पहले ओम श्री गणेशाय नमः कहकर गणेश
जी की वंदना करने लगा। देखते ही देखते खाती ने
सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती भी कहने लगा कि आपने सर्वप्रथम गणेश जी को नहीं मनाया होगा तभी ऐसा हुआ। अब आप लोग भगवान गणेश
जी की जय बोल कर जाएं तो कोई संकट नहीं
आएगा। बारात वहां से प्रस्थान हुई और विष्णु
भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराकर
सभी सकुशल लौट आए।
*पौराणिक कथा-*
इस कथा के अनुसार धर्म केतु नामक ब्राह्मण की कथा आती है। पार्वती जी ने पूछा-वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की जो संकटा चतुर्थी है, उस दिन किस गणेश का किस विधि से पूजन करना चाहिए? और भोजन में क्या ग्रहण करना चाहिए? गणेश जी ने उत्तर दिया हे माता!
वैशाख कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रत करना चाहिए। उस दिन वक्रतुंड नामक गणेश जी की पूजा कर भोजन में कमल गट्टे का हलवा लेना चाहिए। इसकी कथा के अनुसार द्वापर युग में राजा
युधिष्ठिर ने इस व्रत के बारे में भगवान श्री कृष्ण से पूछा था और उत्तर में भगवान श्री कृष्ण ने जो कहा था मैं उसी का वर्णन करता हूं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-हे राजन! प्राचीन काल में रंतिदेव नामक प्रतापी राजा हुए। उनकी मित्रता यम, कुबेर, इंद्र आदि देवों से थी। उन्हीं के राज्य में धर्म केतु नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे। उनकी दो स्त्रियां थी। एक का नाम सुशीला और दूसरी का नाम चंचला था। सुशीला नित्य
कोई न कोई व्रत किया करती थी। फलतः उसने अपने शरीर को दुर्बल बना डाला था। चंचला कभी भी कोई व्रत उपवास न करके भरपेट भोजन करती थी।
सुशीला को सुन्दर लक्षणों वाली कन्या प्राप्त हुई और चंचला को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई।अब चंचला बार-बार सुशीला को ताना देने लगी। अरी
सुशीला, तुने इतना व्रत उपवास करके शरीर को जर्जर बना डाला फिर भी एक कृषकाय कन्या को जन्म दिया। मुझे देख, मैं कभी व्रत नहीं रखती हुृष्ट पुष्ट बनी हुई हूँ और बालक को जन्म दिया है। अपनी सौत का व्यंग बाण सुशीला के हृदय में चुभने लगा। वह
विधिवत गणेश जी की उपासना करने लगी। जब
सुशीला ने भक्ति भाव से गणेश चतरथीं का व्रत किया तो रात्रि में गणेश जी ने उसे दर्शन दिया। गणेश जी ने कहा-हे सुशीला, तेरी आराधना से हम अत्यधिक संतुष्ट
हैं। मैं तुम्हें वरदान दे रहा हू कि तेरी कन्या के मुख से निरंतर मोती और मुंगे प्रवाहित होते रहेंगे। इससे तुझे सदा प्रसन्नता रहेगी। तुझे वेद शास्त्र वेता पुत्र भी उत्पन्न होगा। वरदान के फलस्वरूप उस कन्या के मुंह से सदैव मोती और मूंगे झड़ने लगे। कुछ दिन बाद सुशीला को एक पुत्र हुआ। इस बीच धर्म केतु का स्वर्गवास हो गया। उसकी मृत्यु के बाद चंचला घर का सारा धन लेकर दूसरे घर में रहने लगी, परंतु सुशीला
पति गृह में रहकर ही पुत्र और पुत्री का पालन पोषण करने लगी। उस कन्या के मुंह से मोती मूंगे गिरने के फलस्वरूप सुशीला के पास अल्प समय में ही बहुत सा धन एकत्रित हो गया। इस कारण चंचला उससे
ईष्र्या करने लगी।एक दिन हत्या करने के उद्दश्य से चंचला ने सुशीला की
कन्या को कुएं में धकेल दिया। गणेश जी ने उसकी रक्षा की और बालिका सकुशल लौट आयी। बालिका को जीवित देखकर चंचला का मन उद्वन्न हो उठा।
सुशीला पुत्री को पुनः प्राप्त कर प्रसन्न हो गई। पुत्री को छाती से लगाकर उसने कहा श्री गणेश जी ने तुझे पुनः जीवन दिया है। चंचला उसके पैरों में नतमस्तक हुई। उसे देखकर सुशीला के आश्वर्य का ठिकाना न
रहा। चंचला हाथ जोड़कर कहने लगी-बहिन सुशीला
मैं बहुत ही पापिन और दुष्टा हूं। आप मेरेअपराधों को क्षमा कीजिए। आप दयावती हैं। आपने दोनों का उद्धार कर दिया। जिसका रक्षक देवता होता है उसका मानव क्या बिगाड़ सकता है? इसके बाद चंचला ने भी
संकटनाशक गणेश जी के व्रत को किया। गणेश जी
के अनुग्रह से दोनों में प्रेम भाव हो गया। गणेशजी
कहते हैं कि हे देवी! पूर्वकाल का वृतांत आपको सुना दिया। इस लोक में इससे श्रेष्ठ विघ्न विनाशक कोई दूसरा व्रत नहीं है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- हे धर्मराज युधिष्ठिर! आप भी विधिपूर्वक गणेश जी का
यह व्रत कीजिए इसके करने से आपके शत्रुओं का नाश होगा तथा अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां आपके सामने करबद्ध होकर खड़ी होंगी।
तो बोलिए गणेश जी महाराज की जै।
*लेखक–: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*