सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार दिनांक 16 अगस्त 2024 दिन शुक्रवार को पुत्रदा एकादशी व्रत मनाया जाएगा।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार पुत्रदा एकादशी व्रत दिनांक 16 अगस्त 2024 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो नौ घड़ी 50 पल अर्थात प्रातः 9:40 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी तदुप्रांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन मूल नक्षत्र 17 घड़ी 30 पल अर्थात दोपहर 12:44 बजे तक है। विष्टि नामक करण 9 घड़ी 50 पल अर्थात प्रातः 9:40 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण धनु राशि में विराजमान रहेंगे।
*सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा*
इस कथा के अनुसार एक बार पांडू पुत्र धर्मराज
युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहने लगे कि हे भगवान!श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है?व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्त्य
कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे
कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए।इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का
फल मिलता है।द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का
राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने
के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दुःखदायक होते हैं। पुत्र
सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनो! मेरे खजाने में अन्याय से
उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली,प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं
अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की
सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दुःख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है? राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को
गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन
किए। राजा की उत्तम कामना की पूति के
लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते- फिरते रहे। एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी,परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार,
जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन
धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त
शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन
लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है,
इसमें संदेह मत करो।लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षि! आप हमारी बात
जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं।अतः आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा
महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दुःखी है।
उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग प्रजा हैं। अतः उसके दुःख से हम भी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि
हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा
करके राजा के पुत्र होने का उपाय बताएं।
राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा
उपाय बताइए।
लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल
पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे
राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट
हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत
और जागरण किया।
इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और
प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा
तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ ।इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अतः संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्त्य को सुनने
से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
*लेखक- आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*