*सर्वार्थ सिद्धि योग सहित 6 महत्वपूर्ण योगों में23 मई को मनाई जाएगी इस बार वैशाख पूर्णिमा या कुर्म जयंती जानिए कथा एवं शुभ मुहूर्त।*


प्रत्येक वर्ष वैशाख पूर्णिमा के दिन कुर्म जयंती मनाई जाती है इस बार दिनांक 23 मई 2024 को कुर्म जयंती मनाई जाएगी।
*वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा,*
द्वापर युग में एक बार यशोदा मां ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि वह
सारे संसार के उत्पादन कृता पालन हारी हैं। वह उन्हें ऐसा व्रत बताएं
जिसको करने से मृत्युलोक में भी
स्त्रियों को विधवा होने का भय ना बना रहे। तथा वह व्रत सभी मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हो। तब श्री कृष्ण जी उन्हें ऐसे एक व्रत को विस्तार से बताते हैं कि
सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पुर्णिमा का व्रत करना
चाहिए। यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति
मनुष्य मात्र की भक्ति को बढ़ाने वाला व्रत है। यशोदा जी कहने लगे
कि इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था? श्री कृष्ण ने कहा कि इस भूमंडल पर अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण कार्तिका नाम की
एक नगरी थी वहां चंदट्रहास नामक राजा राज्य करता था। उसी नगर में ध्नेश्वर नाम का एक ब्राह्मण थाऔर उसकी स्त्री बहुत सुंदर थी।जिसका नाम रूपवती था। दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम से रहते थे।
उनके घर में धन-धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी परंतु उनको
बहुत बड़ा दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी।
एक समय एक बड़ा योगी उस नगरी में आया। वह योगी उस ब्राह्मण के
घर को छोड़कर अन्य सभी घरों से भिक्षा लेकर भोजन किया करता
था। वह रूपवती से कभी भिक्षा नहीं लेता था। एक दिन वह योगी रूपवती से भिक्षा न लेकर किसी
अन्य घर से भिक्षा लेकर गंगा किनारे जाकर प्रेम पूर्वक खा रहा
था। तब ही धनेश्वर ने योगी को ऐसा
करते हुए देख लिया था। अपनी भिक्षा का अनादर होते देखकर दुखी होकर धनेश्वर ने योगी से
उसका कारण पूछा। कि आप सभी घरों से भिक्षा लेते हैं लेकिन उसके
घर से भिक्षा कभी नहीं लेते हैं।इसका क्या कारण है? योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीखपतितों के अन्न के समान होती है।
और जो पतितों का अन्न खाता है। वह भी पतितों के समान हो जाता
है। इसलिए पतीत होने के भय से वह उसके घर से भिक्षा नहीं लेता।
धनेश्वर यह बात सुनकर बहुत दुखी हुआ और हाथ जोड़कर योगी के
पैरों में गिर गया और कहने लगा कि यदि ऐसा है तो वह उसे पुत्र प्राप्ति
उपाय बताएँ। वह सब कुछ जानने वाले हैं वह उस पर अवश्य कृपा करें। धन की उसके घर में
कोई कमी नहीं है परंतु संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी है वह
उसके दुख का हरण करें।
यह सुनकर योगी कहने लगे कि उन्हें चंडी की आराधना करनी चाहिए। घर आकर उसने अपनी
स्त्री से पुरी बात कह कर स्वयं वन में चला गया। वहां उसने चंडी की
उपासना करनी प्रारंभ कर दी और
उपवास भी किया। चंडी ने 16वं
दिन उसको स्वप्न में दर्शन दिया और
कहा कि उसके यहां पुत्र होगा।परंतु 16 वर्ष की आयु में ही उसकी
मृत्यु हो जाएगी। यदि वह दोनों स्त्री
पुरुष 32 पूर्णिमा का व्रत विधि
पूर्वक करेंगे तो वह दीर्घायु हो
जाएगा। जितनी उसकी सामर्थ है।
आटे के दिए बनाकर भगवान शिव
का पूजन करना ,परंतु 32 पूर्णिमा
व्रत होने चाहिए। प्रातः काल होते
समय इस स्थान के समीप एक
आम का वृक्ष दिखाई देगा उस वृक्ष
पर चढ़कर फल तोड़कर शीघ्र उसे
अपने घर ले जाना और अपनी स्त्री
को सारा वृतात बताना। ऋतु स्नान
करने के बाद वह स्वच्छ होकर श्री
शंकर भगवान का ध्यान करके उस
फल को खा ले। तब शंकर भगवान
की कृपा से वह गर्भवती हो
जाएगी। जब वह ब्राह्मण प्रातः
काल उठा तो उसने उस स्थान पर
आम का वृक्ष देखा जिस पर बहुत
सुंदर आम के फल लगे हुए थे। उस
ब्राह्मण ने आम के वृक्ष पर चढ़कर
फल को तोड़ने का प्रयास किया
परेंतु वृक्ष पर कई बार कोशिश
करने पर भी वह चढ़ नहीं पाया।तब उस ब्राह्मण को बहुत चिन्ता हुई
और वह विघ्न विनाशक श्री गणेश
जी भगवान जी की वंदना करने
लगा कि वह उन्हें इतनी शक्ति दे कि
वह अपने मनोरथ को पू्ण कर
सके। इस प्रकार गणेश जी की
प्रार्थना करने पर उनकी कृपा से
धनेश्वर वृक्ष पर चढ़ गया और उसने
सुदर आम का फल को तोड़ लिया।
उस धनेश्वर ब्राह्मण ने जल्दी घर
जाकर अपनी स्त्री की वह फल दे
दिया और उसकी स्त्री ने अपने पति
के कहे अनुसार उस फल को खा
लिया और वह गर्भवती हो गई। देवी
जी की अस्सीम कृपा से एक अत्यंत
सुदर पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम
उन्होंने देवीदास रखा। बालक शुक्ल
पक्ष के चंद्रमा की भांति अपने पिता
के घर में बड़ा होने लगा। भगवान
की कृपा से वह बालक बहुत हीसुंदर सुशील विद्या पढ़ने में बहुत ही
निपुण हो गया। दुर्गा जी की आज्ञा
अनुसार धनेश्वर की पत्नी ने 32
पूर्णमासी व्रत रखने प्रारंभ कर
दिए। जिससे उसका पुत्र बड़ी ही
आयु वाला हो जाए। 16वां वर्ष
लगते ही देवीदास के माता-पिता
को बहुत चिंता हो गई कि कहीं
उनके पुत्र कि इस वर्ष मृत्यु ना हो
जाए। उन्होंने अपने मन में विचार
किया कि यदि यह दुर्घटना उनके
सामने हो गई तो वह कैसे सहन
करेंगे इसलिए उन्होंने देवीदास के
मामा को बुलाया और कहा कि
उनकी एक बहुत बड़ी इच्छा है।
देवीदास 1 वर्ष तक काशी में
जाकर विद्या का अध्ययन करें और
उसको अकेला भी नहीं छोड़ना
चाहिए। इसलिए वह साथ चले जाएं
और 1 वर्ष के बाद उसे वापस ले
आना। तब सारा प्रबंध कर के
माता-पिता ने देवीदास को घोड़े में
बैठा कर उसके मामा के साथ ही
भेज दिया परंतु यह बात उन्होंनेबताई। धनेश्वर ने अपनी पत्नी के
साथ माता भगवती के सामने मंगल
कामना तथा दीर्घायु के लिए
भगवती की आराधना और
पूर्णमासियों का व्रत प्रारंभ कर
दिया। इस प्रकार बराबर 32
पूर्णमासी के व्रत को उन्होंने पूरा
किया। कुछ समय के बाद एक दिन
वह दोनों मामा और भांजा रात
बिताने के लिए एक गांव में ठहरे थे।
वहां पर एक ब्राह्मण के सुंदर
लड़की का विवाह होने वाला था।
जहां बरात रुकी हुई थी। उसके
बाद लड़की देवीदास के साथ
विवाह करने के लिए कहती है।
लेकिन देवीदास अपनी आयु के
बारे में बताता है और कहता है।
उसकी आयु बहुत कम है। परंतु
लड़की कहती है कि जो गति
आपकी होगी वही उसकी भी होगी।
इसके बाद देवीदास और उसकी
पत्नी दोनों ने भोजन किया। सुबह
देवीदास ने अपनी पत्नी को 3 नगों
से जड़ी हुई एक अंगूठी और रुमाल
दिया बोला उसका मरण औरजीवन देखने के लिए एक पुष्प
वाटिका बना ले और यह भी कहा
कि जिस समय और जिस दिन
उसका प्राणो का अंत होगा यह
फूल सूख जाएंगे और जब यह फिर
से हरे हो जाएंगे तो जान लेना कि
वह जीवित हैं। भगवान श्री कृष्ण
कहते हैं कि इस प्रकार देवीदास
काशी विद्या अध्ययन के लिए चला
गया। कुछ समय बीत गया तो काल
से प्रेरित होकर एक नाग रात के
समय उसे डसने के लिए आया।
उस विषधर के प्रभाव से उसका
शयनकक्ष चारों ओर से विषैला हो
| परंतु व्रत के प्रभाव से वह उसे
डस न सका क्योंकि पहले ही
उसकी माता ने 32 पूर्ण वासियों का
व्रत कर रखा था। इसके बाद स्वयं
काल वहां पर आया और उसके
शरीर से प्राणों को निकालने की
कोशिश करने लगा। जिससे वह
बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर गया।
भगवान की कृपा से उसी समय
माता पार्वती के साथ भगवान शंकर
जी वहां पर आ गए। उसको बेहोशदशा में देखकर पार्वती जी ने
भगवान से प्रार्थना की और कहा
कि इस बालक की माता ने पहले ही
32 पूर्णमासी के व्रत पूर्ण किये है।
और वह उसे प्राण दान दे इस
प्रकार शिवजी उसको प्राण देते हैं।
इस व्रत के प्रभाव से काल को भी
पीछे हटना पड़ा। और देवीदास
स्वस्थ होकर बैठ गया। उधर उसकी
स्त्री उसके काल की प्रतीक्षा किया
करती थी। जब उसने देखा कि उस
पुष्प वाटिका में पुष्प सूख भी नहीं
रहे तो उसको बहुत हैरानी हुई।
लेकिन जब वाटिका हरी- भरी हो
गई तो वह जान गई थी कि उसके
पति को कुछ नहीं हुआ है। यह
देखकर वह बहुत प्रसन्नता से अपने
पिता से कहने लगी कि उसके पति
जीवित हैं और वे उन्हें खोजें।
जब 16वां साल बीत जाने पर
देवीदास अपने मामा के साथ काशी
से वापस चला गया। उधर उसके
ससुर घर में उसको खोजने के लिए
जाने वाले ही थे कि वह दोनों मामा
भांजा वहां आ गए। उनको आयाहुआ देखकर उसके ससुर को बहुत
प्रसन्नता हुई और प्रसनन्ता से वह
उनको घर ले गए। उस समय नगर
के वासी भी वहां इकट्ठा हो गए।
और कन्या ने भी लड़के को पहचान
लिया। कुछ समय के पश्चात
देवीदास अपनी पत्नी और मामा के
साथ अपने नगर में चले गए। वह
अपने गांव के निकट पहुंच गए तो
कई लोगों ने उनको देखकर उनके
माता-पिता को पहले ही खबर दे दी
कि उनका पुत्र देवीदास अपनी
पत्नी और मामा के साथ आ रहा है।
ऐसा सुनकर उसके माता-पिता
बहुत ही प्रसन्न हुए थे। पुत्र और
पुत्रवधू के अआने की खुशी में धनेश्वर
ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया। तब
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की
धनेश्वर 32 पूर्णमासी व्रत के प्रभाव
से पुत्र वान हुआ। जो व्यक्ति इस
व्रत को करते हैं जन्म जन्मांतर के
पार्पों से छुटकारा प्राप्त कर लेते हैं।
वैशाख पूर्णिमा का महत्व-
वैशाख पूर्णिमा का शास्त्रों मं विशेष
महत्व बताया गया है। इस दिनकिसी पवित्र नदी में स्नान करने से
अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
साथ ही इस दिन पीपल के पेड़ की
पूजा करने का विशेष विधान है।
क्योंकि महात्मा बुद्ध को ज्ञान बोधि
वृक्ष के नीचे हुआ था और बोधि
वृक्ष पीपल का पेड़ है इसलिए
पीपल वृक्ष की पूजा करना भी
बहुत ही शुभभ फलदाई है।
*शुभ मुहूर्त*
दिनांक 23 मई 2024 दिन गुरुवार को यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो इस दिन 35 घड़ी 11 पल अर्थात शाम 7:23 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। अतः व्रत वाली पूर्णिमा भी इसी दिन मनाई जाएगी।यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन विशाखा नामक नक्षत्र नो घड़ी 50 पल अर्थात प्रातः 9:15 बजे तक है। इस दिन विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा चार घड़ी 37 पल अर्थात प्रातः 7:10 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे।
*सर्वार्थ सिद्धि योग सहित 6 महत्वपूर्ण योग*
वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा पर शिव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा. वहीं इस दिन शुक्र-सूर्य की युति से शुक्रादित्य योग, राजभंग योग का निर्माण होगा। वहीं वृषभ राशि में गुरु-शुक्र की युति से गजलक्ष्मी राजयोग,
साथ ही गुरु और सूर्य की युति से गुरु आदित्य योग का संयोग बन रहा है।
गजलक्ष्मी राजयोग में किए गए कार्य धन,
सौन्दर्य, सफलता दिलाते हैं वहीं गुरु आदित्य
योग व्यक्ति को गुण-ज्ञान की प्राप्ति होती है।
इस दिन यदि सर्वार्थ सिद्धि योग एवं शिवयोग की बात करें तो-
शिव योग – 23 मई 2024, दोपहर12.12 – 24 मई 2024, सुबह
11.22 और सर्वार्थ सिद्धि योग – सुबह 09.15
सुबह 05.26, 24 मई तक रहेगा।
ऐसे में यदि आपने नये घर का निर्माण कराया हो तो आप इस दिन गृह प्रवेश भी कर सकते हैं। हालांकि इस बार नवंबर माह तक गृह प्रवेश का मुहूर्त नहीं है ।

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*सूर्यास्तोत्तर-त्रिमुहुतात्मक प्रदोषव्यापिनी तिथिन्नक्ते ग्हया।* *अन्यतरदिने, तद्याप्त
तदेकदेशस्पर्श”दिनद्धये प्रदोषव्याप्तौपरा*दिनद्धये प्रदोषव्याप्त्यभावे परत्रैव,*
इसका अर्थ है कि पूर्णिमा व्रत प्रत्येक मास
की प्रदोषव्यापिनी और चंद्रोदय व्यापिनी
पूर्णिमा में किया जाना चाहिए। इस व्रत को
प्रदोषकाल में करने का विधान हैं। अर्थात्
पूर्णिमा दोनों दिन प्रदोष में व्याप्त हो, तो
अगले दिन तथा दोनों दिन प्रदोषकाल की
व्याप्ति के अभाव में भी अगले दिन ही व्रत
हेतु ग्रहण करें। इस वर्ष वैशाख पुर्णिमा दो
दिन 22 मई, 2024 को पूर्ण रूप से तथा
23 मई, 2024 को प्रदोष के प्रारम्भक्षण
(सूर्यास्तकाल) को स्पर्शमात्र कर रही है।
इसलिए कहा जा सकता है कि 23 मई को वैशाख
पूर्णिमा व्रत करना चाहिए।

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लेखक–:आचार्य प्रकाश चंद्र जोशी,गेठिया नैनीताल ।

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