*सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग एवं गुरु पुष्य योग में मनाया जाएगा इस बार अहोई व्रत ।

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत या दीप अष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत करवा चौथ व्रत के चौथे दिन और दीपावली से सात दिन पूर्व मनाया जाता है।इस बार दिनांक 24 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार को अहोई अष्टमी व्रत या दीप अष्टमी पर्व मनाया जाएगा। अहोई अष्टमी व्रत संतान की दीर्घायु (लम्बी उम्र) और संतान की उन्नति एवं सफलता की कामना हेतु रखा जाता है।

*अहोई अष्टमी व्रत कथा*
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके
सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी
लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ
चली गई।साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहू बोली- मैं तुम्हारी
कोख बांधूंगी।स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर
विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के
लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडितजी ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे
स्याह के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं।अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर
एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और
खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है।
इस पर वह छोटी बहु को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहु इस पर कहती है कि उसने तो
उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़
पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।वहां स्याहु छोटी बहु की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याह के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।
अहोई का अर्थ एक यह भी होता हैअनहोनी को होनी बनाना और किसी
अप्रिय अनहोनी से बचाना।

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*पूजा का शुभ मुहूर्त*
कातिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी अहोई अष्टमी को पूजा का शुभ मुहूत्त 24 अक्टूबर को संध्याकाल ০5 बजकर 42 मिनट से
लेकर 06 बजकर 59 मिनट तक है। और इस दिन व्रती को सायंकाल में तारे देखना भी नितांत आवश्यक है।इस दिन यदि तारों को देखने के शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस दिन संध्याकाल में तारा देखने का शुभ मुहर्त 06 बजकर O6 मिनट है। इस समय व्रती तारों को देखकर व्रत खोल
सकती हैं। यदि सर्वार्थ सिद्धि योग एवं गुरु पुष्य योग की बात करें तो इस दिन ये दोनों योग प्रातः 6:23 से अगले दिन प्रातः 6:24 बजे तक है। और अमृत सिद्धि योग मध्य रात्रि 1:58 बजे से प्रातः 6:24 तक रहेगा।
*लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*

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