*कल 13 दिसंबर को है शुक प्रदोष व्रत शुक्र प्रदोष व्रत क्या है क्यों वर्जित है शुक्रास्त में विवाह लग्न ?*
*आइए जानते हैं व्रत कथा शुभमुहूर्त एवं पूजा विधि ।
जिस प्रकार वर्ष में24 एकादशी व्रत होते हैं एवं अधिक वर्ष में 26
एकादशी व्रत होते हैं ठीक इसी प्रकार वर्ष में
24 प्रदोष व्रत और अधिक वर्ष मैं 26 प्रदोष
व्रत होते हैं। जिस प्रकार एकादशी व्रत भगवान
विष्णु जी को समर्पित हैं ठीक इसी प्रकार प्रदोष व्रत भगवान भोलेनाथ को समर्पित है।एकादशी की तरह ही प्रत्येक मास में दो प्रदोष व्रत हैं। प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है। इस वर्ष सन 2024 में
13दिसंबर को शुक्रवार होने की वजह से इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
प्रदोष व्रत कथा।-:
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी। और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब
वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुंदर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्म गुप्त था। शत्रु ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल
मृत्यु हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना
लिया और उसका पालन पोषण किया। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव योग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है। जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना प्रारंभ कर दिया। 1 दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे
तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई।
ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्म गुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व
कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए। कन्या
ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुनः गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व
कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार हैं। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्व
राज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार
धर्म गुप्त से कराया। इसके उपरांत राजकुमार धर्म गुप्त ने गंधर्वसेना की सहायता से विदर्भ देश
पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्म गुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंद पुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिव पूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढता है उसे 100 जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं
होती।
प्रदोष व्रत का महत्व- ऐसा माना जाता है कि
भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। आज के दिन भगवान भोले शंकर की विशेष कृपा मिलती है।
प्रदोष व्रत में शाम का समय पूजा के लिए
सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस
समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य
करते हैं। इस दिन सभी शिव मंदिरों में शाम के
समय प्रदोष मंत्र का जाप किया जाता है।
किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान भोले शंकर की
पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व
और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती
है।
अब प्रिय पाठकों को शुक्र प्रदोष व्रत की कथा
के बारे में जानकारी देना चाहूंगा।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा- प्राचीन काल की बात है
एक नगर में 3 मित्र रहते थे। एक राजकुमार
दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा वणिक पुत्र राजकुमार व ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था। वणिक पुत्र का विवाह भी हो गया था किंतु गौना शेष था। 1 दिन तीनों मित्र स्त्रियों की
चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की
प्रशंसा करते हुए कहा नारी हीन घर भूतों का
डेरा होता है। वणिक पुत्र ने यह सुना तो तुरंत ही
अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया। माता पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र अस्त हुए
हैं अर्थात शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू बेटियों को उनके घर से विदा कर वाला ना शुभ नहीं होता है। किंतु वणिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा। ससुराल में भी उसे रोकने के बहुत प्रयास किए गए मगर उसने जिद नहीं छोड़ी। माता-पिता को विवश होकर अपनी कन्या की विदाई करनी पड़ी। ससुराल से विदा हो पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया और
एक बैल की टांग टूट गई। दोनों को अत्यधिक
चोटें आई फिर भी वे आगे बढ़ते रहें। कुछ दूर
जाने पर उनकी भेंट डाकुओं से हो गई। डाकू
धन लूट ले गए । दोनों रोते हुए घर पहुंचे वहां
वणिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता
ने वैद्य को बुलाया। वैद्य ने निरीक्षण के बाद
घोषणा की कि वणिक पुत्र 3 दिन में मर
जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार
मिला तो वह तुरंत आया। उसने माता पिता को
शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्श दिया और कहा इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है। यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा। वणिक को ब्राह्मण कुमार की बात
ठीक लगी उसने वैसा ही किया। ससुराल पहुंचते ही वणिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई। शुक्र प्रदोष के महात्म्य से सभी घोर
कष्ट टल गये । प्रिय पाठकों को इस कथा से
एक सीख यह भी प्राप्त हो गई होगी की इसीलिए शुक्रास्त के समय विवाह लग्न नहीं होते हैं या विवाह नहीं कराए जाते हैं।
शुभ मुहूर्त-:
इस बार दिनांक 13 दिसंबर 2024 दिन शुक्रवार को शुक्र प्रदोष व्रत मनाया जाएगा इस दिन यदि त्रयोदशी तिथि की बात करें तो 31 घड़ी 37 पल अर्थात शाम 7:40 तक त्रयोदशी तिथि है ।इस दिन भरणी नामक नक्षत्र दो घड़ी एक पल अर्थात प्रातः 7:50 बजे तक है कौलव नामक करण 5 घड़ी चार पल अर्थात प्रातः 9:04 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव दोपहर 1:19बजे तक मेष राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्र देव वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे।
शुक्र प्रदोष पूजा-विधि-:
स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर ले।
शिव परिवार सहित सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें । अगर व्रत रखना है तो हाथ में पवित्र जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत रखने का संकल्प लें। फिर संध्या के समय घर के मंदिरमें गोधूलि बेला में दीपक जलाएं। फिर शिव मंदिर या घर में भगवान शिव का अभिषेक करेंऔर शिव परिवार की विधिवत पूजा-अर्चना करें। अब शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुनें। फिर घी के दीपक से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें। अंत में ॐ नमः शिवाय का मंत्र-
जाप करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें ।
लेखक-:
आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ।
उत्तराखंड)