*महत्वपूर्ण त्रिपुष्कर योग में मनाया जाएगा इस बार निर्जला एकादशी व्रत।तीन गुना फल देता है त्रिपुष्कर योग में किया कार्य।*

*निर्जला एकादशी व्रत कथा-:*
इस कथा के अनुसार एक बार पांडू पुत्र भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युथिष्षिर, माता कुंती,
द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि
सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं,
परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं
भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर
सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन
के बिना नहीं रह सकता।
इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन!
यदि तुम नरक को बूरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रति मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही
कह चुका हू कि में भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ। क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए
बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह
शांत रहती है। इसलिए पूरा उपवास तो क्या
एक समय भी बिना भोजन किए रहना
कठिन है।अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो
वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने
बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए
रखा जाता है।
व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और कॉपकर कहने लगे कि अब क्या करेू?
मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हाँ
वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर
सकता हूँ। अतः वर्ष में एक दिन व्रत करने
से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।
यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ
और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास
के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है,
उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी
का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान
और आचमन के सिवा जल वर्जित है।
आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं
होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश
हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना
चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो
जाता है।यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशीके सूर्योंदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे
सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान
आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और
सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर
आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल
पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य
निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं।
अतः संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत
को करना चाहिए। उस दिन *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय*
मंत्र का उच्चारण करना
चाहिए और गौदान करना चाहिए। इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार
भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस
एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज
मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन
करूगा। मैं इस व्रत को श्रद्रापूर्वक करुंगा,
अतः आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो
जाएँ। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा
वस्त्र से ढॅँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको
करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है।
और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका
फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता।
इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक
को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न
खाते हैं, वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में
नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी
का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो,
मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के
साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव
से स्वर्ग जाता है।
हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक
इस व्रत को करते हैं उन्हें निम्न लिखित कर्म
करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन,
फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा
देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का
दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन
अन्न, वस्त्र, पानी का घड़ा दान करें। सबसे महत्वपूर्ण इस दिन जल का घड़ा अवश्य दान करें।
कहा जाता है कि इस दिन साधक निर्जला व्रत
रखकर किसी को पानी पीने का घड़ा दान
करता है, तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस
दिन घड़ा दान करते समय इस मंत्र को बोलें-

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*देवदेव हषिकेश संसारार्णवतारक।उदकुंभ प्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥*

*शुभ मुहूर्त -:*
इस बार दिनांक 18 जून 2024 दिन मंगलवार को निर्जला एकादशी व्रत मनाया जाएगा ।इस दिन दो घड़ी 54 पल अर्थात प्रातः 6:25 तक एकादशी तिथि रहेगी तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन 26 घड़ी 42 पल अर्थात शाम 3:56 बजे तक स्वाति नामक नक्षत्र है तदुपरांत विशाखा नामक नक्षत्र उदय होगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल निर्जला
एकादशी पर काफी शुभ योग बन रहे हैं। शिव
योग दिनभर रहकर रात 9 बजकर 39 मिनट
तक रहेगा। इसके बाद सिद्ध योग लग जाएगा। इसके साथ ही दोपहर में 3 बजकर 56 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 5 बजकर 24 मिनट तक त्रिपुष्कर योग है।
कैसे बनता है त्रिपुष्कर योग? आइए ये भी जान लें।
रविवार, मंगलवार व शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन विशाखा, उत्तराफाल्गुनी,
उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु व कृत्तिका नक्षत्र हो, तब त्रिपुष्कर योग
बनता है। चूंकि इस दिन द्वादशी तिथि, मंगल वार, एवं विशाखा नक्षत्र है। अतः त्रिपुष्कर योग बनता है।त्रिपुष्कर योग में जिस भी कार्य को किया जाता है, वह 3 गुना फल देता है।
*कब बनता है द्विपुष्कर योग?*
जब रविवार, मंगलवार, शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन चित्रा,मृ्गशिरा व धनिष्ठा नक्षत्र हो तब ‘द्विपुष्कर
योग’ बनता है। ‘द्विपुष्कर योग’ में जिस कार्य को किया जाता है, वह दोगुना फल देता है। इस योग का शुभाशुभ से कोई
सीधा संबंध न होकर उस दिन के आनंदादि योग के फल को द्विगुणित अर्थात दोगुना करने से है। ‘द्विपष्कर योग’ वाले दिन यदि कोई शुभ कार्य किया जाए तो उसके फल
में दोगुनी वृद्धि होती है, वहीं इस योग वाले
दिन यदि कोई अशुभ मुहुर्त बना हो तो वह
भी अपनी अशुभता में दोगुनी वृद्धि करता
है। अतः ‘द्विपुष्कर योग’ वाले दिन मुहूर्त का
विशेष ध्यान रखना चाहिए।

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*लेखक-:  आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*

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