अल्मोड़ा साहित्य महोत्सव में “भारतीय संविधान के 75 वर्ष” विषय पर एक विशेष सत्र आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता संयोजक विनायक पंत ने की। मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित न्यायाधीश उच्च न्यायालय उत्तराखंड रहे।
न्यायमूर्ति पुरोहित ने अपने विधिक अनुभव साझा करते हुए संविधान को विश्व का सबसे बड़ा “जीवंत दस्तावेज़” बताया। उन्होंने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की मजबूती और सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को *मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में रेखांकित किया।
उन्होंने प्रस्तावना में निहित *न्याय, स्वतंत्रता और समानता* के सिद्धांतों को संविधान की आत्मा बताया और कहा कि संविधान में समय-समय पर हुए संशोधन इसकी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं, जबकि *मूल संरचना सिद्धांत* इसकी आत्मा की रक्षा करता है।
विकास में न्यायपालिका को बाधा बताने वाली टिप्पणियों को उन्होंने अनुचित बताते हुए कहा कि स्वतंत्र न्यायपालिका भारत के संघीय ढांचे की आधारशिला है। उन्होंने *कोलेजियम प्रणाली* में सुधार की आवश्यकता मानी, पर उसकी स्वतंत्रता बनाए रखने पर बल दिया।
पर्यावरणीय चुनौतियों पर उन्होंने कहा कि नए कानूनों से अधिक, *मौजूदा कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन* की जरूरत है।
यूकेएसएसएससी परीक्षा प्रकरण पर बोलते हुए उन्होंने *नैतिक शिक्षा और मूल्य आधारित शासन* पर जोर दिया।
अंत में उन्होंने कहा कि *न्यायिक धर्मनिरपेक्षता* का अर्थ है न्यायाधीशों का व्यक्तिगत पहचान से ऊपर उठकर निर्णय देना, और न्यायिक निर्णयों में साहित्यिक व दार्शनिक गहराई संविधान की भावना को दर्शाती है।

