नैनीताल। हाई कोर्ट ने एक अहम आदेश में दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग को गर्भावस्था के 29 सप्ताह पांच दिन में गर्भपात की अनुमति प्रदान की है। कोर्ट ने गर्भ में पल रहे भ्रूण के बजाय पीड़िता की जिंदगी को अधिक महत्वपूर्ण मानते हुए यह आदेश पारित किया। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के अंतर्गत गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देने का प्रावधान है। लेकिन इस मामले में करीब 6 हफ्ते का समय अधिक था ।
गढ़वाल मंडल की पीड़िता ने पिता के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भपात की अनुमति देने की गुहार लगाई थी। याचिकाकर्ता की अधिवक्ता अनुसार पीड़िता 15 साल नौ माह की नाबालिग है। दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई है।
इन परिस्थितियों में, यदि याचिकाकर्ता को अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन को जीने की गारंटी का उल्लंघन करेगा। अभियोजन के अनुसार 12 जनवरी को नामजद आरोपितों के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया था। 11 जनवरी को पीड़िता की सोनोग्राफी कराई गई, जिसमें 27 सप्ताह 4 दिन से अधिक दिन का गर्भ था। अदालत के आदेश पर 24 जनवरी को फिर मेडिकल बोर्ड का गठन कर रिपोर्ट दी गई। जिसमें गर्भ 28 सप्ताह पांच दिन पाया गया। बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि गर्भपात मां के लिए जोखिम है। कोर्ट ने फिर आदेश दिया कि मेडिकल बोर्ड के मार्गनिर्देशन में मुख्य चिकित्सा अधिकारी आदेश प्राप्त के 48 घंटे के भीतर स्त्री रोग विशेषज्ञ की देखरेख में गर्भपात की प्रक्रिया हो। न्यायाधीश न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ ने वर्तमान तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए पीड़िता को गर्भपात की अनुमति प्रदान कर दी।

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