ज्योतिष गणना के मुताबिक दिनांक 6 सितम्बर 2023 को है भगवान श्री कृष्ण की 5249 वीं जयंती (श्री कृष्ण जन्माष्टमी)
भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में आज से 5249 वर्ष पूर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।
शुभ मुहूर्त —
इस बार शैव समुदाय के लोग दिनांक 6 सितम्बर दिन बुधवार को एवं वैष्णव सम्प्रदाय के लोग दिनांक 7 सितम्बर दिन गुरुवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनायंगे।
दिनांक 6 सितम्बर 2023 दिन बुधवार को 24 घड़ी 20 पल अर्थात शाम 3:15 बजे से अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी और दिनांक 7 सितम्बर को 25घडी 48 पल अर्थात शाम 4:14 बजे तक रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो रोहिणी नक्षत्र 6 सितम्बर को प्रातः 9:18 बजे से शुरू होकर 7 सितम्बर को प्रातः 10:23 बजे तक है।
ज्योतिष गणना के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का अवतरण इस धरती पर आज से 3226 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था अर्थात वर्तमान में ईसवी के 2023 वर्ष चल रहे हैं अतः 3226 और 2023 को जोड़ने पर 5249 वर्ष होते हैं अतः इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण का 5249 वा जन्मदिन होगा ।
भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं अनंत हैं किंतु प्रमुख रूप से उनकी तीन लीलाएं विशेष प्रसिद्ध है। इन तीन लीलाओं में उनका आरंभ होता है ब्रज लीला से तदनंतर आती है माथुर लीला और अंत में द्वारिका लीला। एक ही व्यक्ति ने इन तीन लीलाओं का प्रदर्शन अपने जीवन के विभिन्न भागों में किया था। अतः श्री कृष्ण की एकता में किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति श्री कृष्ण के व्यक्तित्व में भेद मानता है उसका चिंतन सर्वथा निराधार है। श्री कृष्ण का गोपियों के साथ लीला विलास का संबंध जीवन के प्रारंभ से लेकर अंत तक रहता है। उन्होंने उस समय अपने जेष्ठ भ्राता को गोकुल में नंद के घर में रोहिणी माता के गर्भ में योग माया के आशय से संयुक्त करा दिया था। जो संकर्षण नाम से विख्यात हुए। शिशु के प्रभाव से देवकी तथा वसुदेव को कारागार में रखने पर भी उनके जीवन में अद्भुत लीला दृष्टिगोचर हुई थी। रक्षक लोगों को निद्रा आ गई थी तथा उनके बंधन मुक्त हो गए थे। कृष्ण जब अपने जीवन के प्रारंभ में गोकुल आए तब यशोदा को कन्या की प्राप्ति हुई थी यह भी कृष्ण के जीवन के आरंभिक काल का लीला विलास था । श्री कृष्ण के आरंभिक जीवन में गोपियों के साथ नाना प्रकार की लीलाओं का विन्यास दृष्टिगोचर होता है। कंस द्वारा कृष्ण को मारने के अनेक उपायों में उनकी लीला का विलास दृष्टिगोचर होता है। कृष्ण की जीवन लीला को समाप्त करने के लिए कंस ने विविध चेष्टा की थी और इनमें कृष्ण के जीवन का विलास प्रचुर मात्रा में देखा जा सकता है। उन्हें मारने के लिए पूतना भेजी गई थी और बालक कृष्ण ने उसे दूध पीते ही मार डाला। यह भी उनके आरंभिक जीवन का विलास ही था।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा –
स्कंद पुराण के अनुसार द्वापर युग की बात है उन दिनों मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा हुए। स्वभाव से वह सीधे साधे थे। यही वजह थी कि उनके पुत्र कंस ने ही उनका राज्य हड़प लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा । कंस की एक बहन थी जिसका नाम था देवकी। कंस उससे बहुत स्नेह करता था। देवकी का विवाह वसुदेव से तय हुआ तो विवाह संपन्न होने के बाद कंस उसे स्वयं ही रथ हांकते हुए बहन को ससुराल छोड़ने के लिए रवाना हुआ। स्कंद पुराण के अनुसार जब वह बहन को छोड़ने के लिए जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई की जिस बहन को तू इतने प्रेम से विदा करने स्वयं ही जा रहा है इस बहन का आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा। यह सुनते ही कंस क्रोधित हो गया और देवकी और वसुदेव को मारने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तभी वसुदेव ने कहा कि वह देवकी को कोई नुकसान न पहुंचाएं। वह स्वयं ही देवकी की आठवीं संतान कंस को सौंप देगा। इसके बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को मारने के बजाय कारागार में डाल दिया।
कारागार में देवकी ने सात संतानों को जन्म दिया और कंस ने सभी को एक-एक करके मार दिया। इसके बाद जैसे ही देवकी फिर से गर्भवती हुई तभी कंस ने कारागार का पहरा और भी कड़ा कर दिया। तब भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। तभी श्री विष्णु ने वसुदेव को दर्शन देकर कहा कि वह स्वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्मे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वसुदेव जी उन्हें वृंदावन में अपने मित्र नंद बाबा के घर पर छोड़ आए और यशोदा जी के गर्भ से जिस कन्या का जन्म हुआ है उसे कारागार में ले आए। यशोदा जी के गर्भ से जन्मी कन्या कोई और नहीं बल्कि स्वयं माया थी। यह सब कुछ सुनने के बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेते ही वसुदेव जी ने जैसे ही श्री कृष्ण को अपनी गोद में उठाया कारागार के ताले खुद ही खुल गए पहरेदार अपने आप ही नींद के आगोश में आ गए। फिर वसुदेव जी कन्हैया को टोकरी में रखकर वृंदावन की ओर चले। कहते हैं कि जिस समय यमुना जी पूरे ऊफान पर थी तब वसुदेव जी महाराज ने टोकरी को सिर पर रखा और यमुना जी को पार करके नंद बाबा के घर पहुंचे। वहां कन्हैया को यशोदा जी के पास रखकर कन्या को लेकर मथुरा वापस लौट आए।
स्कंद पुराण के अनुसार जब कंस को देवकी के आठवीं संतान के बारे में पता चला तो वह कारागार पहुंचा। वहां उसने देखा की आठवीं संतान तो कन्या है फिर भी वह उसे जमीन पर पटकने ही वाला था कि वह माया रुपी कन्या आसमान में पहुंचकर बोली की रे मूर्ख !मुझे मारने की कोशिश मत कर मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल तो पहले ही वृंदावन पहुंच चुका है और बहुत जल्दी ही तेरा अंत करेगा। इसके बाद कंस ने वृंदावन में जन्मे नवजातों का पता लगाया। जब यशोदा के लाला का पता चला तो उसे मारने के लिए कई प्रयास किए। कई राक्षसों को भेजा लेकिन कोई भी उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर पाया तो कंस को यह एहसास हो गया की नंद बाबा का बालक ही वसुदेव देवकी की आठवीं संतान है। भगवान श्री कृष्ण ने युवावस्था में कंस का अंत किया इस प्रकार जो भी यह कथा पढ़ता है तो उसके सभी पापों का नाश हो जाता है।
तो बोलिए नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण की जय।
आप सभी को सपरिवार श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
लेखक-: पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया, नैनीताल।